चमोली: ऋषिगंगा नदी में जो ग्लेशियर टूट कर गिरा था उसने सबसे पहले रैणी गांव के ठीक नीचे बने ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को तबाह किया था. ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट में न सिर्फ 45 कर्मचारी काम करते थे, बल्कि उनके रहने की व्यवस्था भी यही की गई थी, लेकिन आज वहां ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट का नाम तक नहीं है. ईटीवी भारत की टीम हालात का जायजा लेने ग्राउंड जीरो पर पहुंची.
आपदा के बाद ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट और उसके आसपास के इलाके को देखकर ऐसा नहीं लगता है कि यहां पर कभी 16 मेगावाट बिजली की उत्पादन हुआ करता था, जहां 45 कर्मचारी काम किया करते थे. क्योंकि आज वो जगह मलबे में तब्दील हो गई है. ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के आसपास जिधर भी नजर घूमती है, मलबा ही मलबा नजर आता है. वो सैलाब कितना भयानक रहा होगा इसकी अदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नीति घाटी को जोड़ने वाला पुल भी उसमें तहस नहस हो गया. पुल में लगी लोहे की रॉड लकड़ी के तने की तरह मुड़ गई है.
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#WATCH: A joint team of ITBP, NDRF, SDRF & other sister agencies entered into the tunnel (being cleared off debris). Drone camera used to see the feasibility to enter beyond the cleared site inside the tunnel. Machines back on the job of clearing the slush: ITBP
— ANI (@ANI) February 9, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
(Source: ITBP) pic.twitter.com/akaqkD1sUB
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— ANI (@ANI) February 9, 2021
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बीआरओ समेत अन्य रेस्क्यू टीमों को रैणी गांव तक पहुंचने में दिक्कतें आ रही हैं. बीआरओ को यह जिम्मेदारी दी गई है कि वह एक वैली ब्रिज तैयार करे, लेकिन वहां पर 20 से 30 मीटर मलबा पड़ा है. जिसने साफ करने में बीआरओ को काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. बीआरओ तीन दिन से मलबा हटाने में लगा हुआ है. अभी तक वहां से तीन शव भी बरामद किए जा चुके हैं.
पुल बनाने के लिए बनाई नई रणनीति
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बीआरओ के चीफ इंजीनियर एएस राठौर ने बताया कि अभी रास्ता खोलने में उन्हें तीन चार दिन लग सकते हैं. लिहाजा जहां तक मशीन जा रही है वहां तक ही काम हो पा रहा है. पहली प्राथमिकता यह है कि नदी के ऊपर एक पुल बनाया जाए, लेकिन समस्या ये है कि बीआरओ वैली ब्रिज बनाता है. जिसमें लचक अधिक होती है. लंबी दूरी तय करने के लिए वह पुल सक्षम नहीं होता है. ऐसे में बीआरओ ने इसका दूसरा रास्ता निकाला है. बीआरओ पुराने पुल को न बनाकर अब ग्लेशियर की तरफ आगे बढ़ रहा है. उस जगह पर ब्रिज बनाया जाए, जहां नदी की चौड़ाई कम है.
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चीफ इंजीनियर राठौर ने मुताबिक इस मलबे में कितने लोग दफन हैं, इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा सकती है. अगर इस मलबे में कोई जिंदा बच जाए तो बहुत बड़ी बात होगी. केदारनाथ आपदा के दौरान देखने में आया था कि कुछ लोगों पहाड़ों पर चढ़कर अपनी जान बचा ली थी, लेकिन इस बार की आपदा में ऐसा होने की उम्मीद है. क्योंकि जो सैलाब आया था, उसने लोगों को भागने का समय तक नहीं दिया था.