थरालीः प्रदेश सरकार भले ही पलायन रोकने के लिए अनेक योजनाएं चला रही हो, परंतु जब तक पहाड़ों में सड़क ,शिक्षा, स्वास्थ की स्थिति बदहाल बनी रहेगी लोगों को पलायन होने के लिए के लिए मजबूर होना पड़ेगा. ऐसा ही हाल सीमांत जनपद चमोली जिले के तहसील थराली के तमाम क्षेत्रों का है. ये क्षेत्र अपनी बदहाली के आंसू बहाते नजर आ रहा हैं. ऐसे में यहां का देवाल-बोरागाड़-खेता मोटरमार्ग लंबे समय से बदहाल बना हुआ है.
प्रदेशभर की सड़कों का हाल तो इससे भी भयावह और डरावना है. आये दिन सड़कों में बने गड्ढों से दुर्घटनाओं की खबर आती रहती है. इन गड्ढों को भरने के लिए सूबे के मुख्यमंत्री अभियान तक चला चुके हैं, लेकिन लगता है सरकारी महकमों ने सूबे के मुख्यमंत्री की बात का अनसुना करने का अभियान चलाया हुआ है, नहीं तो चमोली जिले के दूरस्थ विकासखण्ड देवाल की सड़कों का सुधारीकरण अब तक हो चुका होता. यह मोटरमार्ग देवाल की सबसे बड़ी घाटी पिण्डर घाटी के बीसों गांवों को जोड़ने का एकमात्र पहुंच मार्ग है.
ऐसे में ये तस्वीरें बयां करती है कि कैसे जान हथेली पर रखकर ग्रामीण रोजाना इन सड़कों से होकर गुजरते हैं. ये तस्वीरें बताती हैं कि पहाड़ का सफर कैसे सूबे की सरकारों ने पहाड़ सा ही दुश्कर बना दिया. दरअसल, देवाल विकासखण्ड के दूरस्थ पिंडरघाटी के दर्जनों गांवों को जोड़ने वाले देवाल-बोरागाड़-खेता मोटरमार्ग की स्थिति इन दिनों भयावह बनी हुई है. लगभग 27 किमी की इस सड़क पर शुरुआत से ही इतने गड्ढे बने हुए हैं कि सड़क कहां है और गड्ढे कहां?.
बरसात के दिनों में ये गड्ढे कीचड़ से सराबोर और पानी से लबालब भरे होते हैं. ऐसे में ये गड्ढे किसी भी दुर्घटना को दावत दे सकते हैं. पूरे मोटरमार्ग पर कतिपय जगहों पर भूस्खलन संभावित ऐसे डेंजर जोन बने हुए हैं. जहां से वाहनों का गुजरना खतरे से खाली नहीं है. बावजूद इसके सरकारी महकमा चैन की नींद सोया हुआ है. यहां विभाग को न तो आमजन की चिंता है और न ही यात्रियों की फिक्र. देवाल से महज 3 किमी की दूरी ओर तलौर-पदमला में पिछली जुलाई को बादल फटने के बाद आये सैलाब से सड़क का आधा हिस्सा ही बह गया, लेकिन एक साल बीत जाने के बावजूद विभाग अबतक भी इस सड़क को दुरुस्त नहीं कर पाया है.
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आए दिन हो रहे हैं हादसे
आलम ये है कि सड़क के किनारे बने नालीनुमा ये बड़े गड्ढे कभी भी किसी बड़ी दुर्घटना का सबब बन सकते हैं. या यूं कहें कि खुद विभाग भी किसी बड़ी दुर्घटना का ही इंतजार कर रहा है. इस मोटरमार्ग पर 2012 से 2017 तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सुधारीकरण और डामरीकरण का कार्य हुआ है. लगभग 7 करोड़ खर्च हुए थे. कार्य समाप्ति के बाद सड़क 5 साल के अनुरक्षण के लिए 65 लाख रुपए समेटे हुए हैं, लेकिन अब इसे विभाग की लापरवाही कहें या फिर ठेकेदार द्वारा बरती गई अनियमितता महज एक साल में ही सड़क का डामर उखड़कर गड्ढों में तब्दील हो चला था. 2017 से आज 2020 आते आते तो पूरी सड़क ही बदहाल हो गई है. अब तो लगता है कि विभाग इन गड्ढों में खुद की बनाई सड़क खोजता ही न रह जाये.
वहीं, खेता-सुयालकोट तक बस सेवा भी यात्रियों की मुहैया करवाई गई है. एक ओर जहां यातायात नियमों का उलंघन करने, तेज गति से वाहन चलाने और सीट बेल्ट को लेकर जुर्माना राशि बढ़ाई जा चुकी है. सड़क सुरक्षा सप्ताह चलाये जा रहे हैं. ऐसे में सड़क के बीचोंबीच बने इन गड्ढों के कारण कोई दुर्घटना होती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? ये सरकारी तंत्र के लिए बड़ा सवाल है.