चमोली: नंदप्रयाग-घाट मोटर मार्ग के चौड़ीकरण की मांग कर रहे पांच आंदोलनकारियों को जिला न्यायालय की तरफ से समन जारी किया गया है. वहीं बीती 1 मार्च को गैरसैंण विधानसभा घेराव के दौरान दिवालीखाल में 50 से अधिक आंदोलनकारियों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किये जाने के बाद मामला दर्ज किया गया था, जिसकी जांच जारी है.
घाट में 5 आंदोलनकारियों के खिलाफ दर्ज मामले में आरोप पत्र दाखिल करने के बाद कोर्ट ने पांचों को 20 अक्टूबर को जिला न्यायालय में पेश होने का आदेश दिया है. दूसरी ओर सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा घाट आंदोलन से जुड़े मुकदमों को वापस किये जाने की बात कही गई थी. थराली विधायक मुन्नी शाह ने भी वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सामने सभी आंदोलनकारियों पर दर्ज मुकदमों को वापस किए जाने का अनुरोध किया था. इसके आधार पर गृह विभाग ने जिलाधिकारी चमोली से मुकदमों की वापसी के संबंध में रिपोर्ट मांगी गई है.
बता दें कि नंदप्रयाग-घाट सड़क को डेढ़ लेन चौड़ीकरण की मांग को लेकर घाट क्षेत्र के लोगों ने इसी साल 10 जनवरी को 19 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाने के बाद 5 लोगों ने आमरण अनशन शुरू किया था. अनशन पर बैठे लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ते देख प्रशासन ने 14 जनवरी को तड़के 5 बजे धरनास्थल पर भारी संख्या में पुलिस बल बुलवाकर आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों को जबरन अस्पताल में भर्ती करवाने का प्रयास किया था.
प्रशासन की इस कार्रवाई का व्यापारियों, टैक्सी यूनियन और क्षेत्र के लोगों ने विरोध किया था. विरोध में बाजार बंद और वाहनों का चक्का जाम भी रहा. प्रशासन की कार्रवाई से बचने के लिए भूख हड़ताल पर बैठे गुड्डू लाल मोबाइल टावर पर चढ़कर प्रशासन की टीम को धरनास्थल से वापस जाने की मांग करने लगे. इसके बाद पुलिस ने आत्मदाह करने के प्रयास और सड़क जाम करना सहित कई अन्य धाराओं में गुड्डू लाल व अन्य पांच लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था.
आंदोलन से जुड़े क्षेत्र पंचायत सदस्य दीपक रतूड़ी और गुड्डू लाल का कहना है कि मुख्यमंत्री द्वारा मामले का संज्ञान लिए जाने के बाद भी मुकदमे वापसी को लेकर सरकारी तंत्र कछुए की गति से कार्य कर रहा है. लाठीचार्ज के बाद दर्ज मुकदमों में कई महिलाएं भी पुलिस के द्वारा नामजद की गई हैं. उन्होंने कहा कि वह क्षेत्र के लिए जेल जाने के लिए तैयार हैं, लेकिन भोले-भाले ग्रामीणों के ऊपर दर्ज किये मुकदमों को सरकार को वापस लेने पर विचार करना चाहिए. अगर समय रहते मुकदमे वापस नहीं लिए गए तो भाजपा को आने वाले चुनावों में नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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गैरसैंण सत्र के दौरान किया था विधानसभा कूच: घाट-नंदप्रयाग मोटरमार्ग के चौड़ीकरण की मांग को लेकर स्थानीय लोगों ने इसी साल 1 मार्च को भराड़ीसैंण स्थित विधानसभा का घेराव करने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिस ने बैरिकेड लगाकर उन्हें रोक दिया था. प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड पर चढ़कर आगे बढ़ाने का प्रयास किया था, जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए वाटर केनन का प्रयोग किया था. इस दौरान पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर के लिए लाठियां भी भांजी गईं. जब पुलिस ने सख्ती करते हुए प्रदर्शनकारियों को विधानसभा जाने से रोक दिया तो उनमें से कुछ लोगों ने पथराव कर दिया. पत्थर लगने से एक सीओ और एक जवान घायल हो गए थे.
लंबे समय से आंदोलित हैं ग्रामीण: नंदप्रयाग-घाट 19 किलोमीटर मोटर मार्ग के डेढ़ लेन चौड़ीकरण की मांग को लेकर नागरिक लंबे समय से आंदोलित हैं. आंदोलनकारियों का कहना है कि इस सड़क की चौड़ाई 9 मीटर की जानी जरूरी है. सड़क की स्थिति वर्तमान समय में काफी खराब है. अधिकतर स्थानों पर सड़क संकरी होने के कारण वाहन दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है. आंदोलनकारियों ने बताया कि इस सड़क के चौड़ीकरण को लेकर पूर्व में सीएम भी घोषणा कर चुके हैं लेकिन हालात वैसे ही हैं. कई बार इस सड़क पर दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. सरकार का ध्यान इस ओर दिलाने के लिये यहां के लोग आंदोलन कर रहे हैं, मगर सरकार है कि उनकी सुनने को तैयार नहीं है. इस कारण क्षेत्रवासियों का गुस्सा बढ़ गया है.
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ये है नंदप्रयाग-घाट सड़क का अपडेट: नंदप्रयाग-घाट सड़क डेढ़ लेन चौड़ीकरण में आंदोलन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने फैसला लिया था. उन्होंने इस सड़क को डेढ़ लेन चौड़ा करने की घोषणा की गई थी. इसमें इन दिनों वन भूमि हस्तांतरण का प्रस्ताव भारत सरकार वन विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय पहुंच गया है. वहां से यह प्रस्ताव अक्टूबर माह के अंत में होने वाली आरईसी की बैठक में रखा जाना है, जिसके बाद भारत सरकार के द्वारा इस वन भूमि प्रस्ताव पर सैद्धांतिक स्वीकृति दी जानी है. सड़क में वन भूमि हस्तांतरण की कार्रवाई में तेजी को लेकर राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव से मुलाकात भी कर चुके हैं.
ये है उत्तराखंड सरकार का पक्ष: नंदप्रयाग-घाट सड़क चौड़ीकरण आंदोलन में पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा मुकदमा वापस करने की घोषणा के बाद भी आंदोलनकारियों के खिलाफ आए समन पर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि सरकार द्वारा जब भी मुकदमा वापस करने की घोषणा की जाती है, तो सरकार कोर्ट में अपना मंतव्य रखती है. उसके बावजूद कोर्ट गुण-दोष के अनुसार फैसला लेता है.
कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने खुद का उदाहरण देते हुए बताया कि कई बार हम लोगों पर मुकदमा हुआ है और सरकार ने वापस भी लिया. लेकिन उसके बावजूद भी कार्रवाई हुई है. उन्होंने कहा कि इस मामले में भी सरकार के वकील द्वारा कोर्ट में पक्ष रखा गया होगा, लेकिन अंतिम फैसला कोर्ट का ही मान्य होता है.