चमोली/ देहरादून: हिन्दू धर्म में चारधाम का खास महत्व है. श्रद्धालु जीवन में एक बार इन दिव्य धामों के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं. हिमालय की गोद में बसे चारधामों का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है. वहीं धरती पर यदि कहीं बैकुंठ माना जाता है तो वह दिव्य स्थान बदरीनाथ धाम है. जहां भगवान विष्णु साक्षात रूप में विराजमान हैं.
गौर हो कि बदरीनाथ धाम में प्रचुर मात्रा में जंगली बेरी बदरी पाए जाने के कारण इस धाम का नाम बदरीनाथ पड़ा, जो प्रकृति की गोद में स्थित है. यहां श्रद्धालु अधात्म के साथ ही प्राकृतिक सौन्दर्य से रूबरू होते हैं. पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान विष्णु ध्यानयोग में लीन थे. तभी भारी बर्फबारी होने लगी. भगवान विष्णु और उनका घर बर्फ में पूरी तरह डूबने लगा. यह देखकर माता लक्ष्मी व्याकुल हो उठीं और स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) का रूप ले लिया.
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माता लक्ष्मी भगवान विष्णु को धूप, बारिश और बर्फबारी से बचाने में जुट गईं. कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु का तप पूरा हुआ तो उन्होंने लक्ष्मी जी को वृक्ष के रूप में अपने पास पाया और कहा- तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है. इसलिए मेरे धाम में मेरे साथ तुम्हारी भी पूजा होगी. साथ ही भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि तुमने मेरी बदरी के पेड़ के रूप में रक्षा की है. आज से मेरा यह धाम बदरीनाथ धाम के नाम से जाना जाएगा.
माना जाता है कि बदरीनाथ धाम में मूर्ति की स्थापना स्वयं देवताओं ने की थी. इसलिए इस धाम की महत्ता बढ़ जाती है. वहीं बदरीनाथ की मूर्ति शालीग्राम से निर्मित है जो पद्मासन में विराजमान है. मान्यता है कि बदरीनाथ धाम की मूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ उसी रूप में दिखाई देती है जैसे श्रद्धालु देखना चाहते हैं.