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बदरीधाम जैसा ही है 'पंच बदरी' का महत्व

माना जाता है कि जितना बदरी धाम का महत्व है उतना ही पंच बदरी का है, क्योंकि देश के धार्मिक स्थलों में इसका महत्व माना जाता है.

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Published : May 10, 2019, 6:10 AM IST

Badree Dham

देहरादून: देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महत्व है, उतना ही पंच बदरी और पंच केदार का भी है. पंच बदरी देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं. दरअसल, ये मंदिर बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं.

Badree Dham photo
पंच बदरी देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं

बदरीनाथ
समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम स्थित है. आदिगुरू शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था. वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते हैं. बदरीनाथ की मूर्ति शालीग्राम शिला से बनी हुई है. कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी.

योगध्यान बदरी
जोशीमठ से 20 किमी दूर और 1920 मीटर की ऊंचाई पर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित है योगध्यान बदरी. पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल के पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं. इसे तृतीय बदरी कहा गया है.

Badree Dham photo
परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते हैं

यहां भगवान नारायण का ध्यान की मुद्रा में विग्रह अष्टधातु की मूर्ति के रूर में विद्यमान है. मान्यता है कि भगवान योगध्यान बदरी की मूर्ति इन्द्रलोक से उस समय लायी गयी थी, जब अर्जुन इन्द्रलोक से गन्धर्व विद्या प्राप्त कर लौटे थे. शीतकाल में जब नर-नारायण आश्रम में भगवान नारायण मन्दिर के पट बन्द हो जाते हैं तब भगवान के उत्सव विग्रह का पूजन इसी स्थान पर होता है. प्राचीन काल में रावल भी शीतकाल में इसी स्थान पर रहने लगे, उनके द्वारा इस स्थान पर भगवान बदरीनारायण की पूजा करने से यहां पर स्थापित नारायण का नाम योगध्यानबदरी हो गया.

पढ़ें- यहां शिव का जलाभिषेक कर गायब हो जाती है जलधारा, रहस्यों को समेटे है महासू मंदिर

आदि बदरी
कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर आदि बदरी स्थित है. यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. मंदिर समूह के सामने एक जल धारा, जो 'उत्तर वाहिनी गंगा' के नाम से प्रसिद्ध है.

भविष्य बदरी
समुद्र के तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से 4 किमी पैदल मार्ग की दूरी पर भविष्य बदरी है. कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने यहां तपस्या की थी. यहां पहुंचना बेहद कठिन है.मान्यता है कि कलयुग के अंत तक जोशीमठ के समीप नर-नारायण नाम के दोनों पहाड़ आपस में मिल जाएंगे, जिससे बदरीविशाल के दर्शन नहीं हो पाएंगे, तब भक्तगण भविष्य बदरी में भगवान के विग्रह का दर्शन पूजन कर सकेंगे.

पढ़ें- 400 सालों तक बर्फ से ढका था केदारनाथ धाम, आज भी ताजा हैं निशान

वृद्ध बदरी
यह स्थान हेलंग से आगे जोशीमठ मार्ग पर पड़ता है. बदरीनाथ से 8 किमी. पहले 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी की सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम. ये मंदिर साल भर खुला रहता है. इसे पांचवां बदरी कहा गया है. यहां पर भगवान विष्णु का अत्यन्त सुन्दर विग्रह है. पंचबदरी में हेलंग व जोशीमठ के रास्ते में अणिमठ नामक स्थान पर जो बदरीनारायण का प्राचीन मन्दिर है, वह ही ’वृद्ध बदरी’ है.

Badree Dham photo
समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम स्थित है

वृद्ध बदरी नाम पड़ने के पीछे एक कहानी है- मान्तया है कि एक बार देव ऋषि नादर मृत्युलोक में भ्रमण कर रहे थे. भ्रमण करते हुए वे बदरीधाम की ओर जाने लगे. इस बीच अपनी थकान मिटाने के लिए वो आणिमठ (अरण्यमठ) नामक स्थान पर विश्राम करने लगे, उन्होंने इस स्थान पर कुछ समय बैठकर भगवान विष्णु की अराधना व ध्यान किया तथा विष्णु से प्रार्थना की कि वो उन्हें दर्शन दें, तब भगवान बदरीनारायण ने एक वृद्ध के रूप में नारद जी को दर्शन दिये, तब से इस स्थान पर बदरी-नारायण की मूर्ति की स्थापना हुई और नाम पड़ा ’वृद्धबदरी’.

देहरादून: देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महत्व है, उतना ही पंच बदरी और पंच केदार का भी है. पंच बदरी देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं. दरअसल, ये मंदिर बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं.

Badree Dham photo
पंच बदरी देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं

बदरीनाथ
समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम स्थित है. आदिगुरू शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था. वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते हैं. बदरीनाथ की मूर्ति शालीग्राम शिला से बनी हुई है. कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी.

योगध्यान बदरी
जोशीमठ से 20 किमी दूर और 1920 मीटर की ऊंचाई पर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित है योगध्यान बदरी. पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल के पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं. इसे तृतीय बदरी कहा गया है.

Badree Dham photo
परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते हैं

यहां भगवान नारायण का ध्यान की मुद्रा में विग्रह अष्टधातु की मूर्ति के रूर में विद्यमान है. मान्यता है कि भगवान योगध्यान बदरी की मूर्ति इन्द्रलोक से उस समय लायी गयी थी, जब अर्जुन इन्द्रलोक से गन्धर्व विद्या प्राप्त कर लौटे थे. शीतकाल में जब नर-नारायण आश्रम में भगवान नारायण मन्दिर के पट बन्द हो जाते हैं तब भगवान के उत्सव विग्रह का पूजन इसी स्थान पर होता है. प्राचीन काल में रावल भी शीतकाल में इसी स्थान पर रहने लगे, उनके द्वारा इस स्थान पर भगवान बदरीनारायण की पूजा करने से यहां पर स्थापित नारायण का नाम योगध्यानबदरी हो गया.

पढ़ें- यहां शिव का जलाभिषेक कर गायब हो जाती है जलधारा, रहस्यों को समेटे है महासू मंदिर

आदि बदरी
कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर आदि बदरी स्थित है. यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. मंदिर समूह के सामने एक जल धारा, जो 'उत्तर वाहिनी गंगा' के नाम से प्रसिद्ध है.

भविष्य बदरी
समुद्र के तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से 4 किमी पैदल मार्ग की दूरी पर भविष्य बदरी है. कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने यहां तपस्या की थी. यहां पहुंचना बेहद कठिन है.मान्यता है कि कलयुग के अंत तक जोशीमठ के समीप नर-नारायण नाम के दोनों पहाड़ आपस में मिल जाएंगे, जिससे बदरीविशाल के दर्शन नहीं हो पाएंगे, तब भक्तगण भविष्य बदरी में भगवान के विग्रह का दर्शन पूजन कर सकेंगे.

पढ़ें- 400 सालों तक बर्फ से ढका था केदारनाथ धाम, आज भी ताजा हैं निशान

वृद्ध बदरी
यह स्थान हेलंग से आगे जोशीमठ मार्ग पर पड़ता है. बदरीनाथ से 8 किमी. पहले 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी की सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम. ये मंदिर साल भर खुला रहता है. इसे पांचवां बदरी कहा गया है. यहां पर भगवान विष्णु का अत्यन्त सुन्दर विग्रह है. पंचबदरी में हेलंग व जोशीमठ के रास्ते में अणिमठ नामक स्थान पर जो बदरीनारायण का प्राचीन मन्दिर है, वह ही ’वृद्ध बदरी’ है.

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समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम स्थित है

वृद्ध बदरी नाम पड़ने के पीछे एक कहानी है- मान्तया है कि एक बार देव ऋषि नादर मृत्युलोक में भ्रमण कर रहे थे. भ्रमण करते हुए वे बदरीधाम की ओर जाने लगे. इस बीच अपनी थकान मिटाने के लिए वो आणिमठ (अरण्यमठ) नामक स्थान पर विश्राम करने लगे, उन्होंने इस स्थान पर कुछ समय बैठकर भगवान विष्णु की अराधना व ध्यान किया तथा विष्णु से प्रार्थना की कि वो उन्हें दर्शन दें, तब भगवान बदरीनारायण ने एक वृद्ध के रूप में नारद जी को दर्शन दिये, तब से इस स्थान पर बदरी-नारायण की मूर्ति की स्थापना हुई और नाम पड़ा ’वृद्धबदरी’.

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बदरीधाम जैसा ही है पंच बदरी का महत्व

देहरादून: देवभूमि में बदरी-केदार धाम का जितना महत्व है, उतना ही पंच बदरी और पंच केदार का भी है. पंच बदरी देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में गिने जाते हैं. दरअसल, ये मंदिर बदरी-केदार धाम के ही अंग हैं.



बदरीनाथ

समुद्र के तल से लगभग 3133 मीटर की ऊंचाई पर बदरीनाथ धाम स्थित है. आदिगुरू शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में इसका निर्माण कराया था. वर्तमान में शंकराचार्य की निर्धारित परंपरा के अनुसार उन्हीं के वंशज नंबूदरीपाद ब्राह्मण बदरी विशाल की पूजा-अर्चना करते हैं. बदरीनाथ की मूर्ति शालीग्राम शिला से बनी हुई है. कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी. 



योगध्यान बदरी

जोशीमठ से 20 किमी दूर और 1920 मीटर की ऊंचाई पर पांडुकेश्वर नामक स्थान पर स्थित है योगध्यान बदरी. पांडु द्वारा निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में कमल के पुष्प पर आसीन मूर्तिमान भगवान योगमुद्रा में दर्शन देते हैं. इसे तृतीय बदरी कहा गया है.



यहां भगवान नारायण का ध्यान की मुद्रा में विग्रह अष्टधातु की मूर्ति के रूर में विद्यमान है. मान्यता है कि भगवान योगध्यान बदरी की मूर्ति इन्द्रलोक से उस समय लायी गयी थी, जब अर्जुन इन्द्रलोक से गन्धर्व विद्या प्राप्त कर लौटे थे. शीतकाल में जब नर-नारायण आश्रम में भगवान नारायण मन्दिर के पट बन्द हो जाते हैं तब भगवान के उत्सव विग्रह का पूजन इसी स्थान पर होता है. प्राचीन काल में रावल भी शीतकाल में इसी स्थान पर रहने लगे, उनके द्वारा इस स्थान पर भगवान बदरीनारायण की पूजा करने से यहां पर स्थापित नारायण का नाम योगध्यानबदरी हो गया.



आदि बदरी

कर्णप्रयाग-रानीखेत मार्ग पर आदि बदरी स्थित है. यह तीर्थ स्थल 16 मंदिरों का एक समूह है, जिसका मुख्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है. मंदिर समूह के सामने एक जल धारा, जो 'उत्तर वाहिनी गंगा' के नाम से प्रसिद्ध है. 



भविष्य बदरी

समुद्र के तल से 2744 मीटर की ऊंचाई पर तपोवन से 4 किमी पैदल मार्ग की दूरी पर भविष्य बदरी है. कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने यहां तपस्या की थी. यहां पहुंचना बेहद कठिन है. 



मान्यता है कि कलयुग के अंत तक जोशीमठ के समीप नर-नारायण नाम के दोनों पहाड़ आपस में मिल जाएंगे, जिससे बदरीविशाल के दर्शन नहीं हो पाएंगे, तब भक्तगण भविष्य बदरी में भगवान के विग्रह का दर्शन पूजन कर सकेंगे. 



वृद्ध बदरी

यह स्थान हेलंग से आगे जोशीमठ मार्ग पर पड़ता है. बदरीनाथ से 8 किमी. पहले 1380 मीटर की ऊंचाई पर अलकनंदा नदी की सुरम्य धारों में स्थित है वृद्ध बदरी धाम. ये मंदिर साल भर खुला रहता है. इसे पांचवां बदरी कहा गया है. यहां पर भगवान विष्णु का अत्यन्त सुन्दर विग्रह है. पंचबदरी में हेलंग व जोशीमठ के रास्ते में अणिमठ नामक स्थान पर जो बदरीनारायण का प्राचीन मन्दिर है, वह ही ’वृद्ध बदरी’ है. 



वृद्ध बदरी नाम पड़ने के पीछे एक कहानी है- मान्तया है कि एक बार देव ऋषि नादर मृत्युलोक में भ्रमण कर रहे थे. भ्रमण करते हुए वे बदरीधाम की ओर जाने लगे. इस बीच अपनी थकान मिटाने के लिए वो आणिमठ (अरण्यमठ) नामक स्थान पर विश्राम करने लगे, उन्होंने इस स्थान पर कुछ समय बैठकर भगवान  विष्णु  की अराधना व ध्यान किया तथा विष्णु  से प्रार्थना की कि वो उन्हें दर्शन दें, तब भगवान बदरीनारायण ने एक वृद्ध के रूप में नारद जी को दर्शन दिये, तब से इस स्थान पर बदरी-नारायण की मूर्ति की स्थापना हुई और नाम पड़ा ’वृद्धबदरी’.





 


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