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लोकसभा चुनाव: सैनिक बनेंगे भाग्यविधाता, जानें- पूरा राजनीतिक समीकरण - role of military votes

देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. पहाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है. इन आम चुनावों पर सैनिक वोट और सैनिक प्रभाव को लेकर बड़ी बहस चल रही है और देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समीकरण को बिल्कुल भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है.

लोकसभा चुनाव
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Published : Mar 22, 2019, 4:23 PM IST

Updated : Mar 23, 2019, 4:39 PM IST

देहरादूनः देश में लोकसभा चुनाव हैं, लिहाजा चुनाव को लेकर राजनीतिक विश्लेषण भी लाजमी है और ऐसा ही एक विश्लेषण इन आम चुनावों में सैनिक वोटों को लेकर किया जा रहा है. ऐसे में सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड में सैनिक वोटों को लेकर क्या राजनीतिक समीकरण है और इसके साथ-साथ यह भी समझना जरूरी है कि केवल सैनिक वोट ही नहीं बल्कि सैनिक माहौल का कैसे चुनाव पर असर पड़ने वाला है. आइए हम आपको बतातें है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों की क्या स्थिति है.

लोकसभा चुनाव में भाग्यविधाता बनेंगे सैनिक.

इन आम चुनावों पर सैनिक वोट और सैनिक प्रभाव को लेकर बड़ी बहस चल रही है और देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समीकरण को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. एक यह भी वजह है कि उत्तराखंड मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी सर्विस वोटरों को लेकर अत्यधिक गंभीर हैं.

इसे भी पढ़ें-पांच सालों में तीन गुना हुई टिहरी सांसद की 'लक्ष्मी', शपथ-पत्र में दर्शाया ब्योरा

मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या से मिला जानकारी के मुताबिकउत्तराखंड में सबसे ज्यादा सैनिक वोटर हैं और सर्विस वोटर के माध्यम से इन वोटों को कलेक्ट किया जाएगा. वहीं निर्वाचन विभाग ने इस बार सर्विस वोटरों के लिए पोर्टल के माध्यम से नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वोट कलेक्ट करने का तरीका इजाद किया है. यहां एक बात और समझनी जरूरी है कि हम सर्विस वोटरों को सैनिक वोट से इसलिए जोड़ रहें है क्योकि सर्विस वोटर में 99 फीसदी सैनिक ही हैं, बाकी1 प्रतिशत लोग ही सर्विस वोटर हैं.

अब आपको बता दें कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों का क्या समीकरण है. पूरे प्रदेश में 5 संसदीय सीटों पर सैनिक वोटों को लेकर क्या स्थिति है, आपको बताते हैं.

  • सूबे की 5 संसदीय सीटों पर 1.25 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 88,600 सर्विस वोटर हैं.
  • पौड़ी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 2.5 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 33 हजार के पार सर्विस वोटर हैं.
  • पौड़ी के बाद अल्मोड़ा सीट पर 2.1 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 28 हजार के आस-पास है.
  • टिहरी सीट पर 0.82 फीसदी सर्विस वोटर हैं, जिनकी संख्या 12 के करीब है.
  • टिहरी के बाद नैनीताल सीट पर 0.5 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 10 हजार के करीब है.
  • अंतिम में हरिद्वार संसदीय सीट पर केवल 0.23 फीसदी सर्विस वोटर है जिनकी संख्या 5 हजार के लगभग है.

इन आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो पहाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है. वहीं राज्य में सैनिक वोटों पर बुद्धिजीवी लोग क्या कहते हैं वह भी सुन लीजिए. उत्तराखंड की राजनीति का बड़ा अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र नाथ कौशिक का कहना है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटरों का असर बहुत पुराना है और इसकी झलक उत्तराखंड की राजनीति में पिछले चुनावों में भी साफ देखी गई है. उनका कहना है कि राजनैतिक दल कोई भी हो, लेकिन सैनिक पर कौन सा मुद्दा असर डालता है, ये महत्वपूर्ण होगा और सैनिक उस पर क्या सोचता है यभी निर्णायक रहेगा. वहीं सैनिक वोटों में पौड़ी सीट सबसे आगे है और यहां सैनिक वोटरों की संख्या तकरीब 33,653 है.

उत्तराखंड के ही एक और पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के अनुसार चुनावों पर सैनिक प्रभाव को हम केवल सैनिकों या फिर पूर्व सैनिकों की तादाद का असर ना माना जाए बल्कि सैनिकों के परिजन, आश्रित और रिश्तेदारों को भी इसमें शामिल करना जरूरी है. आंकड़ों के इतर बहुगुणा ने भी बताया कि पौड़ी जिले में सैनिक और पूर्व सैनिकों का राजनैतिक और सामाजिक असर पुराना है, इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि सैनिक वोटरों की एक विशेषता होती कि सैनिकों का वोट एकजुट रहता है और किसी एक विशेष राजनैतिक दल की ओर ही सैनिकों का मत आज तक देखा गया है और वो दल कौन सा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा दल सैनिक के मन को छू पाता है.

देहरादूनः देश में लोकसभा चुनाव हैं, लिहाजा चुनाव को लेकर राजनीतिक विश्लेषण भी लाजमी है और ऐसा ही एक विश्लेषण इन आम चुनावों में सैनिक वोटों को लेकर किया जा रहा है. ऐसे में सैनिक बाहुल्य राज्य उत्तराखंड में सैनिक वोटों को लेकर क्या राजनीतिक समीकरण है और इसके साथ-साथ यह भी समझना जरूरी है कि केवल सैनिक वोट ही नहीं बल्कि सैनिक माहौल का कैसे चुनाव पर असर पड़ने वाला है. आइए हम आपको बतातें है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों की क्या स्थिति है.

लोकसभा चुनाव में भाग्यविधाता बनेंगे सैनिक.

इन आम चुनावों पर सैनिक वोट और सैनिक प्रभाव को लेकर बड़ी बहस चल रही है और देश की सैन्य सेवा में सबसे बड़ा योगदान देने वाले उत्तराखंड में इस समीकरण को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. एक यह भी वजह है कि उत्तराखंड मुख्य निर्वाचन अधिकारी भी सर्विस वोटरों को लेकर अत्यधिक गंभीर हैं.

इसे भी पढ़ें-पांच सालों में तीन गुना हुई टिहरी सांसद की 'लक्ष्मी', शपथ-पत्र में दर्शाया ब्योरा

मुख्य निर्वाचन अधिकारी सौजन्या से मिला जानकारी के मुताबिकउत्तराखंड में सबसे ज्यादा सैनिक वोटर हैं और सर्विस वोटर के माध्यम से इन वोटों को कलेक्ट किया जाएगा. वहीं निर्वाचन विभाग ने इस बार सर्विस वोटरों के लिए पोर्टल के माध्यम से नहीं बल्कि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वोट कलेक्ट करने का तरीका इजाद किया है. यहां एक बात और समझनी जरूरी है कि हम सर्विस वोटरों को सैनिक वोट से इसलिए जोड़ रहें है क्योकि सर्विस वोटर में 99 फीसदी सैनिक ही हैं, बाकी1 प्रतिशत लोग ही सर्विस वोटर हैं.

अब आपको बता दें कि उत्तराखंड में सैनिक वोटों का क्या समीकरण है. पूरे प्रदेश में 5 संसदीय सीटों पर सैनिक वोटों को लेकर क्या स्थिति है, आपको बताते हैं.

  • सूबे की 5 संसदीय सीटों पर 1.25 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 88,600 सर्विस वोटर हैं.
  • पौड़ी लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 2.5 फीसदी सर्विस वोटों के साथ कुल 33 हजार के पार सर्विस वोटर हैं.
  • पौड़ी के बाद अल्मोड़ा सीट पर 2.1 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 28 हजार के आस-पास है.
  • टिहरी सीट पर 0.82 फीसदी सर्विस वोटर हैं, जिनकी संख्या 12 के करीब है.
  • टिहरी के बाद नैनीताल सीट पर 0.5 फीसदी सर्विस वोटर हैं जिनकी संख्या 10 हजार के करीब है.
  • अंतिम में हरिद्वार संसदीय सीट पर केवल 0.23 फीसदी सर्विस वोटर है जिनकी संख्या 5 हजार के लगभग है.

इन आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो पहाड़ की सभी सीटों पर सैनिक वोटों का अच्छा खासा असर है. वहीं राज्य में सैनिक वोटों पर बुद्धिजीवी लोग क्या कहते हैं वह भी सुन लीजिए. उत्तराखंड की राजनीति का बड़ा अनुभव रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र नाथ कौशिक का कहना है कि उत्तराखंड में सैनिक वोटरों का असर बहुत पुराना है और इसकी झलक उत्तराखंड की राजनीति में पिछले चुनावों में भी साफ देखी गई है. उनका कहना है कि राजनैतिक दल कोई भी हो, लेकिन सैनिक पर कौन सा मुद्दा असर डालता है, ये महत्वपूर्ण होगा और सैनिक उस पर क्या सोचता है यभी निर्णायक रहेगा. वहीं सैनिक वोटों में पौड़ी सीट सबसे आगे है और यहां सैनिक वोटरों की संख्या तकरीब 33,653 है.

उत्तराखंड के ही एक और पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के अनुसार चुनावों पर सैनिक प्रभाव को हम केवल सैनिकों या फिर पूर्व सैनिकों की तादाद का असर ना माना जाए बल्कि सैनिकों के परिजन, आश्रित और रिश्तेदारों को भी इसमें शामिल करना जरूरी है. आंकड़ों के इतर बहुगुणा ने भी बताया कि पौड़ी जिले में सैनिक और पूर्व सैनिकों का राजनैतिक और सामाजिक असर पुराना है, इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि सैनिक वोटरों की एक विशेषता होती कि सैनिकों का वोट एकजुट रहता है और किसी एक विशेष राजनैतिक दल की ओर ही सैनिकों का मत आज तक देखा गया है और वो दल कौन सा होगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा दल सैनिक के मन को छू पाता है.

Intro:Note- TT Live U से TT महारानी लक्ष्मी के नाम भेजी गई है।

एंकर- लोकसभा चुनाव को लेकर अब सियासी पारा बढ़ता जाएगा और इसी कड़ी में आज टिहरी लोकसभा सीट से बीजेपी की पूर्व सांसद माला राजलक्ष्मी ने एक बार फिर ताल ठोक दी है। माला राजलक्ष्मी के नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, देहरादून मेयर सुनील उनियाल गामा सहित तमाम विधायक मौजूद रहे। वहीं नामांकन के बाद सबसे पहले क्या बोली सांसद प्रत्याशी माला राज्य लक्ष्मी आइए आपको बताते हैं।


Body:टेहरी लोकसभा सीट से नामांकन करने के बाद ईटीवी भारत से खास बातचीत में बीजेपी की लोकसभा प्रत्याशी माला राजलक्ष्मी ने कहा कि आज यह पल उनके लिए अविस्मरणीय है और इस मौके पर उनके मन में कई बातें उमड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि वह नामांकन कराने के बाद सबसे पहले उन शहीदों का आशीर्वाद लेंगी जिन्होंने राज्य बनने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
देहरादून कलेक्ट्रेट में नामांकन के बाद सबसे पहले बीजेपी की सासंद प्रत्याशी जिला कलेक्ट्रेट परिसर में बने शहीद स्थल पर गयी वही इस दौरान उन्होंने कहा कि टेहरी लोकसभा सीट उत्तराखंड की पहली सीट है और यंहा से मोदी जी का परचम वो लहराएंगी। साथ ही उन्होंने कहा टेहरी लोक सभा क्षेत्र में मोदी की रैली भी जल्द देखने को मिलेगी।
TT Maharani Lakshmi




Conclusion:
Last Updated : Mar 23, 2019, 4:39 PM IST
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