देहरादून: पुलवामा हमले के मद्देनजर जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बड़ा फैसला लिया है. सरकार की ओर से अलगाववादी नेताओं को मिली सुरक्षा वापस ले ली गई है. पुलवामा आतंकी हमले के बाद पूरा सदमे में है. वहीं कल देर रात देवभूमि का एक और लाल शहीद हो गया. जिसके बाद माहौल और गमगीन हो गया है. इस घटना ने लोगों के जख्मों को कुरेदने का काम किया है. ऐसे में कश्मीर में अलगवादी नेताओं की सुरक्षा हटाने पर उत्तराखंड के नेताओं का क्या कहना है आइये जानते हैं...
पुलवामा आतंकी हमले के बाद पूरे देश में गुस्सा है. वहीं देवभूमि में यह गुस्सा दोगुना इसलिए है क्योंकि उत्तराखंड के लोगों ने बीते रोज अपने एक और लाल की कुर्बानी दी है. ऐसे में केंद्र सरकार ने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा को लेकर बड़ा फैसला लिया है. लेकिन सरकार का ये फैसला उत्तराखंड के नेताओं को नाकाफी लग रहा है.
सरकार के इस फैसले पर बोलते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत ने कहा है कि सरकार को ये फैसला बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था. लेकिन अब भी ये सरकार की बहुत अच्छी पहल है. उन्होंने कहा कि अलगवादी नेताओं की सुरक्षा लेना ही काफी नहीं है, सरकार को पाकिस्तान को इस हमले का कड़ा जवाब देना होगा.
वहीं इस मामले पर बोलते हुए मसूरी से बीजेपी के विधायक और पूर्व सैनिक रह चुके गणेश जोशी ने कहा सुरक्षा केवल अलगाववादी नेताओं की ही नहीं बल्कि उन नेताओं या फिर उन लोगों की भी हटनी चाहिए जो इस तरह के देशद्रोहियों के समर्थन में खड़े होते हैं.
अलगाववादियों की सुरक्षा में करोड़ों खर्च
राज्य सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 5 साल में 309.35 करोड़ रुपये अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में लगाए गए. निजी सुरक्षा गार्ड (PSO) और अन्य सुरक्षा पर खर्च हो गए. इसके अलावा इनकी सुरक्षा में चलने वाली गाड़ियों में डीजल के मद में 26.41 करोड़ खर्च किए गए. साथ ही 20.89 करोड़ इनके लिए होटल के इंतजाम पर खर्च किए गए.
विधानसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक श्रीनगर में सबसे ज्यादा 804 राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जबकि जम्मू क्षेत्र में 637 और लद्दाख क्षेत्र में 31 नेता शामिल हैं. सूत्रों के अनुसार, 440 राजनीतिक कार्यकर्ताओं में 294 अनारक्षित राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हैं, जिन्हें होटल की सुविधा भी मुहैया कराई गई.