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हुड़के की थाप और चूड़ियों की खनक के साथ यहां होती है धान की रोपाई, सदियों से चली आ रही ये परंपरा

बागेश्वर के कपकोट में महिलाएं धान की रोपाई करते हुए लोकगीत गा रही हैं. जोकि सदियों पुरानी परंपरा है. महिलाओं का कहना है कि वे इस परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं.

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Published : Jul 27, 2019, 10:20 PM IST

हुड़के की थाप हो रही धान की रोपाई.

बागेश्वर: कपकोट में महिलाओं ने धान की रोपाई की सदियों पुरानी परंपरा को जीवीत रखा है. यहां धान की रोपाई करती महिलाएं सदियों से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लोक गीत गा रही हैं. दरअसल, बागेश्वर के लोग धान की रोपाई को उत्सव की तरह मनाते हैं. इस दौरान ग्रामीण भूमि देवता की पूजा-अर्चना कर ईश्वर से अच्छी फसल उत्पादन और पृथ्वी को हमेशा हरा-भरा रखने की प्रार्थना करते हैं. इसके बाद ग्रामीण लोकगीतों का गायन कर सहभागिता के साथ रोपाई करने में जुट जाते हैं.

हुड़के की थाप हो रही धान की रोपाई.

धान की रोपाई के समय गाए जाने वाले लोकगीत लोकगाथाओं और देवी-देवताओं की ऐतिहासिक कथाओं से पिरोए हुए होते हैं. यहां के किसान परंपरागत वाद्य यंत्र हुड़का बजाते हैं. साथ ही हुड़के की थाप और महिलाओं के चूड़ियों की खनक से वातावरण सुरमय हो जाता है. एक किसान हुड़का के साथ गाथाएं शुरू करता है और बाकी उसके पीछे-पीछे उसे दोहराते हैं.

पढ़ें: बदरीनाथ हाईवे पर ट्रक अनियंत्रित होकर अलकनंदा में समाया, ड्राइवर लापता

वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों के समय से ये परंपरा चली आ रही है और वे भी इसे आगे बढ़ाएंगे. धान की रोपाई करती महिलाओं ने कहा कि लोकगीत गाते हुए धान की रोपाई करने में काफी आनंद आता है. साथ ही गांव के सभी लोग एक साथ एक ही जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं, जिससे काफी खुशी मिलती है.

बागेश्वर: कपकोट में महिलाओं ने धान की रोपाई की सदियों पुरानी परंपरा को जीवीत रखा है. यहां धान की रोपाई करती महिलाएं सदियों से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लोक गीत गा रही हैं. दरअसल, बागेश्वर के लोग धान की रोपाई को उत्सव की तरह मनाते हैं. इस दौरान ग्रामीण भूमि देवता की पूजा-अर्चना कर ईश्वर से अच्छी फसल उत्पादन और पृथ्वी को हमेशा हरा-भरा रखने की प्रार्थना करते हैं. इसके बाद ग्रामीण लोकगीतों का गायन कर सहभागिता के साथ रोपाई करने में जुट जाते हैं.

हुड़के की थाप हो रही धान की रोपाई.

धान की रोपाई के समय गाए जाने वाले लोकगीत लोकगाथाओं और देवी-देवताओं की ऐतिहासिक कथाओं से पिरोए हुए होते हैं. यहां के किसान परंपरागत वाद्य यंत्र हुड़का बजाते हैं. साथ ही हुड़के की थाप और महिलाओं के चूड़ियों की खनक से वातावरण सुरमय हो जाता है. एक किसान हुड़का के साथ गाथाएं शुरू करता है और बाकी उसके पीछे-पीछे उसे दोहराते हैं.

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वहीं, ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों के समय से ये परंपरा चली आ रही है और वे भी इसे आगे बढ़ाएंगे. धान की रोपाई करती महिलाओं ने कहा कि लोकगीत गाते हुए धान की रोपाई करने में काफी आनंद आता है. साथ ही गांव के सभी लोग एक साथ एक ही जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं, जिससे काफी खुशी मिलती है.

Intro:एंकर - यूं तो देवभूमि उत्तराखण्ड अपनी प्राकृतिक छटा के लिए विश्व विख्यात है ,पर इसके अलावा भी ऊपर वाले ने यहां कई और भी नेमतें बख्शी हैै। यहां के लोकगीत, लोकसंस्कृति, लोकगाथाओं और लोक परंपराओं की अपनी एक अलग ही पहचान है। अगर आपने यहां की नैंसृगिक सौंदर्य और रीति रिवाज का आनंद लेना है तो इन दिनों कुमांऊ के पर्वतीय क्षेत्रों में हो रही धान की रुपाई देखना न भुलें। इस अनूठी परंपरा की खास बात यह है कि अनेकता में एकता ही भावना को भी जागृत करने के साथ ही सदियों से चली आ रही लोकगीतों और लोककलाओं का संरक्षण भी कर उसे आगे बढ़ाने का काम भी करती है। विशेषकर बागेश्वर के विभिन्न ग्रामीण अंचलों में धान की रुपाई जोर शोर से चल रही है। धान की रोपाई कर रहीं महिलाएं आज भी सदियों से चली आ रही सांस्कृतिक परंपरा को जीवंत रखते हुए आगे बढ़ा रही हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में रुपाई को यहां के लोग उत्सव के रूप में मनाते है। ग्रामीण धान की रुपाई करने से पूर्व भूमि देवता की पूजा-अर्चना कर ईश्वर से अच्छी फसल उत्पादन और पृथ्वी के हमेशा हरे-भरे बने रहने की प्रार्थना करते है। इसके बाद सभी अपनी पारंपरिक लोकगाथाओं और लोकगीतों का गायन कर सहभागिता के साथ रुपाई करने में जुट जाते हैं।

पेश है , नीरज पाण्डेय की बागेश्वर से खास रिपोर्ट -


वी.ओ. 1 - बागेश्वर के कपकोट क्षेत्र में हल जोतते और धान की रूपायी करने के साथ लोक गीत गाते हुए ये महिला कुछ और नही बल्कि प्राचीन समय से चली आ रही परम्परा को आज भी जीवित रखने का प्रयास कर रही है। आज के इस दौर में जहां महिलाये और पुरूष आपसी मेल जोल व एकता का परिचय देती है। वहंी पूर्वजों की वीर गाथाओं का वर्णन भी इन लोक गीतों के माध्यम से किया जाता है। माना जाता है इससे रोपाई कार्य में तेजी आती है और महिलाओं और पुरूष का मंनोरंजन भी होता है।

बाईट 1 - भगवती नगरकोटी, युवा महिला काश्तकार।
बाईट 2 - कविता नगरकोटी, युवा महिला काश्तकार।

वी.ओ. 2 - धान की रोपाई के समय गाये जाने वाले लोकगीत जो कि स्थानीय लोकगाथाओं पर आधारित और देवी-देवताओं की ऐतिहासिक कथाओं से पिरोये हुए होते है। वहीं यहां के किसान परम्परागत वाद्य यंत्र हुड़के की थाप और महिलाओं के चूड़ियों की खनक से अति सुरमय प्रतित होते है। एक किसान वाद्य यंत्र हुड़का के साथ गाथाए शुरू करता है बाकी इसकेा दोहराते है।

बाईट 3 - बिमला देवी, महिला काश्तकार।

वी.ओ. 3 - रुपाई के दौरान हुड़के की थाप पर गाए जाने वाले लोक गाथाओं को कपकोट के महेश राम बखुबी आज भी मधुर आवाज में निर्बाध रुप से गाते हैं। महेश राम दिव्यांग हैं। इसके बाद भी हुडकिया बौल जैसी पौराणिक परम्परा को जीवित रखने का इनका जज्बा काबिलेतारीफ है। उनकी आवाज में गाए जाने वाले लोक गीत हर किसी को उनकी तरफ आकर्षित कर रहे हैं।

बाईट 4 - तनुज तिरुवा, सभासद कपकोट।

एफवीओ - इस बदलते युग का प्रभाव अब उत्तराखण्ड की संस्कृति में भी सीधे तौर पर पड रहा है। अगर समय रहते इस ओर ध्यान नही दिया गया तो इस तरह की परम्पराये महज इतिहास बन कर रह जाएगी। जरूरत है इन्हे सहेजने व जिन्दा रखने की।Body:पेश है , नीरज पाण्डेय की बागेश्वर से खास रिपोर्ट -


वी.ओ. 1 - बागेश्वर के कपकोट क्षेत्र में हल जोतते और धान की रूपायी करने के साथ लोक गीत गाते हुए ये महिला कुछ और नही बल्कि प्राचीन समय से चली आ रही परम्परा को आज भी जीवित रखने का प्रयास कर रही है। आज के इस दौर में जहां महिलाये और पुरूष आपसी मेल जोल व एकता का परिचय देती है। वहंी पूर्वजों की वीर गाथाओं का वर्णन भी इन लोक गीतों के माध्यम से किया जाता है। माना जाता है इससे रोपाई कार्य में तेजी आती है और महिलाओं और पुरूष का मंनोरंजन भी होता है।

बाईट 1 - भगवती नगरकोटी, युवा महिला काश्तकार।
बाईट 2 - कविता नगरकोटी, युवा महिला काश्तकार।

वी.ओ. 2 - धान की रोपाई के समय गाये जाने वाले लोकगीत जो कि स्थानीय लोकगाथाओं पर आधारित और देवी-देवताओं की ऐतिहासिक कथाओं से पिरोये हुए होते है। वहीं यहां के किसान परम्परागत वाद्य यंत्र हुड़के की थाप और महिलाओं के चूड़ियों की खनक से अति सुरमय प्रतित होते है। एक किसान वाद्य यंत्र हुड़का के साथ गाथाए शुरू करता है बाकी इसकेा दोहराते है।

बाईट 3 - बिमला देवी, महिला काश्तकार।

वी.ओ. 3 - रुपाई के दौरान हुड़के की थाप पर गाए जाने वाले लोक गाथाओं को कपकोट के महेश राम बखुबी आज भी मधुर आवाज में निर्बाध रुप से गाते हैं। महेश राम दिव्यांग हैं। इसके बाद भी हुडकिया बौल जैसी पौराणिक परम्परा को जीवित रखने का इनका जज्बा काबिलेतारीफ है। उनकी आवाज में गाए जाने वाले लोक गीत हर किसी को उनकी तरफ आकर्षित कर रहे हैं।

बाईट 4 - तनुज तिरुवा, सभासद कपकोट।
Conclusion:एफवीओ - इस बदलते युग का प्रभाव अब उत्तराखण्ड की संस्कृति में भी सीधे तौर पर पड रहा है। अगर समय रहते इस ओर ध्यान नही दिया गया तो इस तरह की परम्पराये महज इतिहास बन कर रह जाएगी। जरूरत है इन्हे सहेजने व जिन्दा रखने की।
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