बागेश्वरः उत्तरायणी मेले पर कपकोट के कई ग्रामीणों की आजीविका निर्भर करती है. उच्च हिमालयी और दूरस्थ गांवों के लोग साल भर रिंगाल के उत्पाद बनाकर मेले के लिए तैयारी करते हैं. हिमालयी क्षेत्र में होने वाले कुत्तों की भी मेले में काफी मांग रहती है. मेले में लोग रिंगाल के उत्पाद और कुत्तों की जमकर खरीदारी भी करते हैं. जिसके बदले में ग्रामीणों की आमदनी चल पाती है, लेकिन बीते सालों से ग्रामीणों का कारोबार काफी मंदा हो गया है. मेले पर कोरोना की मार पड़ने से गांवों से आने वाले कारोबारियों के लिए ग्राहक जुटाना मुश्किल हो रहा है. सालों से मेले में आकर अच्छा मुनाफा कमाने वाले भी कुदरत की मार के आगे वेबस नजर आ रहे हैं.
दरअसल, कोरोना संक्रमण के चलते उत्तरायणी मेला केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित रह गया है. हालांकि, स्थानीय उत्पादकों को मेले में दुकान लगाने की अनुमति मिली हुई है, लेकिन मेले में ग्राहकों के नहीं होने से उत्पादक और कारोबारियों में मायूसी है. मकर संक्राति के दिन अच्छी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी से कुछ उत्पादकों को खरीदार भी मिले, लेकिन आज बाजार में अपेक्षाकृत भीड़ बेहद कम थी, जिसका असर रिंगाल के उत्पाद और हिमालयी क्षेत्रों से आए कुत्तों की बिक्री पर भी दिखाई दिया.
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वहीं, कपकोट के दूरस्थ गांव मिकिलाखलपट्टा, सन व सूफी से कुत्ते और रिंगाल के उत्पाद बेचने आए ग्रामीण व्यापारी मेला नहीं होने से खासे निराश हैं. वे बताते हैं कि मेले से उनकी साल भर की आश रहती है. कोरोना की वजह से मेला नहीं होने पर उनका काफी नुकसान हो गया है. वो मेले पर ही निर्भर रहते हैं, लेकिन अब तक कुछ भी नहीं बिका है. रहने-खाने का भाड़ा भी जेब से भरना पड़ रहा है. पिछले कई सालों में पहली बार ऐसी स्थिति देखी है. उनकी ओर से मेले के लिए तैयार किए गए सामान की मेहनत भी बेकार चली गई है.