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Bageshwar Ringal Business: विलुप्ति के कगार पर उत्तरायणी मेले की पहचान रिंगाल कारोबार, जानिए कारण - रिंगाल

उत्तरायणी मेले की पहचान रिंगाल के कारोबारी अब निराश होने लगे हैं. दरअसल रिंगाल से वस्तुएं बनाने वाले व्यापारियों को अब उनकी मेहनत के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं. जिस कारण अब कुछ काश्तकारों ने अपने पैतृक धंधे से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है. इसका बड़ा कारण विपणन व्यवस्था का न हो पाना माना जा रहा है.

Ringal business of Bageshwar
Ringal business of Bageshwar
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Published : Jan 19, 2023, 9:48 AM IST

विलुप्ति के कगार पर उत्तरायणी मेले की पहचान रिंगाल कारोबार.

बागेश्वर: जिले का दानपुर क्षेत्र रिंगाल से बनाई गई कई तरह की आकर्षक वस्तुओं के लिए मशहूर हैं. रिंगाल से बनी वस्तुओं की कुछ अलग ही खास पहचान है. लगभग 3 हजार से 7 हजार फीट की उंचाई पर बांस प्रजाति का रेशेदार रिंगाल प्रचुर मात्रा में होता है. रिंगाल से दैनिक उपयोग की वस्तुएं चटाइयां, टोकरियां, सूपे, आसन समेत कई आकर्षक वस्तुएं बनाई जाती हैं.

उच्च हिमालयी क्षेत्र दानपुर में रिंगाल का यह काम प्राचीन समय से चला आ रहा है. अपनी जरूरतों के मुताबिक स्थानीय लोग ढोका, ढलिया, अनाज छानने की छलनी, चटाई, रोटी रखने के लिए छापरी आदि जरूरत की चीजों को स्वयं बना लेते हैं. कुछ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवार जिनके पास पर्याप्त खेती नहीं है, वह वन पंचायत के माध्यम से रिंगाल का दोहन कर उक्त वस्तुओं को बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं.

इस काम से जुड़े लोगों ने उद्योग विभाग व कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं की मदद से रिंगाल के नए-नए डिजाइन निकालने का प्रशिक्षण भी लिया. लेकिन रिंगाल के काम ने गति नहीं पकड़ी, जिसका कारण उचित विपणन व्यवस्था ना हो पाना है. इस काम में जुड़ा लगभग हर परिवार अब विपणन की समस्या से जूझने लगा है. अभी उत्तरायणी मेले में आए व्यापारी भी उनकी मेहनत के अनुरूप मूल्य ना मिलने से निराश हैं.
ये भी पढ़ें- Jollygrant Airport Buddhist Mantra: जौलीग्रांट पर बौद्ध मंत्र वाले पिलर से शंकराचार्य को ऐतराज, बदले जाएंगे

अत्यधिक श्रम, समय और उचित मूल्य नहीं मिलने से ये लोग अब इस परंपरागत व्यापार से दूर भाग रहे हैं. रिंगाल से संबंधित उद्योग नहीं लगने से यहां कुछ काश्तकारों ने अपने पैतृक धंधे से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है. हालांकि, रिंगाल के उत्पादों के दीवानों की चाहत उन्हें आगे कुछ नया कर दिखाने की प्रेरणा भी देती रहती है.

विलुप्ति के कगार पर उत्तरायणी मेले की पहचान रिंगाल कारोबार.

बागेश्वर: जिले का दानपुर क्षेत्र रिंगाल से बनाई गई कई तरह की आकर्षक वस्तुओं के लिए मशहूर हैं. रिंगाल से बनी वस्तुओं की कुछ अलग ही खास पहचान है. लगभग 3 हजार से 7 हजार फीट की उंचाई पर बांस प्रजाति का रेशेदार रिंगाल प्रचुर मात्रा में होता है. रिंगाल से दैनिक उपयोग की वस्तुएं चटाइयां, टोकरियां, सूपे, आसन समेत कई आकर्षक वस्तुएं बनाई जाती हैं.

उच्च हिमालयी क्षेत्र दानपुर में रिंगाल का यह काम प्राचीन समय से चला आ रहा है. अपनी जरूरतों के मुताबिक स्थानीय लोग ढोका, ढलिया, अनाज छानने की छलनी, चटाई, रोटी रखने के लिए छापरी आदि जरूरत की चीजों को स्वयं बना लेते हैं. कुछ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवार जिनके पास पर्याप्त खेती नहीं है, वह वन पंचायत के माध्यम से रिंगाल का दोहन कर उक्त वस्तुओं को बनाकर अपनी आजीविका चलाते हैं.

इस काम से जुड़े लोगों ने उद्योग विभाग व कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं की मदद से रिंगाल के नए-नए डिजाइन निकालने का प्रशिक्षण भी लिया. लेकिन रिंगाल के काम ने गति नहीं पकड़ी, जिसका कारण उचित विपणन व्यवस्था ना हो पाना है. इस काम में जुड़ा लगभग हर परिवार अब विपणन की समस्या से जूझने लगा है. अभी उत्तरायणी मेले में आए व्यापारी भी उनकी मेहनत के अनुरूप मूल्य ना मिलने से निराश हैं.
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अत्यधिक श्रम, समय और उचित मूल्य नहीं मिलने से ये लोग अब इस परंपरागत व्यापार से दूर भाग रहे हैं. रिंगाल से संबंधित उद्योग नहीं लगने से यहां कुछ काश्तकारों ने अपने पैतृक धंधे से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है. हालांकि, रिंगाल के उत्पादों के दीवानों की चाहत उन्हें आगे कुछ नया कर दिखाने की प्रेरणा भी देती रहती है.

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