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बागेश्वरः झिरोली स्टोन क्रशर यूनिट बंद, हजारों परिवारों के भविष्य पर गहराया संकट

काफलीगैर तहसील के झिरोली स्थित स्टोन क्रशर यूनिट को बंद करने के निर्णय से हजारों लोग प्रभावित होंगे. खान विभाग के इस निर्णय से क्षेत्र में पलायन भी बढ़ेगा.

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Published : Feb 29, 2020, 1:20 PM IST

झिरोली स्टोन क्रशर यूनिट
झिरोली स्टोन क्रशर यूनिट

बागेश्वरः जिले के काफलीगैर तहसील अंतर्गत झिरोली में स्थित स्टोन क्रशर यूनिट को बंद कर दिया गया है. वर्ष 1972 में स्थापित अल्मोड़ा मैग्नेसाइट कंपनी के इस स्टोन क्रशर यूनिट को खनन विभाग ने बंद करने का निर्णय लिया है. ऐसे में सरकार के इस कदम से एक हजार परिवारों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है. छह माह पहले खनन विभाग ने सभी मानक पूरे होने के बावजूद ई-रवन्ना को लेकर उपखनिज को बेचे जाने पर रोक लगा दी, जिसके बाद से कंपनी में काम करने वाले करीब एक हजार कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए हैं.

झिरोली स्टोन क्रशर यूनिट बंद.

बता दें कि अप्रत्यक्ष रूप से भी पांच हजार की जनता प्रभावित हो रही है. पिछले कई दशकों से इस कंपनी के कारण क्षेत्र के 16 गांवों से बिल्कुल भी पलायन नहीं हुआ था. अब कंपनी पर आर्थिक संकट छाने से पूरे क्षेत्र पर पलायन का खतरा भी मंडराने लगा है. दरअसल, 45 साल पहले अल्मोड़ा जिले के काफलीगैर (अब बागेश्वर जिला) में झिरोली मैग्नेसाइट कंपनी की स्थापना की गई थी, जिसमें स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया. वर्तमान में उन कर्मचारियों की तीसरी पीढ़ी यहां कार्य कर रही है.

यूनियन के ज्वाइंट सेकेट्री मनोज तिवारी ने बताया कि दो दशक पहले कंपनी पर आर्थिक संकट आने के बाद 2004 में कंपनी से निकलने वाले मलबे का सदुपयोग करने की इजाजत दी गई. 4 फरवरी 2003 को कंपनी को अनुमति मिलने के बाद यहां खनन कार्य शुरू हुआ, जिसका लाभ क्षेत्र की जनता को होने लगा. निर्माण कार्यों में यहां के उपखनिज का उपयोग होने लगा, लेकिन छह माह पूर्व खनन विभाग ने खनन के ई-रवन्ना पर रोक लगा दी, जबकि कंपनी के पास सभी स्वीकृतियां थी.

यूनियन के उपाध्यक्ष भगवत सिंह रौतेला ने बताया कि विभाग के इस मनमाने रवैये से अब यहां काम करने वाले कर्मचारियों पर प्रत्यक्ष और कंपनी की मदद से पलने वाले परिवारों पर अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ रहा है. सरकार से कई बार गुहार लगाने के बावजूद संकट दूर नहीं होने पर क्षेत्रवासियों में गुस्सा और नाराजगी है. ग्रामीण अब खनन खोले जाने की मांग को लेकर आंदोलन का मन बना चुके हैं. वहीं, इस मामले में कंपनी के प्रबंध निदेशक योगेश शर्मा का मानना है कि खनन विभाग बिना वजह की आपत्तियां लगाकर क्षेत्र की जनता के साथ ज्यादती कर रहा है. सरकार को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए. अगर ऐसा ही चला तो एक दिन कंपनी पर ताले लटक जाएंगे, जिसका असर क्षेत्र की हजारों की जनता पर पड़ेगा.

यह भी पढ़ेंः अल्मोड़ा विकास प्राधिकरण का विरोध तेज, कांग्रेसियों ने सरकार को बताया पहाड़ विरोधी

बीते दिनों जिले के दौरे पर आए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से जब फैक्ट्री की समस्या पर पूछा गया तो उन्होंने बताया कि फैक्ट्री के स्टोन क्रशर बन्द होने का मामला मेरे संज्ञान है. जल्द इस समस्या समाधान कर बन्द पड़ी हुई यूनिट को शुरू किया जाएगा. बहरहाल, राज्य एवं जिले को करोड़ों का राजस्व देने वाले एक मात्र सबसे बड़े उद्योग की एक यूनिट बन्द होने पर अब इस उद्योग पर वित्तीय संकट के बादल छाने लगे हैं. युवाओं का रोजगार खत्म होने की कगार पर है. ऐसे में जरूरत है कि राज्य सरकार जल्द इस पर कोई फैसला ले.

बागेश्वरः जिले के काफलीगैर तहसील अंतर्गत झिरोली में स्थित स्टोन क्रशर यूनिट को बंद कर दिया गया है. वर्ष 1972 में स्थापित अल्मोड़ा मैग्नेसाइट कंपनी के इस स्टोन क्रशर यूनिट को खनन विभाग ने बंद करने का निर्णय लिया है. ऐसे में सरकार के इस कदम से एक हजार परिवारों के भविष्य पर संकट खड़ा हो गया है. छह माह पहले खनन विभाग ने सभी मानक पूरे होने के बावजूद ई-रवन्ना को लेकर उपखनिज को बेचे जाने पर रोक लगा दी, जिसके बाद से कंपनी में काम करने वाले करीब एक हजार कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़ गए हैं.

झिरोली स्टोन क्रशर यूनिट बंद.

बता दें कि अप्रत्यक्ष रूप से भी पांच हजार की जनता प्रभावित हो रही है. पिछले कई दशकों से इस कंपनी के कारण क्षेत्र के 16 गांवों से बिल्कुल भी पलायन नहीं हुआ था. अब कंपनी पर आर्थिक संकट छाने से पूरे क्षेत्र पर पलायन का खतरा भी मंडराने लगा है. दरअसल, 45 साल पहले अल्मोड़ा जिले के काफलीगैर (अब बागेश्वर जिला) में झिरोली मैग्नेसाइट कंपनी की स्थापना की गई थी, जिसमें स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया. वर्तमान में उन कर्मचारियों की तीसरी पीढ़ी यहां कार्य कर रही है.

यूनियन के ज्वाइंट सेकेट्री मनोज तिवारी ने बताया कि दो दशक पहले कंपनी पर आर्थिक संकट आने के बाद 2004 में कंपनी से निकलने वाले मलबे का सदुपयोग करने की इजाजत दी गई. 4 फरवरी 2003 को कंपनी को अनुमति मिलने के बाद यहां खनन कार्य शुरू हुआ, जिसका लाभ क्षेत्र की जनता को होने लगा. निर्माण कार्यों में यहां के उपखनिज का उपयोग होने लगा, लेकिन छह माह पूर्व खनन विभाग ने खनन के ई-रवन्ना पर रोक लगा दी, जबकि कंपनी के पास सभी स्वीकृतियां थी.

यूनियन के उपाध्यक्ष भगवत सिंह रौतेला ने बताया कि विभाग के इस मनमाने रवैये से अब यहां काम करने वाले कर्मचारियों पर प्रत्यक्ष और कंपनी की मदद से पलने वाले परिवारों पर अप्रत्यक्ष रूप से असर पड़ रहा है. सरकार से कई बार गुहार लगाने के बावजूद संकट दूर नहीं होने पर क्षेत्रवासियों में गुस्सा और नाराजगी है. ग्रामीण अब खनन खोले जाने की मांग को लेकर आंदोलन का मन बना चुके हैं. वहीं, इस मामले में कंपनी के प्रबंध निदेशक योगेश शर्मा का मानना है कि खनन विभाग बिना वजह की आपत्तियां लगाकर क्षेत्र की जनता के साथ ज्यादती कर रहा है. सरकार को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए. अगर ऐसा ही चला तो एक दिन कंपनी पर ताले लटक जाएंगे, जिसका असर क्षेत्र की हजारों की जनता पर पड़ेगा.

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बीते दिनों जिले के दौरे पर आए प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत से जब फैक्ट्री की समस्या पर पूछा गया तो उन्होंने बताया कि फैक्ट्री के स्टोन क्रशर बन्द होने का मामला मेरे संज्ञान है. जल्द इस समस्या समाधान कर बन्द पड़ी हुई यूनिट को शुरू किया जाएगा. बहरहाल, राज्य एवं जिले को करोड़ों का राजस्व देने वाले एक मात्र सबसे बड़े उद्योग की एक यूनिट बन्द होने पर अब इस उद्योग पर वित्तीय संकट के बादल छाने लगे हैं. युवाओं का रोजगार खत्म होने की कगार पर है. ऐसे में जरूरत है कि राज्य सरकार जल्द इस पर कोई फैसला ले.

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