बागेश्वर/नैनीतालः कुमाऊं में मां नंदा सुनंदा को कुल देवी के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि मां नंदा सुनंदा साल में एक बार अपने मायके यानी कुमाऊं आती हैं. यही वजह कि हर साल मां नंदा सुनंदा की प्रतिमा तैयार कर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. मां नंदा सुनंदा प्रतिमाएं कदली यानी केले के पेड़ से बनाई जाती है. नैनीताल में भी कदली वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण किया गया है. उधर, बागेश्वर में कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य और विधायक पार्वती दास ने मां कोट भ्रामरी मंदिर डंगोली में आयोजित तीन दिवसीय नंदा अष्टमी मेले का उद्घाटन किया.
कदली वृक्ष से मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माणः सरोवर नगरी नैनीताल में मा नंदा सुनंदा के 121वें महोत्सव का आगाज हो चुका है. इसी कड़ी में रामसेवक सभा के कलाकारों ने कदली वृक्ष से नैना देवी मंदिर में मां नंदा सुनंदा की सुंदर प्रतिमाओं का निर्माण किया. अब शनिवार की सुबह ब्रह्म मुहूर्त में मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं को भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाएगा.
प्रतिमा निर्माण में लगे चंद्र प्रकाश शाह ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिमा को केले के पेड़ से बनाया जाता है. प्रतिमा निर्माण में रुई, बांस, पाती का इस्तेमाल किया जाता है. जिससे मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण होता है. जिसके निर्माण में करीब 24 घंटे से ज्यादा का समय लगता है. प्रतिमा निर्माण के बाद सोने और चांदी के आभूषणों से मां की प्रतिमाओं को सजाया जाता है. जिसके बाद रात 12 बजे नैना देवी मंदिर के मुख्य पंडाल में स्थापित किया जाता है. इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त में मां की प्रतिमाओं को भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाता है.
मां नंदा सुनंदा खुद धारण करती हैं अपना स्वरूप: मूर्ति कलाकार आरती बताती हैं कि वो करीब 10 सालों से मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण करने हल्द्वानी से नैनीताल आती हैं. डीएसबी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वो रामसेवक सभा से जुड़ीं. इसके बाद से प्रतिमा निर्माण के काम में उनकी रुचि बढ़ी और 10 सालों से लगातार मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों का निर्माण कर रही हैं. आरती बताती हैं कि वो प्रतिमाओं में केवल रंग भरने का काम करती हैं. मां नंदा सुनंदा अपना स्वरूप खुद धारण करती हैं. मां का स्वरूप कभी हंसता हुआ होता है तो कभी दुख भरा. जिससे अनुमान लगाया जाता है कि आने वाला साल कैसा होगा?
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प्रतिमा निर्माण में प्राकृतिक रंगों का होता है प्रयोगः प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे कलाकार बताते हैं कि प्रतिमा में जो भी रंग और सामान इस्तेमाल किए जाते हैं, वो पूरी तरह से इको फ्रेंडली होते हैं. जिसको बांस, कपड़ा, रूई से बनाया जाता. इको फ्रेंडली होने की वजह से डोले को नैनी झील में विसर्जित करने पर कोई दुष्परिणाम नहीं होता है. झील के पानी पर बुरा असर नहीं पड़ता है.
बकरी की बलि के पीछे है रोचक कथाः वहीं, जानकार बताते हैं कि एक बार मां नंदा सुनंदा अपने ससुराल जा रही थीं. तभी राक्षण रूपी भैंस ने नंदा सुनंदा का पीछा किया. जिनसे बचने के लिए मां नंदा सुनंदा केले के पेड़ के पीछे छुप गईं. तभी वहां खडे़ बकरे ने उस केले के पत्तों को खा लिया. जिसके बाद राक्षण रूपी भैंस ने मां नंदा सुनंदा को मार दिया. जिसके बाद से ही बकरी की बलि देनी की भी प्रथा है. इस घटना के बाद से ही मां नंदा सुनंदा की याद में मेला मनाया जाता है. जिसके तहत मां अष्टमी के दिन स्वर्ग से धरती में अपने ससुराल आती हैं. कुछ दिन यहां रह कर वापस लौट जाती हैं.
बागेश्वर में नंदाष्टमी मेले का आगाजः महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्री रेखा आर्य और विधायक पार्वती दास ने मां कोट भ्रामरी मंदिर डंगोली में आयोजित तीन दिवसीय नंदाष्टमी मेले का उद्घाटन किया. इस अवसर पर उन्होंने मां कोट भ्रामरी मंदिर में पूजा अर्चना कर प्रदेश की खुशहाली की कामना की. साथ ही विभिन्न विभागों के स्टॉलों का अवलोकन भी किया. रेखा आर्य ने अपने संबोधन में कहा कि मेले हमारी संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं को संजोए रखने का काम करते हैं.
मेले हमारी धार्मिक परंपराओं को आगे आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने का मुख्य माध्यम है. जब संचार और मनोरंजन के कोई साधन नहीं हुआ करते थे, तब मेले ही सामाजिक गठबंधनों को मजबूत करने के काम करते थे. प्रदेश सरकार मेलों को भव्यता रूप देने के लिए प्रतिबद्ध है. मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को संवारने का काम हो रहा है.