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बागेश्वर जिला अस्पताल में डायलिसिस सेवा शुरू, सीएम धामी ने की थी घोषणा - Start of Diasis Center

बागेश्वर जनपद के लोगों के लिए राहत भरी खबर है. जिला अस्पताल का के डायसिस सेंटर में लोगों को डायलिसिस की सुविधा मिलने लगी है. अब डायलिसिस के लिए लोगों को अन्य जनपदों का रुख नहीं करना पड़ेगा.

Bageshwar
बागेश्वर
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Published : Mar 26, 2022, 11:54 AM IST

बागेश्वर: लंबे इंतजार के बाद बागेश्वर जिले के लोगों को डायलिसिस की सुविधा मिल गई है, जिला अस्पताल के डायसिस सेंटर में लोगों को डायलिसिस की सुविधा मिलने लगी है. 12 मार्च से अब तक 19 लोगों का डायलिसिस भी किया जा चुका है. डायलिसिस सेंटर का संचालन हंस फाउंडेशन कर रहा है. इसके लिए सरकार का फाउंडेशन के साथ करार हुआ है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले कार्यकाल में सूबे के सभी जिलों में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा की थी. सीएम की घोषणा के बाद साल 2021 के अंत में जिला अस्पताल परिसर में डायलिसिस केंद्र के लिए भवन बना दिया गया था. चुनाव आचार संहिता के कारण डायलिसिस सेंटर के संचालन में थोड़ी परेशानी जरूर आई, लेकिन अब डायलिसिस सेंटर का संचालन हो गया है.

बागेश्वर जिला अस्पताल में डायलिसिस सेवा शुरू.

जिला अस्पताल के सीएमएस वीके टम्टा ने बताया कि अब तक सेंटर में 19 लोगों का डायलिसिस किया जा चुका है. डायलिसिस की सुविधा न होने के कारण किडनी की बीमारी से जूझ रहे लोगों को हल्द्वानी और दिल्ली जाना पड़ता था. इसमें समय के साथ ही धन और समय की बर्बादी होती थी, जिले के लोग लंबे समय से डायलिसिस की सुविधा दिलाने की मांग कर रहे थे. अब लोगों की मुराद पूरी हो गई है.

अन्य जनपदों को भी मिलेगा लाभ: डायलिसिस की सुविधा का न केवल जिले के लोगों को लाभ मिलेगा बल्कि पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग क्षेत्र और अल्मोड़ा जिले के लोगों को भी लाभ मिलेगा. साथ ही गढ़वाल के चमोली जिले के सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा.
पढ़ें- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आज पहुंचेंगे देहरादून, कल दिव्य प्रेम सेवा मिशन के समारोह में होंगे शामिल

क्या है डायलिसिस: डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है. डायलिसिस की जरूरत तब पड़ती है, जब किसी व्यक्ति के वृक्क (किडनी) यानी गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं. गुर्दे से जुड़े बीमारी, लंबे समय से मधुमेह के मरीज, उच्च रक्तचाप जैसी स्थिति में पड़ती है. डायलसिस में शरीर में एकत्रित अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पानी को आर्टिफिशियल तरीके से बाहर निकाला जाता है.

डायलिसिस करीब चार से पांच घंटे की प्रक्रिया होती है. इसके बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है. इसमें पता चलता है कि शरीर से कितने फीसद अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकले हैं. स्थायी और अस्थायी होती हैं. आमतौर पर जब दोनों किडनियां काम नहीं कर रही हों तो उस स्थिति में किडनी रोग विशेषज्ञ डायलिसिस करवाने की सलाह देते हैं.

बागेश्वर: लंबे इंतजार के बाद बागेश्वर जिले के लोगों को डायलिसिस की सुविधा मिल गई है, जिला अस्पताल के डायसिस सेंटर में लोगों को डायलिसिस की सुविधा मिलने लगी है. 12 मार्च से अब तक 19 लोगों का डायलिसिस भी किया जा चुका है. डायलिसिस सेंटर का संचालन हंस फाउंडेशन कर रहा है. इसके लिए सरकार का फाउंडेशन के साथ करार हुआ है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले कार्यकाल में सूबे के सभी जिलों में डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराने की घोषणा की थी. सीएम की घोषणा के बाद साल 2021 के अंत में जिला अस्पताल परिसर में डायलिसिस केंद्र के लिए भवन बना दिया गया था. चुनाव आचार संहिता के कारण डायलिसिस सेंटर के संचालन में थोड़ी परेशानी जरूर आई, लेकिन अब डायलिसिस सेंटर का संचालन हो गया है.

बागेश्वर जिला अस्पताल में डायलिसिस सेवा शुरू.

जिला अस्पताल के सीएमएस वीके टम्टा ने बताया कि अब तक सेंटर में 19 लोगों का डायलिसिस किया जा चुका है. डायलिसिस की सुविधा न होने के कारण किडनी की बीमारी से जूझ रहे लोगों को हल्द्वानी और दिल्ली जाना पड़ता था. इसमें समय के साथ ही धन और समय की बर्बादी होती थी, जिले के लोग लंबे समय से डायलिसिस की सुविधा दिलाने की मांग कर रहे थे. अब लोगों की मुराद पूरी हो गई है.

अन्य जनपदों को भी मिलेगा लाभ: डायलिसिस की सुविधा का न केवल जिले के लोगों को लाभ मिलेगा बल्कि पिथौरागढ़ जिले के बेरीनाग क्षेत्र और अल्मोड़ा जिले के लोगों को भी लाभ मिलेगा. साथ ही गढ़वाल के चमोली जिले के सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा.
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क्या है डायलिसिस: डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि होती है. डायलिसिस की जरूरत तब पड़ती है, जब किसी व्यक्ति के वृक्क (किडनी) यानी गुर्दे सही से काम नहीं कर रहे होते हैं. गुर्दे से जुड़े बीमारी, लंबे समय से मधुमेह के मरीज, उच्च रक्तचाप जैसी स्थिति में पड़ती है. डायलसिस में शरीर में एकत्रित अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त पानी को आर्टिफिशियल तरीके से बाहर निकाला जाता है.

डायलिसिस करीब चार से पांच घंटे की प्रक्रिया होती है. इसके बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है. इसमें पता चलता है कि शरीर से कितने फीसद अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकले हैं. स्थायी और अस्थायी होती हैं. आमतौर पर जब दोनों किडनियां काम नहीं कर रही हों तो उस स्थिति में किडनी रोग विशेषज्ञ डायलिसिस करवाने की सलाह देते हैं.

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