बागेश्वर: देश आज अपनी 75वीं वर्षगांठ मना रहा है. इस मौके पूरा देश जश्न-ए-आजादी में डूबा हुआ है. वहीं, इस मौके पर हम आपको बागेश्वर जिले एक ऐसे 99 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जो आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे हैं. राम सिंह चौहान के योगदान को देखते हुए उन्हें स्वतंत्रता दिवस के 25वीं वर्षगांठ पर 15 अगस्त, 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ताम्रपत्र देकर सम्मानित कर चुकी हैं.
बागेश्वर जिले के गरूड़ तहसील के वज्यूला पासतोली गांव के रहेन वाले 98 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह चौहान में आज भी काफी दमखम है. आजाद हिंद के सिपाही रहे राम सिंह चौहान कहते हैं कि आजादी के बाद देश काफी तरक्की कर रहा है. वो कहते हैं कि अब वक्त आ गया है कि अब आरक्षण को आर्थिक आधार पर कर दिया जाना चाहिए, ताकि गरीबों को उनका हक मिल सके.
राम सिंह चौहान बागेश्वर जिले के 124 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं, जो अब अंतिम पड़ाव पर हैं. राम सिंह चौहान का जन्म 21 जून, 1922 गरुड़ तहसील के वज्यूला पासतोली गांव में हुआ था. उनके पिता हवलदार तारा सिंह चौहान गढ़वाल राइफल में तैनात थे और दो बड़े भाई कैप्टन और सूबेदार के पद पर रहे. राम सिंह चौहान वज्यूला के प्राइमरी स्कूल में कक्षा दो तक ही पढ़ पाए. उस वक्त देश में आजादी की आग धधक रही थी. हर तरफ जनता देश को आजाद कराने के लिए आंदोलन कर रही थी. ग्रामीणों को ये किस्से राम सिंह से सहज की सुनने को मिलते रहते हैं.
राम सिंह बताते हैं कि आजादी के आंदोलन के कारण उनका स्कूल भी बंद हो गया था. ऐसे में उन्होंने ने भी आंदोलनकारियों के साथ जुलूस में जाना शुरू कर दिया था. इसके बाद 19 वर्ष की आयु में 19 वर्ष की आयु में 9 जनवरी, 1941 को गढ़वाल राइफल में भर्ती हुए. उनकी ट्रेनिंग अभी पूरी हुई ही थी कि इसी बीच नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर 15, फरवरी 1942 को राम सिंह अपने साथियों के साथ मय हथियार सेना में शामिल हो गए.
राम सिंह चौहान ने सुभाष चंद्र बोस के साथ अंग्रेजों के साथ जंग शुरू की. इस दौरान अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. राम सिंह को अंग्रेजों ने बर्मा, मुल्तान, कलकत्ता आदि की जेलों में रखा और यातनाएं दीं, लेकिन वे आजाद हिंद फौज से नहीं टूटे. इसके बाद उनको 26 मार्च, 1946 को को जेल से रिहा किया गया. उन्होंने सजा से बचने के लिए अंग्रेजों से कोई माफी नहीं मांगी.
उस वक्त को याद कर राम सिंह आज भी सिहर उठते हैं. वो बताते हैं कि आजाद हिंद फौज एक ऐसी फौज थी, जिसका गठन आजादी से पहले किया गया था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में आजाद सिंह सरकार की घोषणा की थी. वहां पर नेताजी स्वतंत्र भारत के अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री, युद्ध और विदेशी मामलों के मंत्री और सेना के सर्वोच्च सेनापति चुने गए.
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आजाद हिंद सरकार में वित्त विभाग एससी चटर्जी को, प्रचार विभाग एसए अय्यर को और महिला संगठन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया था. तब सभी का उद्देश्य देश को आजादी दिलाना था. राम सिंह चौहान अपनी शतायु के निकट अवस्था में भी आत्मविश्वास और गजब की शक्त है. मॉर्निंग वॉक के बाद रोज रामायण और गीता पाठ करते हैं. उम्र के इस पड़ाव पर उनकी सुनने की शक्ति थोड़ा कमजोर हुई है, लेकिन सिर्फ कक्षा दो तक पढ़े होने के बावजूद वो सभी सवालों के जबाव स्पष्ट तौर पर लिख और बोलकर सबको हैरान कर देते हैं.
जिले के एकमात्र जीवित बचे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह चौहान के चार बेटे और बेटे और चार बेटियां है. हालांकि, उनके तीन बेटे अब इस दुनियां में नहीं है. उनका इकलौता बेटा स्वरोजगार से परिवार का पालन पोषण कर रहा है. राम सिंह चौहान के योगदान को देखते हुए उन्हें 15 अगस्त, 1972 को स्वतंत्रता दिवस के 25वीं वर्षगांठ पर तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था. इसके साथ ही उन्हें कई अन्य सम्मानों से भी नवाजा गया है.