बागेश्वरः तीन दिवसीय राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन का समापन (national kumaoni language conference) हो गया है. आखिरी दिन वक्ताओं ने कुमाऊंनी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल कराने के लिए समग्र प्रयास की दरकार बताई. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के सभी स्कूलों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में कुमाऊंनी में पठन-पाठन होना चाहिए, तभी इस समृद्ध भाषा को बोलने वालों की संख्या बढ़ेगी.
13वें राष्ट्रीय कुमाऊंनी भाषा सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि कुमाऊंनी साहित्य का इतिहास हिंदी से भी पुराना है. चंद शासकों ने कुमाऊंनी को राजभाषा का दर्जा दिया था. आज बाहर जाने के बाद कई युवाओं को अपनी भाषा नहीं आने की कमी खल रही है. कुछ युवा इसके बाद अपनी भाषा सीख रहे हैं. इसके लिए जरूरी है कि सभी अभिभावक अपने आने वाली पीढ़ी को अपनी भाषा से जरूर रूबरू कराएं. यह सम्मेलन इस बात का गवाह भी बनेगा.
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वक्ताओं ने कहा कि बागेश्वर से कुली बेगार आंदोलन शुरू हुए, जो राष्ट्रीय आंदोलन बने. इसी तरह कुमाऊंनी भाषा के लिए जगी यह अलख दिल्ली तक जानी चाहिए. मुख्य अतिथि साहित्यकार गोपाल दत्त भट्ट ने कहा कि कुमाऊंनी भाषा का शिक्षण राज्य के सभी शिक्षण संस्थानों में किया जाना चाहिए. इसी से इस भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल किया जा सकता है.
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए एडवोकेट जमन सिंह बिष्ट ने कहा कि कुमाऊंनी को संविधान की आठवीं अनुसूची में राजनीतिक इच्छाशक्ति के बल पर ही शामिल किया जा सकता है. पहरू के संपादक डॉ. हयात सिंह रावत ने कहा कि कुमाऊंनी के संरक्षण के लिए सभी को आगे आने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि राज्य में भाषा अकादमी खोली जानी चाहिए.
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डॉ. हयात रावत और भाषा सम्मेलन के संयोजक साहित्यकार वृक्ष पुरुष किशन सिंह मलड़ा ने आयोजन में सहयोग देने के लिए डॉ. कुंदन सिंह रावत, डॉ. राजीव जोशी, नरेंद्र खेतवाल, गोपाल बोरा के साथ ही सभी लोगों का आभार जताया. समापन दिवस पर साहित्यकार गोपाल दत्त भट्ट के विशेषांक का विमोचन किया गया. तमाम साहित्यकारों को सम्मानित भी किया गया. वहीं, समापन मौके पर कमला देवी, भाष्कर भौर्याल के नेतृत्व में मालूशाही, न्योली और चांचरी का गायन किया गया.