अल्मोड़ा: आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. महिला दिवस पर ईटीवी भारत आपके लिए लाया है खास पेशकश 'मिसाल', जिसमें हम आपको दिखा रहे हैं उत्तराखंड के साथ ही देशभर की महिला अचीवर्स की अनसुनी कहानियां. आज हम आपको उत्तराखंड की एकता बिष्ट के संघर्ष की दास्तां के बारे में बताने जा रहे हैं.
एक छोटे से शहर से निकलकर अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट में अपना मुकाम हासिल करने वाली उत्तराखंड की बेटी एकता बिष्ट आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है. एकता ने केवल अल्मोड़ा ही बल्कि प्रदेश का नाम भी रोशन किया है. गली-मोहल्ले से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक का सफर एकता ने यूं ही तय नहीं कर लिया. इसमें शामिल है एकता की कड़ी मेहनत, त्याग और उसका जुनून. जिसके कारण आज एकता इन ऊंचाइयों पर पहुंच पाई है.
जिस उम्र में बच्चे गुड्डे-गुड़ियों का खेल खेला करते थे, उस उम्र में एकता अल्मोड़ा के खजांची मुहल्ले में लड़कों के साथ क्रिकेट में हाथ आजमाती थी. बचपन में प्लास्टिक और कपड़े की बॉल से क्रिकेट खेलने वाली एकता के मन में न जाने कब लेदर से क्रिकेट खेलने की जिज्ञासा बढ़ती गई ये उसे खुद भी पता नहीं चला. क्रिकेट के लिए एकता जुनून ऐसा था कि वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी. कम सुविधाएं होने के बाद भी एकता की आंखों में उसका सपना पलता रहा. जिसके लिए एकता जी-जान से जुटी रही.
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कोच लियाकत अली खान ने सिखाए स्पिन के गुर
एकता बचपन में घर की दीवारों पर बॉल फेंक कर अपने जुनून को पूरा करती थी. जिसके लिए उसे डांट भी पड़ती थी. 4 -5 साल की उम्र में उसने मोहल्ले के लड़कों के साथ क्रिकेट खेलना शुरू किया. छुट्टी के दिन भी एकता को चैन नहीं होता था. वह बाजार जाकर क्रिकेट खेलती थी.
एकता की लगन को देखते हुए लोगों ने उसे स्टेडियम में जाकर खेलने की सलाह दी. साल 2000 में एकता पहली बार स्टेडियम में अपना हुनर दिखाने पहुंची. जहां उन्हें निखारने का काम उनके कोच लियाकत अली खान ने किया. लियाकत उस समय के जाने माने तेज गेंदाबाजों में शुमार थे. लियाकत ने ही एकता को स्पिन बॉलिंग के गुर सिखाये. जिसके बाद यहां रात दिन मेहनत करने के बाद एकता के परफार्मेंस में काफी सुधार आया.
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शुरुआती दिनों में एकता प्रेक्टिस के लिए सुबह पांच बजे घर से निकल जाती थी और देर शाम सात बजे तक वापस आती थी. साल 2011 में एकता को उनकी कड़ी मेहनत का फल मिला और उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम में शामिल कर लिया गया.
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मुफलिसि के दौर में भी बेटी का किया सपोर्ट
बेटी की सफलता को नम आंखों से याद करते हुए एकता के पिता कुन्दन सिंह बताते हैं कि जब एकता ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तब वे मुफलिसी के दौर में जी रहे थे. फिर भी उन्होंने एकता को सपोर्ट किया. वे बताते हैं कि जब एकता का इंडियन क्रिकेट टीम में चयन हुआ तब उसे जाने के लिए 10 हजार रुपए की जरूरत थी. तब उनके घर में केवल 3 हजार रुपए ही थे. जिसके बाद उन्होंने पड़ोसियों से पैसे उधार लिये. एकता की कामयाबी पर पिता कहते हैं कि आज उनकी बेटी के कारण उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. एकता की वजह से लोग उन्हें जानते हैं, एक पिता के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती है.
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एकता के पिता आर्मी रिटायर हैं. कुंदन सिंह बिष्ट को एक समय पेंशन के तौर पर मात्र 1500 रुपए मिलते थे. परिवार के गुजर बसर के लिए उन्होंने चाय की दुकान भी चलाई. पिता के समर्पण और कभी न हार मानने वाले जज्बे ने एकता को भी काफी कुछ सिखाया. एकता के पड़ोसी भी उसकी कामयाबी पर फूले नहीं समा रहे हैं. वे कहते हैं कि अल्मोड़ा की बेटी ने आज जो मुकाम हासिल किया है उस पर उन्हें काफी नाज है.
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बता दें एकता ने 2002 से 2006 तक उत्तराखंड की ओर से क्रिकेट खेला. उसके बाद उत्तराखंड महिला टीम न बन पाने के कारण वह उत्तर प्रदेश से खेलने लगी. 2005 में एकता का चयन भारतीय जूनियर टीम के कैंप के लिए हुआ, मगर पैर की चोट के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ा. साल 2009 एकता के लिए काफी अच्छा रहा. नवंबर 2009 में उन्होंने यूपी की ओर से खेलते हुए विदर्भ के खिलाफ आठ ओवर में बगैर कोई रन दिए तीन विकेट लिए. इनके इस प्रदर्शन ने उन्हें हीरो बना दिया.
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जिसके बाद प्रतियोगिताओं के आधार पर एकता का चयन 2010 में महिला क्रिकेट टी20 विश्व कप के लिए संभावित 30 खिलाड़ियों में हुआ. एकता ने पहला वनडे और टी-20 साल 2011 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला, जबकि पहला टेस्ट मैच इंग्लैण्ड के खिलाफ खेल चुकी हैं. साल 2011 में एकता ने श्रीलंका में हुए टी-20 वर्ल्ड कप में श्रीलंका के खिलाफ हैट्रिक लगाई थी. एकता अब तक 57 वनडे मैच खेल चुकी हैं. जिनमें उन्होंने 80 विकेट लिए है. एकता का सबसे शानदार प्रदर्शन महिला विश्व कप में देखने को मिला. जहा उन्होंने अपने सबसे बड़ी प्रतिद्वंदी टीम पाकिस्तान के खिलाफ 5 विकेट लिये.
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आज एकता अपने प्रदर्शन के बल पर भारतीय महिला क्रिकेट टीम का चेहरा बन चुकी हैं. अपनी मेहनत, लगन से एकता ने सच कर दिखाया है कि भले ही आप छोटे शहर में जन्म लें, पर आपकी सोच, सपने, हौसले अगर बड़े हों तो कोई भी आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता है.