अल्मोड़ा: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया है. अब भारतीय क्रिकेट टीम के लिए धोनी खेलते हुए नहीं दिखाई देंगे. हालांकि, धोनी आईपीएल खेलते रहेंगे. अल्मोड़ा के जैंती तहसील में स्थित ल्वाली गांव महेंद्र सिंह धोनी का पैतृक गांव है. गांव के लोगों तक जब महेंद्र सिंह धोनी के संन्यास लेने की खबर पहुंची तो सभी हैरान हो गए. महेंद्र सिंह धोनी के चचेरे भाई हयात सिंह धोनी का कहना है माही के संन्यास लेने के फैसले से गांव वाले दुखी है. लेकिन उन्हें गर्व है कि उनके भाई ने पूरे देश का नाम रोशन किया है.
अल्मोड़ा के जैंती तहसील का ल्वाली गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यही कारण है कि गांव पलायन झेलने के लिए मजबूर है. हयात सिंह धोनी का कहना है कि मेरे भाई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है. लेकिन उनका पैतृक गांव ल्वासी आज भी विकास की बांट जोह रहा है. ऐसे में ग्रामीणों को उम्मीद है कि अंतराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कहने वाले धोनी फिर से अपने पैतृक गांव पहुंचेंगे.
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ग्रामीणों का कहना है कि माही द्वारा वर्ल्ड कप जीतने के बाद वर्ष 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा उनके गांव को जैती तहसील से जोड़ने के लिए सड़क की घोषणा की गई थी. लेकिन आज तक घोषणा पर काम नहीं हो सका है. लगभग 3 साल पहले गांव के नीचे शहीद के नाम से सड़क पहुंची. लेकिन, उस सड़क का गांव को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है.
आज भी जैती तहसील जाने और मरीजों को अस्पताल ले जाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. ग्रामीणों का कहना है कि वर्ष 2004 में महेंद्र सिंह धोनी का परिवार आखिरी बार अपने गांव आया था. बचपन में धोनी अपने पिता के साथ गर्मियों की छुट्टी में गांव आते थे.
40 साल पहले छोड़ा था गांव
महेंद्र सिंह धोनी के पिता पान सिंह ने 40 साल पहले अपना पैतृक गांव छोड़ दिया था. वह रोजगार के लिए रांची चले गए थे और वहीं रहने लगे. हालांकि अभी भी धोनी के पिता धार्मिक आयोजनों में गांव में आते हैं. धोनी का परिवार वर्ष 2004 में गांव आया था.