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सोमेश्वर: जंगली जानवर से परेशान किसानों ने खेती से की तौबा - Horticulture Department

बौरारौ घाटी में निवास करने वाले 100 से अधिक गांवों के किसान जंगली जानवरों के नुकसान और सरकार की बेरुखी के चलते आलू की खेती करने से मुंह फेरने लगे हैं. जिसके चलते अब किसानों की आर्थिक स्थिति भी खराब होने लगी है.

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आलू की खेती को चौपट कर रहे जंगली जानवर.
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Published : Dec 3, 2019, 8:16 PM IST

सोमेश्वर: नगर की बौरारौ घाटी में स्थित 100 से अधिक गांवों के किसान अपनी आर्थिक जरुरतों को पूरा करने के लिए आलू की खेती करते हैं. लेकिन बीते कुछ समय से जंगली जानवरों के आतंक और सरकार की हीलाहवाली के चलते अब किसानों का मोह खेती से भंग हो गया है. किसानों का कहना है कि उन्हें उचित मूल्य पर उन्नत बीज नहीं मिल रहे हैं.

खेती को चौपट कर रहे जंगली जानवर.

बता दें कि बौरारौ घाटी में आलू का उत्पादन बहुतायत में होता है. साल 2016 तक उद्यान विभाग किसानों को धारचूला और मुनस्यारी से आलू बीज निर्धारित कीमतों पर उपलब्ध करता था. लेकिन बीते कई सालों से उद्यान विभाग किसानों को आलू के बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है. जिसके चलते यहां के किसान चमोली जिले के थराली और ग्वालदम से महंगे दामों में आलू का बीज खरीद कर खेती कर रहे हैं. लेकिन जंगली जानवर किसानों की खेती को लगातार नुकासन पहुंचा रहे हैं. जिसके चलते बौरारौ घाटी में आलू की पैदावार नाम मात्रा की रह गई है. ऐसे में किसानों को साल दर साल काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

ये भी पढ़े: उत्तराखंड: कड़ाके की ठंड से बढ़ी लोगों की मुश्किलें, कोहरा बढ़ा रहा टेंशन

वहीं, बौरारौ घाटी के अधूरिया गांव के पूर्व प्रधान गिरीश राणा ने बताया कि उन्हें सरकार द्वारा उचित बीज नहीं मिल पा रहा है. साथ ही जंगली जानवरों के आतंक के कारण वो आलू के उत्पादन का कार्य छोड़ने को विवश हैं. उनका कहना है कि पिछले साल उन्होंने 6500 रुपये का आलू बीज खेतों में बोया था. लेकिन तीन दिनों के भीतर ही जंगली सूअरों ने उनके खेत खोदकर सारा बीज नष्ट कर दिया. ऐसे में कई बार वो सरकार से भी गुहार लगा चुके हैं. लेकिन अभी तक सरकार ने इन गांवों की कोई सुध नहीं ली है.

सोमेश्वर: नगर की बौरारौ घाटी में स्थित 100 से अधिक गांवों के किसान अपनी आर्थिक जरुरतों को पूरा करने के लिए आलू की खेती करते हैं. लेकिन बीते कुछ समय से जंगली जानवरों के आतंक और सरकार की हीलाहवाली के चलते अब किसानों का मोह खेती से भंग हो गया है. किसानों का कहना है कि उन्हें उचित मूल्य पर उन्नत बीज नहीं मिल रहे हैं.

खेती को चौपट कर रहे जंगली जानवर.

बता दें कि बौरारौ घाटी में आलू का उत्पादन बहुतायत में होता है. साल 2016 तक उद्यान विभाग किसानों को धारचूला और मुनस्यारी से आलू बीज निर्धारित कीमतों पर उपलब्ध करता था. लेकिन बीते कई सालों से उद्यान विभाग किसानों को आलू के बीज उपलब्ध नहीं करा पा रहा है. जिसके चलते यहां के किसान चमोली जिले के थराली और ग्वालदम से महंगे दामों में आलू का बीज खरीद कर खेती कर रहे हैं. लेकिन जंगली जानवर किसानों की खेती को लगातार नुकासन पहुंचा रहे हैं. जिसके चलते बौरारौ घाटी में आलू की पैदावार नाम मात्रा की रह गई है. ऐसे में किसानों को साल दर साल काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

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वहीं, बौरारौ घाटी के अधूरिया गांव के पूर्व प्रधान गिरीश राणा ने बताया कि उन्हें सरकार द्वारा उचित बीज नहीं मिल पा रहा है. साथ ही जंगली जानवरों के आतंक के कारण वो आलू के उत्पादन का कार्य छोड़ने को विवश हैं. उनका कहना है कि पिछले साल उन्होंने 6500 रुपये का आलू बीज खेतों में बोया था. लेकिन तीन दिनों के भीतर ही जंगली सूअरों ने उनके खेत खोदकर सारा बीज नष्ट कर दिया. ऐसे में कई बार वो सरकार से भी गुहार लगा चुके हैं. लेकिन अभी तक सरकार ने इन गांवों की कोई सुध नहीं ली है.

Intro:सोमेश्वर की बौरारौ घाटी के 100 से अधिक गांवों के किसान आलू की खेती आर्थिक फसल के तौर पर करते हैं लेकिन जंगली जानवरों के आतंक और सरकारी तंत्र से उचित मूल्य पर उन्नत बीज नही मिलने के कारण अब किसान आलू की खेती से दूर हो रहे हैं। जिस क्षेत्र से सैकड़ों तर्क आलू बाहर शहरों में जाता था वहां के किसान अपने लिए भी आलू लगाने से कतरा रहे हैं।Body:सोमेश्वर। आलू का उत्पादन बहुतायत मात्रा में करने वाली बौरारौ घाटी में किसानों को उद्यान विभाग बीज उपलब्ध नही कर पा रहा है। किसानों को महंगे दामों में चमोली जिले के थराली और ग्वालदम से आलू का बीज लाना पड़ता है। बौरारौ घाटी के किसान आलू की खेती नकदी फसल के तौर पर करते हैं जिससे उनकी रोजी रोटी निर्भर करती है। वर्ष 2016 तक उद्यान विभाग किसानों को धारचूला और मुनस्यारी से आलू बीज लाकर निर्धारित कीमतों पर उपलब्ध करता था लेकिन विभाग गत वर्ष भी किसानों को बीज नही दे सका। इस वर्ष भी उद्यान विभाग आलू बीज के मामले पर चुप्पी साधे हुए है जबकि काश्तकारों ने आलू की बोआई के लिए खेत तैयार किए हैं।
बताते चलें कि जहां एक ओर किसानों के लिए जंगली सुअर, बन्दर और आवारा मवेशी बड़ी समस्या बन चुके हैं वही दूसरी ओर आलू जैसी फसलों के लिए सरकारी विभागों से बीज ही नही मिलता है। किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध नही होने से आलू की खेती नगण्य मात्रा में हो रही है।
अधूरिया के पूर्व प्रधान एवम काश्तकार गिरीश राणा का कहना है कि उन्हें उचित बीज नही मिलने और जंगली जानवरों के आतंक के कारण आलू उत्पादन का कार्य छोड़ने को विवश होना पड़ रहा है। पिछले वर्ष उन्होंने 6500 रुपये का आलू बीज खेतों में लगाया जिसे तीन दिनों में ही जंगली सूअरों ने खोदकर नष्ट कर दिया । सरकार से कई बार गुहार लगाने के बाद भी न तो तारबाड़ की गई और न ही रोकथाम के उपाय और विभाग से सरकारी दरों पर उन्नत किस्म का आलू बीज मुहैया करने की मांग की है।
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