अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के 150 साल से अधिक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि यहां रावण का पुतला नहीं जल पाया. दरअसल, बीती शाम यहां दो पुतला समितियों के बीच से शुरू हुआ विवाद देर रात तक नहीं सुलझ पाया. इस वजह से रावण का पुतला बनाने वाली समिति ने दशहरा महोत्सव समिति पर कई आरोप लगाते हुए रावण का पुतला नहीं जलाया. पुतले को वापस लाकर नन्दादेवी मंदिर के पास ही खड़ा कर दिया गया. रावण का पुतला नहीं जलाया जाना, अल्मोड़ा में चर्चा का विषय बना है.
जानकारी के मुताबिक दशहरे के दिन दो समितियों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया. विवाद उस वक्त हुआ जब एक पुतला समिति के एक युवक ने रावण पुतला समिति के नंदादेवी निवासी धनंजय से अभद्रता कर दी. धनंजय ने बताया कि एक युवक ने पहले उनका हाथ पकड़ा, फिर वह कमीज फाड़ने लगा. उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी उन्होंने दशहरा महोत्सव समिति को दी.
दशहरा महोत्सव समिति से अभद्रता करने वाला युवक जिस पुतला समिति से है, उस पुतले को बाहर करने की मांग की. उनका आरोप है कि दशहरा महोत्सव समिति ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद चौक बाजार में विरोध में रावण के पुतले को रोका गया. इस वजह से राम का रथ भी चौक बाजार में रुक गया. हालांकि, इस बीच किसी तरह समझौता करने के बाद रावण के पुतले को बाजार में ले जाया गया.
इसके बाद फिर दशहरा समिति और रावण का पुतला बनाने वाली (नंदादेवी) समिति के बीच विवाद हो गया. यह विवाद इतना बढ़ गया कि रावण का पुतला बनाने वाली समिति ने स्टेडियम में रावण का पुतला जलाने से इंकार कर दिया. इसके बाद रावण का पुतला बनाने वाली समिति ने रावण के पुतले को बिना जलाए वापस उसी स्थान नंदादेवी मंदिर के पास खड़ा कर दिया, जहां पर उसे बनाया गया था. रावण के पुतले के न जलने को लेकर अल्मोड़ा में काफी चर्चा है.
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दशहरा समिति के अध्यक्ष अजीत कार्की का कहना है दो पुतला समितियों के बीच हुए विवाद को शांत करने की काफी कोशिश की गई, लेकिन उसके बाद भी रावण का पुतला नहीं जलाया जा सका. ऐसे लोगों को अगले साल से पुतला बनाने के लिए बैन किया जाएगा.
प्रसिद्ध है अल्मोड़ा का दशहरा: अल्मोड़ा का दशहरा काफी फेमस है. यहां, रावण परिवार के 2 दर्जन से अधिक कलात्मक विशालकाय पुतले बनाये जाते हैं. वरिष्ठ रंगकर्मी नवीन बिष्ट के अनुसार अल्मोड़ा में सबसे पहले बद्रेश्वर मंदिर में रामलीला का आयोजन हुआ था. बताया जाता है कि तब सिर्फ रावण का पुतला बनाया गया था लेकिन बाद में धीरे धीरे रावण परिवार के पुतलों की संख्या बढ़ती गयी. आज यह संख्या 2 दर्जन से ज्यादा है. नवीन बिष्ट का कहना है कि 150 साल से अधिक के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ. यह परंपरा के साथ खिलवाड़ और शर्मनाक है.