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ऐतिहासिक नगरी में रामलीला का 159 साल से हो रहा मंचन, इसलिए है खास

कुमाऊं की रामलीला अपने आप में बेहत खास है. जो अपने आपमें सांस्कृतिक विरासत समेटे हुए है. जिसका मंचन 1860 से होता रहा है.

अल्मोड़ा में रामलीला का मंचन.
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Published : Sep 26, 2019, 3:12 PM IST

अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपने आपमें कई सांस्कृतिक विरासतों को समेटे हुए हैं. जिसमें कुमाऊं की रामलीला भी एक है. कुमाऊं में सबसे पहले सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई थी. जो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस पर आधारित होती है. बताया जाता है कि कुमाऊं की पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. इस परंपरा के निर्वहन को 159 साल हो गए हैं. जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलक्टर स्व० देवीदत्त जोशी को जाता है.

अल्मोड़ा में रामलीला का 159 साल से हो रहा मंचन.

गौर हो कि अल्मोड़ा में 29 सितंबर से शुरू होने वाले नवरात्र में होने वाली रामलीला की तैयारी इन दिनों जोरों पर चल रही है. जिसके लिए इन दिनों अल्मोड़ा के कई जगहों में रामलीला के पात्रों को तालीम दी जा रही है. जिसके लिए रात रातभर कलाकार इसकी ट्रेंनिग ले रहे हैं. कुमाऊं में रामलीला का देश के विभिन्न प्रान्तों से अलग तरीकों से मंचन किया जाता है. खासकर कुमाऊं अंचल में रामलीला मुख्यतया गीत-नाट्य शैली के अलावा कई रागों में प्रस्तुत की जाती है. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की तैयारियां इन दिनों जोरों पर चल रही है. यहां की रामलीला की एक अलग ही पहचान है और अपना एक अलग ही महत्व है.

पढ़ें-भीलवाड़ा: जिला स्तरीय पोषण मेले का आयोजन

विरासत को समेटे रामलीला

अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है. रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन माना जाता है. जिसके लिए यहां अभिनय करने वालों को पिछले 2 महीने से इस रामलीला की तालीम दी जाती है. अल्मोड़ा में नन्दा देवी, कर्नाटक खोला, धारानोला, हुक्का क्लब, सरकार की आली, खतियाड़ी, चितई, एनटीडी सहित दर्जनों स्थानों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है. कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत 18वीं सदी में हुई थी. बताया जाता है कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी.

परंपरागत रामलीला से भिन्न

जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलक्टर स्व० देवीदत्त जोशी को जाता है. बाद में नैनीताल, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में 1880, 1890 और 1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारम्भ हुआ. अल्मोड़ा नगर में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पंडित उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने का प्रयास किया. हालांकि स्वं0 पंडित उदय शंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला यहां की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में भिन्न थी. लेकिन उनके छायाचित्र, उत्कृष्ट संगीत व नृत्य की छाप यहां की रामलीला पर अवश्य पड़ी. अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पिछले 150 साल से भी अधिक समय से चलता आ रहा है.

1860 से हुई थी शुरुआत

जानकार बताते है कि अल्मोड़ा में सबसे पहले1860 में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ था जो अब तक बदस्तूर चल रहा है. वहीं इस ऐतिहासिक रामलीला को देखने बड़ी संख्या में लोग दूर-दूर से आते हैं. वहीं कलाकारों का कहना है कि वे पिछले 20 वर्षो से रामलीला में कई अभिनय कर चुके है और रामलीला कई रागों पर आधारित है.

अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा अपने आपमें कई सांस्कृतिक विरासतों को समेटे हुए हैं. जिसमें कुमाऊं की रामलीला भी एक है. कुमाऊं में सबसे पहले सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से शुरू हुई थी. जो गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस पर आधारित होती है. बताया जाता है कि कुमाऊं की पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. इस परंपरा के निर्वहन को 159 साल हो गए हैं. जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलक्टर स्व० देवीदत्त जोशी को जाता है.

अल्मोड़ा में रामलीला का 159 साल से हो रहा मंचन.

गौर हो कि अल्मोड़ा में 29 सितंबर से शुरू होने वाले नवरात्र में होने वाली रामलीला की तैयारी इन दिनों जोरों पर चल रही है. जिसके लिए इन दिनों अल्मोड़ा के कई जगहों में रामलीला के पात्रों को तालीम दी जा रही है. जिसके लिए रात रातभर कलाकार इसकी ट्रेंनिग ले रहे हैं. कुमाऊं में रामलीला का देश के विभिन्न प्रान्तों से अलग तरीकों से मंचन किया जाता है. खासकर कुमाऊं अंचल में रामलीला मुख्यतया गीत-नाट्य शैली के अलावा कई रागों में प्रस्तुत की जाती है. सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की तैयारियां इन दिनों जोरों पर चल रही है. यहां की रामलीला की एक अलग ही पहचान है और अपना एक अलग ही महत्व है.

पढ़ें-भीलवाड़ा: जिला स्तरीय पोषण मेले का आयोजन

विरासत को समेटे रामलीला

अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है. रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन माना जाता है. जिसके लिए यहां अभिनय करने वालों को पिछले 2 महीने से इस रामलीला की तालीम दी जाती है. अल्मोड़ा में नन्दा देवी, कर्नाटक खोला, धारानोला, हुक्का क्लब, सरकार की आली, खतियाड़ी, चितई, एनटीडी सहित दर्जनों स्थानों पर रामलीला का आयोजन किया जाता है. कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत 18वीं सदी में हुई थी. बताया जाता है कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी.

परंपरागत रामलीला से भिन्न

जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलक्टर स्व० देवीदत्त जोशी को जाता है. बाद में नैनीताल, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में 1880, 1890 और 1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारम्भ हुआ. अल्मोड़ा नगर में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पंडित उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने का प्रयास किया. हालांकि स्वं0 पंडित उदय शंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला यहां की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में भिन्न थी. लेकिन उनके छायाचित्र, उत्कृष्ट संगीत व नृत्य की छाप यहां की रामलीला पर अवश्य पड़ी. अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पिछले 150 साल से भी अधिक समय से चलता आ रहा है.

1860 से हुई थी शुरुआत

जानकार बताते है कि अल्मोड़ा में सबसे पहले1860 में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ था जो अब तक बदस्तूर चल रहा है. वहीं इस ऐतिहासिक रामलीला को देखने बड़ी संख्या में लोग दूर-दूर से आते हैं. वहीं कलाकारों का कहना है कि वे पिछले 20 वर्षो से रामलीला में कई अभिनय कर चुके है और रामलीला कई रागों पर आधारित है.

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भगवान राम के जीवन पर आधारित रामलीला के मंचन की परंपरा भारत में युगों से चली आयी है। लोक नाट्य के रुप में प्रचलित इस रामलीला का देश के विविध प्रान्तों में अलग अलग तरीकों से मंचन किया जाता है। लेकिन उत्तराखण्ड के खासकर कुमाऊॅं अंचल में रामलीला मुख्यतया गीत-नाट्य शैली के अलावा कई रागों में प्रस्तुत की जाती है। उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की तैयारियां इन दिनों जोरों पर चल रही है। यहां की रामलीला की एक अलग ही पहचान है और अपना एक अलग ही महत्व है अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है। रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन होता है। जिसके लिए यहां अभिनय करने वालों को पिछले 2 महीने से इस रामलीला की तालिम दी जाती है। अल्मोड़ा में नन्दा देवी, कर्नाटक खोला, धारानोला, हुक्का क्लब, सरकार की आली, खतियाडी, चितई, एनटीडी सहित दर्जनो स्थानो पर रामलीला का आयोजन किया जाता है। अल्मोड़ा में 29 सितंबर से शुरू होने वाले नवरात्र में होने वाली रामलीला की तैयारी इन दिनों जोरों पर चल रही है। जिसके लिए इन दिनों अल्मोड़ा के कई जगहों में रामलीला के पात्रों को तालीम दी जा रही है। जिसके लिए रात रातभर कलाकार इसकी ट्रेंनिग ले रहे हैं।
Body:कुमाऊॅं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत अठारहवीं सदी के मध्यकाल के बाद हो चुकी थी। बताया जाता है कि कुमाऊॅं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मन्दिर में हुई थी। जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलैक्टर स्व० देवीदत्त जोशी को जाता है। बाद में नैनीताल, बागेश्वर व पिथौरागढ़ में क्रमशः 1880, 1890 व 1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारम्भ हुआ। अल्मोड़ा नगर में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पं० उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने का प्रयास किया। हांलाकि पं० उदय शंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला यहां की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में भिन्न थी लेकिन उनके छायाचित्र, उत्कृष्ट संगीत व नृत्य की छाप यहां की रामलीला पर अवश्य पड़ी। अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पिछले 150 वर्षो से अधिक समय से चलता आ रहा है। जानकार बताते है कि अल्मोडा में सबसे पहले1860 में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ जो कि लगातार अभी तक रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। रामलीला देखने के लिए आज भी बडी संख्या में लोग रामलीला स्थल पर पहुचते है। यहां के कलाकारों का कहना है कि हम पिछले 20 वर्षो से रामलीला में कई अभिनय कर चुके है यहां की रामलीला कई रागों पर आधारित है।


बाईट - मनीष तिवारी, आयोजक
बाईट - अनिल रावत, कलाकारConclusion:
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