अल्मोड़ा: देवभूमि उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के साथ अपने विभिन्न पर्व और परम्पराओं के लिए विश्व विख्यात है. यहां हिंदू नववर्ष के स्वागत के लिए एक अनूठा पर्व 'फूलदेई' मनाया जाता है. जो मानव और प्रकृति के बीच के पारस्परिक संबंधों का प्रतीक है.
चैत्र के महीने की संक्रांति को जब सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं. पहाड़ों में बुरांश के लाल फूलों के साथ तरह-तरह के रंगे-बिरंगे फूलों देवभूमि का श्रृंगार करने लगते है. इसी प्रकृति के सुरम्य वातावरण के बीच उत्तराखंड के पहाड़ों में बच्चे हाथों में फूलों की टोकरी लेकर और चावल ले जाकर सभी घरों की दहलीज पूजते है और परिवार के सदस्यों की खुशहाली की कामना करते हैं.
21 वीं सदी में जहां लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. वहीं, उत्तराखंड में बच्चे इस सभ्यता और संस्कृति को संजोए रखने का जिम्मा उठाए हुए हैं. कुमाऊं में मनाए जाने वाले एकमात्र बाल पर्व फूलदेई का बच्चों को साल भर से इंतजार रहता है और इस दिन बच्चे सुबह-सुबह उठकर अपने पड़ोसियों के घर पर चावल, आड़ू, खुमानी, पुलम, फ्योंली और बुरांश के साथ कई जंगली फूलों को रिंगाल की टोकरी में लेने निकल पड़ते है.
बच्चे इस दौरान लोगों घर जाते है और उनकी दहलीज पर चावल और फूल डालकर फूलदेई छम्मा देई कहते हुए खुशहाली की कामना करते हैं. इसके बदले में लोग बच्चों को उपहार स्वरुप कुछ रुपए या फिर कुछ खाने-पीने की चीजें देते है. जानकारों के मुताबिक बच्चों के इस त्योहार का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है और यह दिन बहुआयामी और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा है.