ETV Bharat / state

अतीत की परंपरा को संजोए देवभूमि की महिलाएं, ये है मान्यता - कुमाऊं की कला

दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर ऐपण से सजाए जाते हैं. घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण देकर सजाया जाता है. ऐपण कला का प्रदेश में काफी महत्व है. इस कला के माध्यम से लोग सुख समृद्धि की कामना करते हैं.

ऐपण कला का दिवाली पर है खास महत्व.
author img

By

Published : Oct 26, 2019, 11:08 AM IST

Updated : Oct 26, 2019, 11:14 AM IST

अल्मोड़ा: कुमाऊं की संस्कृति की एक विशिष्ट पहचान ऐपण भी है. जिनसे देवभूमि की महिलाओं की पहचान भी जुड़ी हुई है. ऐपण कला को लोकप्रिय बनाने में स्थानीय महिलाओं व कलाकारों की अहम भूमिका रहती है. जिससे देवभूमि की महिलाएं विरासत के तौर पर संजोए हुए हैं.

ऐपण कला का दिवाली पर है खास महत्व.

दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर ऐपण से सजाए जाते हैं. घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण देकर सजाया जाता है. दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अन्दर की ओर को बनाए जाते है. दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनायी जाती है जो धन का प्रतीक माना जाता है. पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है. माना जाता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर परिवार को धन-धान्य से पूर्ण करती हैं.

ये भी पढ़ें: ओरछा में रसोई में बैठकर सत्ता चला रहे रामराजा, खाली पड़ा है भगवान का चतुर्भुज मंदिर

हवन यज्ञादि करते समय यज्ञशाला, यज्ञवेदी, धरती को लाल रंग के गेरू या लाल मिट्टी से लीपा जाता था. यज्ञवेदी में हवन करने के लिए पहले आटा या चावल के रेखाओं और बिन्दुओं द्वारा यंत्रों की संरचना की जाती है. इसके बाद यंत्र के ऊपर लकड़ियों को रखकर आग और यंत्रों द्वारा हवन कर देवी-देवताओं का आवाह्न किया जाता था. यहीं विधा अब ऐपणों द्वारा दर्शाते हैं.

गेरू और बिस्वार से बनाए जाने वाले ऐपण की जगह अब लोग आधुनिक दौर में सिंथेटिक रंगो से भी ऐपण बनाने लगे है. लोगों का मानना है कि वो ऐपण कई दिनों तक घरों को सजाने का काम करते हैं. इन रंगो के प्रयोग से बनाए गए ऐपण केवल घर को सजाने मात्र का काम करते हैं.

अल्मोड़ा: कुमाऊं की संस्कृति की एक विशिष्ट पहचान ऐपण भी है. जिनसे देवभूमि की महिलाओं की पहचान भी जुड़ी हुई है. ऐपण कला को लोकप्रिय बनाने में स्थानीय महिलाओं व कलाकारों की अहम भूमिका रहती है. जिससे देवभूमि की महिलाएं विरासत के तौर पर संजोए हुए हैं.

ऐपण कला का दिवाली पर है खास महत्व.

दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर ऐपण से सजाए जाते हैं. घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण देकर सजाया जाता है. दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अन्दर की ओर को बनाए जाते है. दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनायी जाती है जो धन का प्रतीक माना जाता है. पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है. माना जाता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर परिवार को धन-धान्य से पूर्ण करती हैं.

ये भी पढ़ें: ओरछा में रसोई में बैठकर सत्ता चला रहे रामराजा, खाली पड़ा है भगवान का चतुर्भुज मंदिर

हवन यज्ञादि करते समय यज्ञशाला, यज्ञवेदी, धरती को लाल रंग के गेरू या लाल मिट्टी से लीपा जाता था. यज्ञवेदी में हवन करने के लिए पहले आटा या चावल के रेखाओं और बिन्दुओं द्वारा यंत्रों की संरचना की जाती है. इसके बाद यंत्र के ऊपर लकड़ियों को रखकर आग और यंत्रों द्वारा हवन कर देवी-देवताओं का आवाह्न किया जाता था. यहीं विधा अब ऐपणों द्वारा दर्शाते हैं.

गेरू और बिस्वार से बनाए जाने वाले ऐपण की जगह अब लोग आधुनिक दौर में सिंथेटिक रंगो से भी ऐपण बनाने लगे है. लोगों का मानना है कि वो ऐपण कई दिनों तक घरों को सजाने का काम करते हैं. इन रंगो के प्रयोग से बनाए गए ऐपण केवल घर को सजाने मात्र का काम करते हैं.

Intro:
कुमाऊं में विभिन्न तीज त्याहारों और मांगलिक कार्यों में ऐपण देने की परंपरा है। यानि ऐपण लोक कला यहाँ की संस्कृति के साथ रचे बसे हैं। गेरू एवं बिस्वार ( पिसे हुए चावल , के घोल) से घर की देहरी से लेकर घर के आंगन तक में विभिन्न आकृतियां बनायी जाती है। लोक कला की इस शैली को ऐपण कहा जाता है। ऐपण का अर्थ लीपने से होता है और लीप शब्द का अर्थ अंगुलियों से रंग लगाना है। दीपावली के अवसर पर कुमाऊं के घर-घर ऐपण से सज जाते हैं। घरों को आंगन से घर के मंदिर तक ऐपण देकर सजाया जाता है। दीपावली में बनाए जाने वाले ऐपण में मां लक्ष्मी के पैर घर के बाहर से अन्दर की ओर को गेरू के धरातल पर विस्वार (चावल का पिसा घोल) से बनाए जाते है। दो पैरों के बीच के खाली स्थान पर गोल आकृति बनायी जाती है जो धन का प्रतीक मा ना जाता है। पूजा कक्ष में भी लक्ष्मी की चौकी बनाई जाती है। माना जाता है कि इससे लक्ष्मी प्रसन्न होती है और घर परिवार को धनधान्य से पूर्ण करती है।

Body:ऐपण कुमाऊॅ की संस्कृति की एक विशिष्ट पहचान है। धार्मिक अनुष्ठानों और मांगलिक कार्यो में इन कलाओं का अंकन महिलाओं द्वारा किया जाता है। यह भारत के सभी क्षेत्रों में विविध रूपों में प्रचलित है। महाराष्ट्र में रंगोली, बंगाल में अल्पना, दक्षिण भारत में कोलम्, बिहार में अरिपन, उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों में चैक पूरना।
                  ऐंपण कला अपना महत्व है। धार्मिक, मांगलिक यंत्रों और सजावट के बेलों का अंकन शुभ कार्य शुभ समय शुद्ध स्थान एवं शुभ उद्देश्य के आधार पर किया जाता है। ऐंपण देने के लिए केवल दो चीजों की आवश्यकता होती है। मिट्टी जिसे गेरू कहते हैं। यह गांवों , खदानों, बाजारों में सुगमता से सस्ते दामों में मिल जाती है। दूसरा चावल जो प्रत्येक घरों में उपलब्ध होता है। चावल को भिगाकर उसे पीसकर उसका घोल तैयार किया जाता है। ऐपण देने से पहले गेरू को पानी में घोलकर उसका लेपन किया जाता है उसके सूखने के बाद चावल के घोल जिसे बिस्वार कहा जाता है से गेरू द्वारा लेपन जगह पर रेखाओं और बिन्दुओं के माध्यम से चित्रांकन किया जाता है।
होम यज्ञादि करते समय यज्ञशाला, यज्ञवेदी, धरती को लाल रंग के गेरू या लाल मिट्टी से लीपा जाता था। यज्ञवेदी में हवन करने के लिए पहले आटा या चावल के रेखाओ और बिन्दुओं द्वारा यंत्रों की संरचना करने के पश्चात यंत्र के ऊपर आड़ी, सीधी लकड़ियों को रख, अग्नि प्रज्वलित कर , यंत्रों द्वारा हवन कर धृत द्वारा देवी देवताओं का आवाहन किया जाता था। यहीं विधा अब भी है जिन्हें ऐपणों द्वारा दर्शाते हैं।
पारंपरिक गेरू एवं बिस्वार से बनाए जाने वाले ऐपण की जगह अब लोग आधुनिक दौर में सिंथेटिक रंगो से भी ऐपण बनाने लगे है। लोगों का मानना है कि वह ऐपण कई दिनों तक घरों को सजाने का काम करते है। उनका मानना है कि इन रंगो के प्रयोग से बनाए गये ऐपण केवल घर को सजाने मात्र का काम करते है। त्योहारों पर पारंपरिक ऐपण जो गेरू और बिस्वार से बनाया जाता है उसे घर के मुख्य स्थानों पर अवश्य बनाते है जो शुभ माना जाता है। आधुनिकता के दौर में अब धीरे धीरे गेरू और बिस्वार का स्थान पर सिन्थेटिक रंगो का प्रचलन बढ़ रहा है।

बाइट-नवीन बिष्ट, रंगकर्मी
Conclusion:
Last Updated : Oct 26, 2019, 11:14 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.