द्वाराहाट: कुमाऊं का प्रसिद्ध सोमनाथ मेला अपनी संस्कृति और विरासत को अपने आप में समेटे हुए है. जो अल्मोड़ा जिले के तल्ला गेवाड़ घाटी के मासी में लगता है. आधुनिक दौर में इस ऐतिहासिक मेले में कनोड़िया जाति के लोग अपनी प्राचीन विधा को जीवित रखे हुए हैं. वहीं इस ऐतिहासिक मेले का इतिहास 250 वर्ष पुराना है. इस वर्ष सोमनाथ मेला 12 मई यानी आज से शुरू हो रहा है. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.
गौर हो कि सोमनाथ मेला अपनी शुरूआत में 15 दिनों तक चलता था. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां के लोग कन्नौज नामक स्थान से मासी घाटी में रहने आए थे. जिन्हें कन्नौज के कनौजिया भी कहा जाता था. उस समय घाटी को बमोर देश के नाम से पुकारा जाता था. भारत में बाबर के आक्रमण के समय कनौजिया बिष्ट अपने कुल पुरोहित फुलोरिया और सेवक कुलावा के साथ पहाड़ में रहने आए थे. कुलावा को उनका मंत्री और सलाहकार भी माना जाता था. कनौजिया जाति के लोग गेहूं की फसल काटने के बाद वैशाख मास के अंतिम सोमवार को पर्वतीय वाद्ययंत्रों की थाप पर पारंपरिक नृत्य करते हैं. जो अब ऐतिहास मेले के रूप जाना जाता है.
कहा जाता है कि कनौजिया जाति के लोग जिस स्थान पर अपना मनोरंजन करते थे. उस स्थान के पास में एक झाड़ी थी, जहां गाय रोज आती और उस झाडी में अपने स्तनों से दूध गिराती थी. स्थानीय लोगों ने जब झाड़ी को साफ किया तो उन्हें वहां शिवलिंग दिखाई दिया. उसी दिन से इस स्थान पर सोमनाथ मेला लगने लगा. सोमनाथ मेले में बारी-बारी से ओड़ा भेटने की रस्म है. परंपरा के अनुसार इस दिन मासीवाल व कनौणी ऑल के ग्रामीण बारी-बारी से रामगंगा नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म पूर्ण करेंगे. वहीं मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.