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कुमाऊं का प्रसिद्ध सोमनाथ मेले का आगाज, ये है अतीत की परंपरा - Somnath Mela Himalaya region

सोमनाथ मेला अपनी संस्कृति और विरासत को अपने आप में समेटे हुए है. जो अल्मोड़ा जिले के तल्ला गेवाड़ घाटी के मासी में लगता है. आधुनिक दौर में इस ऐतिहासिक मेले  में कनोड़िया जाति के लोग अपनी प्राचीन विधा को जीवित रखे हुए हैं. वहीं इस ऐतिहासिक मेले का इतिहास  250 वर्ष पुराना है. इस वर्ष सोमनाथ मेला 12 मई यानी आज से शुरू हो रहा है.

सोमनाथ मेले का इतिहास  250 वर्ष पुराना है.
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Published : May 12, 2019, 11:35 AM IST

द्वाराहाट: कुमाऊं का प्रसिद्ध सोमनाथ मेला अपनी संस्कृति और विरासत को अपने आप में समेटे हुए है. जो अल्मोड़ा जिले के तल्ला गेवाड़ घाटी के मासी में लगता है. आधुनिक दौर में इस ऐतिहासिक मेले में कनोड़िया जाति के लोग अपनी प्राचीन विधा को जीवित रखे हुए हैं. वहीं इस ऐतिहासिक मेले का इतिहास 250 वर्ष पुराना है. इस वर्ष सोमनाथ मेला 12 मई यानी आज से शुरू हो रहा है. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.

पारंपरिक नृत्य करते स्थानीय.

गौर हो कि सोमनाथ मेला अपनी शुरूआत में 15 दिनों तक चलता था. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां के लोग कन्नौज नामक स्थान से मासी घाटी में रहने आए थे. जिन्हें कन्नौज के कनौजिया भी कहा जाता था. उस समय घाटी को बमोर देश के नाम से पुकारा जाता था. भारत में बाबर के आक्रमण के समय कनौजिया बिष्ट अपने कुल पुरोहित फुलोरिया और सेवक कुलावा के साथ पहाड़ में रहने आए थे. कुलावा को उनका मंत्री और सलाहकार भी माना जाता था. कनौजिया जाति के लोग गेहूं की फसल काटने के बाद वैशाख मास के अंतिम सोमवार को पर्वतीय वाद्ययंत्रों की थाप पर पारंपरिक नृत्य करते हैं. जो अब ऐतिहास मेले के रूप जाना जाता है.

कहा जाता है कि कनौजिया जाति के लोग जिस स्थान पर अपना मनोरंजन करते थे. उस स्थान के पास में एक झाड़ी थी, जहां गाय रोज आती और उस झाडी में अपने स्तनों से दूध गिराती थी. स्थानीय लोगों ने जब झाड़ी को साफ किया तो उन्हें वहां शिवलिंग दिखाई दिया. उसी दिन से इस स्थान पर सोमनाथ मेला लगने लगा. सोमनाथ मेले में बारी-बारी से ओड़ा भेटने की रस्म है. परंपरा के अनुसार इस दिन मासीवाल व कनौणी ऑल के ग्रामीण बारी-बारी से रामगंगा नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म पूर्ण करेंगे. वहीं मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

द्वाराहाट: कुमाऊं का प्रसिद्ध सोमनाथ मेला अपनी संस्कृति और विरासत को अपने आप में समेटे हुए है. जो अल्मोड़ा जिले के तल्ला गेवाड़ घाटी के मासी में लगता है. आधुनिक दौर में इस ऐतिहासिक मेले में कनोड़िया जाति के लोग अपनी प्राचीन विधा को जीवित रखे हुए हैं. वहीं इस ऐतिहासिक मेले का इतिहास 250 वर्ष पुराना है. इस वर्ष सोमनाथ मेला 12 मई यानी आज से शुरू हो रहा है. जिसको लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है.

पारंपरिक नृत्य करते स्थानीय.

गौर हो कि सोमनाथ मेला अपनी शुरूआत में 15 दिनों तक चलता था. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां के लोग कन्नौज नामक स्थान से मासी घाटी में रहने आए थे. जिन्हें कन्नौज के कनौजिया भी कहा जाता था. उस समय घाटी को बमोर देश के नाम से पुकारा जाता था. भारत में बाबर के आक्रमण के समय कनौजिया बिष्ट अपने कुल पुरोहित फुलोरिया और सेवक कुलावा के साथ पहाड़ में रहने आए थे. कुलावा को उनका मंत्री और सलाहकार भी माना जाता था. कनौजिया जाति के लोग गेहूं की फसल काटने के बाद वैशाख मास के अंतिम सोमवार को पर्वतीय वाद्ययंत्रों की थाप पर पारंपरिक नृत्य करते हैं. जो अब ऐतिहास मेले के रूप जाना जाता है.

कहा जाता है कि कनौजिया जाति के लोग जिस स्थान पर अपना मनोरंजन करते थे. उस स्थान के पास में एक झाड़ी थी, जहां गाय रोज आती और उस झाडी में अपने स्तनों से दूध गिराती थी. स्थानीय लोगों ने जब झाड़ी को साफ किया तो उन्हें वहां शिवलिंग दिखाई दिया. उसी दिन से इस स्थान पर सोमनाथ मेला लगने लगा. सोमनाथ मेले में बारी-बारी से ओड़ा भेटने की रस्म है. परंपरा के अनुसार इस दिन मासीवाल व कनौणी ऑल के ग्रामीण बारी-बारी से रामगंगा नदी में पत्थर फेंककर ओड़ा भेंटने की रस्म पूर्ण करेंगे. वहीं मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है. जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं.

Intro:कभी व्यापारी मेले के रूप में प्रसिद्ध था मासी का सोमनाथ मेला प्रसिद्ध सोमनाथ मेला कभी 15 दिनों तक चलता था आज कुल 7 दिन ही मिला चल पाता है पुराने समय में रामनगर तक की रोड हुआ करती थी वह समय मासी आने के लिए पैदल ही आना पड़ता था पहाड़ के लोग जरूरी सामान नानी को 100 किलोमीटर पैदल चलकर राम नगर पहुंचे थे और रामनगर या काशीपुर से समान आते थेBody:सोमनाथ मेले के बारे में पुरानी बुजुर्गों से सुनी हुई बातें आज जिन्हें कनोडि़या जाति के नाम से पुकारा जाता है। वह कन्नौज नामक स्थान से इस घाटी में रहने आए इस घाटी को उस समय बमोर देश के नाम से पुकारा जाता था। यह कनोडिया बिष्ट कन्नौज के कनौजिया भी कहे जाते जाते थे ।

बाबर के आक्रमण होने पर कनोडिया बिष्ट पहाड़ में रहने आ गए और अपने साथ अपने कुल पुरोहित फुलोरिया तथा सेवक कुलावा को भी लाए। कुलावा उसका मंत्री व सलाहकार माना जाता था। कनौजिया गेहूं की फसल काटने के बाद वैशाख मास के अंतिम सोमवार को अपना मनो विनोद करता था। उस समय नाच गाना हुडकिये किया करते थे । कनोडिया किसी बात पर कुलाव वंश से नाराज चल रहे थे। और गुस्से में आकर कुलाव वंश पर टूट पड़े फिर सब को मार दिया गया्। कहा जाता है कि एक स्त्री गर्भवती थी जिनसे एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम सोविया कुलाव पड़ा। बच्चे का लालन-पालन माँँ ने अच्छी तरह किया।

जब बच्चा चार-पांच वर्ष का हो गया तो वह अपने गांव में बच्चों के साथ मिलने को आता था। गांव के लोग उसे पूरी भरी बातें करके चिढाते थे उधर कनोडिया कहां पर अपना विनोद करता था। वहीं पर थोड़ी दूर एक झाड़ी थी एक गाय झाड़ी में रोज आती थी और वहां अपने स्तनों से दूध गिर आती थी । जब उसको को साफ करवाया गया तो उस झाड़ी में एक शिवलिंग दिखाई दिया उसी दिन से उस जगह का नाम शिवालय पड़ा और वहीं पर सोमनाथ मेला लगता था। मेले में बारी-बारी से ओडा भेटने की रस्म है जो रामगंगा नदी में निशानों के साथ ओड़ा बेटने की रस्म पूरी की जाती है।Conclusion:सोमनाथ मेला एक हिमालय क्षेत्र की सभ्यता व संस्कृति का ऐतिहासिक मेला है । यह भारतवर्ष के उत्तराखंड प्रदेश के कुमाऊं क्षेत्र के अंतर्गत तल्ला गेवाड़ नामक घाटी में मासी में होता है। यह ऐतिहासिक सोमनाथ कहा जाने वाला मेला कनोनियां अथवा कनोडिया बिष्ट वह मासीवाल नामक उपनाम की स्थानीय मूल निवासियों की प्राचीन ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से संबंधित है।

इसे सोमनाथ
सोमनाथ मेला,ऐतिहासिकसोमनाथ मेला, सल्टिया सोमनाथ या कई स्थानीय लोग स्थानीय बोली में भिडचयाप कौतिक भी कहते हैं। इसका शुभारंभ वैशाख माह के अंतिम सोमवार की पूर्व संध्या से होता है। और यह मेला 7 दिनों तक चलता है । बताया जाता है कि कभी सोमनाथ का मेला कुमाऊं का प्राचीन व सबसे बड़ा व्यापारिक मेला हुआ करता था । पुराने लोग बताते हैं कि कुमाऊं का सोमनाथ मेला और गढ़वाल का कांडा मेला सबसे बड़े मेले थे । सोमनाथ का मेला पहले 15 दिनों तक चलता था। उस समय मासी मैं दुकाने ना के बराबर थी यद्यपि कत्यूरी वह चंद राजाओं ने अपनी सेना वह प्रजा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हाट वह बाजार बसाये थे ।काशीपुर मुरादाबाद गढ़वाल के व्यापारी घोड़े व खच्चरों व कुलियों के द्वारा सामान बेचने के लिए सोमनाथ मेले में आते थे । उस समय रामनगर नहीं बसा था पहाड़ के लोग मेले से अपनी साल भर की जरूरी चीजें खरीदने के साथ-साथ अपने मित्रों और परिचितों से मेले में मिलने आते थे उस समय यातायात के साधन नहीं थे । उस युग में मेले ही संचार, मनोरंजन, मेल मिलाप व आपसी संबंध बनाने के साधन हुआ करते थे । मानना है कि सोमनाथ मेला आज से ढाई सौ वर्षो पुराना मेला है सोमनाथ मेले की इस तल्ला गेवाड़ के मासी के समीप परंतु अब मासी में प्रतिवर्ष होने वाले ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की आराध्य भूमि को सोमनाथेयस्वर महादेव कहते हैं । यहीं से इस ऐतिहासिक मेले की शुरुआत हुई थी जो आज भी तत समय की इतिहास के सुनहरे पन्नों और पाली पछाऊ

इलाके की कुमाऊनी सांस्कृतिक विरासत को उत्तराखंड की संस्कृति के साथ समेटे है। यहीं से मेले के इतिहास का पदार्पण हुआ और इसी सोमनाथेयस्वर महादेव नामक शिवालय से शुरू हुआ वही सोमनाथ वक्त बदला लोग बदले और मेले का स्वरूप भी अछूता नहीं रह सका और बीसवीं सदी के अंत तक मेला मासी के बाजार में होने लगा।
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