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मुनियाचौरा गांव में मिली महापाषाण काल की ओखली, शोध में जुटा पुरातत्व विभाग

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन तिवारी ने सूरेग्रवेल क्षेत्र में पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मुनियाचौरा गांव में कापमार्ग मेगलिथिक ओखली को खोजा है. इसका कालखंड तीन-चार हजार शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है .

मुनियाचौरा गांव में मिली महापाषाण काल की ओखली.
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Published : Oct 13, 2019, 5:52 PM IST

Updated : Oct 13, 2019, 7:59 PM IST

द्वाराहाट: अल्मोड़ा में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान एक महापाषाण काल की कापमार्ग ओखली मिली है. जालली-मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव में इस ओखली मिलने के बाद शोधकर्ताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. बताया जा रहा कि यह ओखली पाली, पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को बताती है. शोधकर्ता इस पुरातात्विक अवशेष को एक बड़ी उपलब्धि मानकर इसकी जांच में जुट गये हैं.

मुनियाचौरा गांव में मिली महापाषाण काल की ओखली.

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन तिवारी ने सूरेग्रवेल क्षेत्र में पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मुनियाचौरा गांव में कापमार्ग मेगलिथिक ओखली को खोजा है. उन्होंने बताया कि कापमार्ग मेगलिथिक अवशेषों के शोधकर्ताओं के लिए यह पुरातात्विक अवशेष उत्तराखंड की आधकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण साक्ष्य साबित हो सकती है. पाषाण खंड में अत्यंत कलात्मक शैली में उकेरी गई आयताकार और बनावट की दृष्टि से डेढ़ फीट लंबी, सवा फीट चौड़ी और एक फीट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है. इसका कालखंड तीन-चार हजार शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है .

पढ़ें-विधायक ठुकराल के बयान को सीएम ने बताया शर्मनाक, कहा- ऐसे बयानों से बचें जनप्रतिनिधि

प्रोफेसर डॉ. मोहन तिवारी ने बताया कि जोयुं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से अधिक ओखलियां तलाशी गई हैं जो कि पुरातत्वविदों के बीच विशेष चर्चा का विषय बनी हुई हैं. वहीं मुनियाचौरा गांव की बच्ची राम छिमवाल ने बताया कि यह ओखली पारंपरिक रूप से पांडवों द्वारा निर्मित बताई जाती है. इस ओखली को किस काम के लिए बनाया गया इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नहीं है. उन्होंने बताया कि वे पीढ़ी दर पीढ़ी इसके इतिहास के बारे में बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं.

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मुनियाचौरा गांव में मिली महापाषाण काल की ओखली.

पढ़ें-स्वास्थ्य महकमे में चिकित्सकों का अटैचमेंट बना मजबूरी, दुर्गम में कमी और शहरों में जरूरत

पुरातत्वविद और इतिहासकार डॉ. यशोधर मठपाल ने 1996 में प्रकाशित रॉक आर्ट ऑफ कुमाऊं हिमालय नामक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अपनी शोध पुस्तक में जोयुं की 11 और 22 ओखलियों के अलावा ग्रवेल स्थित मुनिया की पहाड़ियों की ओखलिओं का भी पुरातत्विक महत्व को उजागर किया था.

पढ़ें-ऋषिकेश: बुजुर्ग पर भालू ने किया हमला, गंभीर रूप से घायल

अनाज कूटने के लिए होता होगा ओखली का इस्तेमाल
पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन चंद तिवारी के मुताबिक पुरातत्व सर्वेक्षण की दौरान अकस्मात इस ओखली के मिलने से प्रमाणित होता है कि यहां अब भी कई ऐसी चीजें हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि मुनियाचौरा की इन ओखलियों का प्रयोग धार्मिक प्रयोजनों के अतिरिक्त वैदिक कालीन कृषि सभ्यता के किसान अनाज कुटने, तेल निकालने, यज्ञ के अवसरों पर चावलों को कुटने के लिए करते होंगे.

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी बोले निरीक्षण करेंगे
वहीं, इस मामले पर बोलते हुए द्वाराहाट के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सीएस चौहान ने कहा कि एक पत्थर में बनी आकृति को मेगालिथिक श्रेणी कहा जाता है. उन्होंने कहा कि इस तरह की ओखली प्रकाश में आई है. उन्होंने कहा कि इसका स्थलीय निरीक्षण किया जाएगा. जिसके बाद ही इसकी स्पष्ट जानकारी मिल सकेगी.

द्वाराहाट: अल्मोड़ा में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान एक महापाषाण काल की कापमार्ग ओखली मिली है. जालली-मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव में इस ओखली मिलने के बाद शोधकर्ताओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. बताया जा रहा कि यह ओखली पाली, पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को बताती है. शोधकर्ता इस पुरातात्विक अवशेष को एक बड़ी उपलब्धि मानकर इसकी जांच में जुट गये हैं.

मुनियाचौरा गांव में मिली महापाषाण काल की ओखली.

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन तिवारी ने सूरेग्रवेल क्षेत्र में पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मुनियाचौरा गांव में कापमार्ग मेगलिथिक ओखली को खोजा है. उन्होंने बताया कि कापमार्ग मेगलिथिक अवशेषों के शोधकर्ताओं के लिए यह पुरातात्विक अवशेष उत्तराखंड की आधकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण साक्ष्य साबित हो सकती है. पाषाण खंड में अत्यंत कलात्मक शैली में उकेरी गई आयताकार और बनावट की दृष्टि से डेढ़ फीट लंबी, सवा फीट चौड़ी और एक फीट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है. इसका कालखंड तीन-चार हजार शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है .

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प्रोफेसर डॉ. मोहन तिवारी ने बताया कि जोयुं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से अधिक ओखलियां तलाशी गई हैं जो कि पुरातत्वविदों के बीच विशेष चर्चा का विषय बनी हुई हैं. वहीं मुनियाचौरा गांव की बच्ची राम छिमवाल ने बताया कि यह ओखली पारंपरिक रूप से पांडवों द्वारा निर्मित बताई जाती है. इस ओखली को किस काम के लिए बनाया गया इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नहीं है. उन्होंने बताया कि वे पीढ़ी दर पीढ़ी इसके इतिहास के बारे में बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं.

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मुनियाचौरा गांव में मिली महापाषाण काल की ओखली.

पढ़ें-स्वास्थ्य महकमे में चिकित्सकों का अटैचमेंट बना मजबूरी, दुर्गम में कमी और शहरों में जरूरत

पुरातत्वविद और इतिहासकार डॉ. यशोधर मठपाल ने 1996 में प्रकाशित रॉक आर्ट ऑफ कुमाऊं हिमालय नामक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अपनी शोध पुस्तक में जोयुं की 11 और 22 ओखलियों के अलावा ग्रवेल स्थित मुनिया की पहाड़ियों की ओखलिओं का भी पुरातत्विक महत्व को उजागर किया था.

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अनाज कूटने के लिए होता होगा ओखली का इस्तेमाल
पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहन चंद तिवारी के मुताबिक पुरातत्व सर्वेक्षण की दौरान अकस्मात इस ओखली के मिलने से प्रमाणित होता है कि यहां अब भी कई ऐसी चीजें हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि मुनियाचौरा की इन ओखलियों का प्रयोग धार्मिक प्रयोजनों के अतिरिक्त वैदिक कालीन कृषि सभ्यता के किसान अनाज कुटने, तेल निकालने, यज्ञ के अवसरों पर चावलों को कुटने के लिए करते होंगे.

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी बोले निरीक्षण करेंगे
वहीं, इस मामले पर बोलते हुए द्वाराहाट के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सीएस चौहान ने कहा कि एक पत्थर में बनी आकृति को मेगालिथिक श्रेणी कहा जाता है. उन्होंने कहा कि इस तरह की ओखली प्रकाश में आई है. उन्होंने कहा कि इसका स्थलीय निरीक्षण किया जाएगा. जिसके बाद ही इसकी स्पष्ट जानकारी मिल सकेगी.

Intro:द्वाराहाट अल्मोड़ा पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान जालली - मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्ग ओखली मिली है। यह ओखली पाली पछाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक इतिहास को बताती महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मानी जा रही है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मोहन तिवारी ने विगत दिवस सूरेग्रवेल क्षेत्र में पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मुनियाचौरा गांव में कापमार्ग मेगलिथिक ओखली को खोजा है। उन्होंने बताया कि कापमार्ग मेगलिथिक अवशेषों के शोधकर्ता विद्वानों के लिए यह पुरातात्विक अवशेष उत्तराखंड की आधकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण साक्ष्य सिद्ध हो सकती है । आयताकार पाषाण खंड में अत्यंत कलात्मक शैली में उकेरी गई आकार और बनावट की दृष्टि से डेढ़ फुट लंबी,सवा चौड़ी और एक फीट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है ।इसका कालखंड तीन-चार हजार शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है । उन्होंने बताया कि जोयुं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से अधिक ओखलियां इसी शैली में तलाशी गई है । जो पुरातत्वविदों के बीच विशेष चर्चा का विषय बनी हुई है ।Body:द्वाराहाट अल्मोड़ा पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान जालली - मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्ग ओखली मिली है। यह ओखली पाली पछाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक इतिहास को बताती महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मानी जा रही है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मोहन तिवारी ने विगत दिवस सूरेग्रवेल क्षेत्र में पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मुनियाचौरा गांव में कापमार्ग मेगलिथिक ओखली को खोजा है। उन्होंने बताया कि कापमार्ग मेगलिथिक अवशेषों के शोधकर्ता विद्वानों के लिए यह पुरातात्विक अवशेष उत्तराखंड की आधकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण साक्ष्य सिद्ध हो सकती है । आयताकार पाषाण खंड में अत्यंत कलात्मक शैली में उकेरी गई आकार और बनावट की दृष्टि से डेढ़ फुट लंबी,सवा चौड़ी और एक फीट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है ।इसका कालखंड तीन-चार हजार शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है । उन्होंने बताया कि जोयुं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से अधिक ओखलियां इसी शैली में तलाशी गई है । जो पुरातत्वविदों के बीच विशेष चर्चा का विषय बनी हुई है ।Conclusion:द्वाराहाट अल्मोड़ा पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान जालली - मासी मोटर मार्ग पर सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्ग ओखली मिली है। यह ओखली पाली पछाऊं क्षेत्र की सांस्कृतिक इतिहास को बताती महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष मानी जा रही है।

दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ मोहन तिवारी ने विगत दिवस सूरेग्रवेल क्षेत्र में पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मुनियाचौरा गांव में कापमार्ग मेगलिथिक ओखली को खोजा है। उन्होंने बताया कि कापमार्ग मेगलिथिक अवशेषों के शोधकर्ता विद्वानों के लिए यह पुरातात्विक अवशेष उत्तराखंड की आधकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण साक्ष्य सिद्ध हो सकती है । आयताकार पाषाण खंड में अत्यंत कलात्मक शैली में उकेरी गई आकार और बनावट की दृष्टि से डेढ़ फुट लंबी,सवा चौड़ी और एक फीट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है ।इसका कालखंड तीन-चार हजार शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है । उन्होंने बताया कि जोयुं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से अधिक ओखलियां इसी शैली में तलाशी गई है । जो पुरातत्वविदों के बीच विशेष चर्चा का विषय बनी हुई है ।

मुनिया चौरा गांव की बची राम छिमवाल ने बताया कि यह ओखली पारंपरिक रूप से पांडवों द्वारा निर्मित बताई जाती है। इस ओखली को यहां किस कार्य के लिए बनाया गया इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नहीं है। पीढ़ी दर पीढ़ी बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं इसके इतिहास के बारे में भी किसी को जानकारी नहीं है। पुरातत्वविद और इतिहासकार डॉ यशोधर मठपाल ने 1996 में प्रकाशित रॉक आर्ट ऑफ कुमाऊं हिमालय नामक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अपनी शोध पुस्तक में जोयुं की 11 और 22 ओखलियों के अलावा ग्रवेल स्थित मुनिया की पहाड़ी में स्थित ओखलिओं के भी पुरातत्विक महत्व को उजागर किया था।

अनाज कूटने के लिए होता होगा ओखली का इस्तेमाल

पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर मोहन चंद तिवारी के मुताबिक पुरातत्व सर्वेक्षण की दौरान अकस्मात इस ओखली के मिलने से प्रमाणित होता है कि आज इतिहास काल में मुनिया चौरा की इन ओखलियों का प्रयोग धार्मिक प्रयोजनों के अतिरिक्त वैदिक कालीन कृषि सभ्यता की किसान अनाज कुटने, तेल निकालने, यज्ञ के अवसर चावलों को कुटने के लिए प्रयोग करते होंगे ।

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी बोले निरीक्षण करेंगे

द्वाराहाट क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉक्टर सीएस चौहान ने बताया कि एक पत्थर में बनी आकृति को मेगालिथिक श्रेणी कहा जाता है । उन्होंने कहा कि ओखली प्रकाश में आई है । तो इसका स्थलीय निरीक्षण किया जाएगा । इसके बाद विशेष जानकारी मिल सकेगी।
Last Updated : Oct 13, 2019, 7:59 PM IST
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