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सांस्कृतिक नगरी में मौजूद है हजारों साल पुरानी कलाकृतियां, मानव सभ्यता का प्रमाण हैं लखुउडियार - अल्मोड़ा  न्यूज

ऐतिहासिक शहर अल्मोड़ा में पांच हजार साल पुराने प्रमाण आज भी मौजूद हैं. आदिकाल में अल्मोड़ा की गुफाओं में आदि मानवों के रहने के साक्ष्य मिलते हैं.

ऐतिहासिक धरोहरें
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Published : Jul 7, 2019, 8:50 PM IST

अल्मोड़ाः अल्मोड़ा जिला अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए देश दुनिया में अपनी पहचान रखता है. चाहे कत्यूरी और चन्द शासकों के मंदिर हो या फिर ब्रिटिश काल की धरोहरें यहां पर सैकड़ों ऐसी पुरात्विक चीजें मौजूद हैं. जो अल्मोड़ा को एक ऐतिहासिक नगरी बनाती है. देखिए खास रिपोर्ट...

पुरातात्विक गाथा का जीता जागता दस्तावेज है लखुउडियार

बता दें कि अल्मोड़ा में पांच हजार साल पुराने प्रमाण आज भी मौजूद हैं. आदिकाल में अल्मोड़ा की गुफाओं में आदि मानवों के रहने के प्रमाण हैं. अल्मोड़ा जागेश्वर मोटर मार्ग पर जनपद मुख्यालय से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाड़ेछीना के पास लखुउडियार पुरातात्विक गाथा का जीता जागता दस्तावेज है.

5000 साल पुरानी प्रागैतिहासिक काल की इन गुफाओं में मानव का निवास होता था. जिसकी पुष्टि यहां पर आदि मानवों द्वारा निर्मित भित्ति चित्र करते हैं. सुयाल नदी के ऊपर स्थित इस गुफा में आदिकाल के मानवों द्वारा कई प्रकार के शैलचित्र उकेरे हैं जिनमे से कुछ मानव श्रृंखला, नृत्य करते हुए मानव और पशुओं की आकृति देखने को मिलती है.

यह भी पढ़ेंः छात्रवृत्ति घोटाला: कोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश के 11 जिलों में एसआईटी करेगी जांच, सौंपी जिम्मेदारी

इतिहासकारों के अनुसार लखुउडियार उत्तराखंड की सबसे प्राचीनतम गुफा में है. जिसमें आदि काल में मानव रहा करते थे उस दौरान मानवों ने इन गुफाओं में काले सफेद और गेरवे रंग से आकृतियां बनाई है. जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से शोध के छात्र , सैलानी और जिज्ञासु लोग यहां आकर इस अनुपम कला के साक्षी बनते हैं,

लेकिन समय चक्र बीतने के साथ ही इस गुफा में ऐतिहासिक कलाकृतियां धुंधली होने लगी है. जिन्हें संरक्षण की जरूरत है. हालांकि, पुरातत्व विभाग द्वारा इन्हें अपने संरक्षण में लिया गया है .

लखु उडियार का मतलब है एक लाख उडियार यानी गुफा. बताया जाता है कि यहां पर लाखों की संख्या में छोटी बड़ी प्राचीन गुफा हैं जो पुरातात्विक दस्तकारी का प्रतिबिंब है . लखुउडियार में अंकित चित्र लोगों को अचंभित करने वाले हैं.

हजारों साल पुराने इन चित्रों का रंग अभी भी खराब नहीं हुआ है. जानकारों की मानें तो उस युग के मानवों के पास कुछ ऐसी जड़ी का ज्ञान होगा, जिसका रंग हजारों साल बाद भी नहीं मिटा है.

एसएसजे परिसर में इतिहास के प्रोफेसर बीडीएस नेगी का कहना है कि इस शैली के शैलचित्र मध्यप्रदेश के भीमवेटका, पंचमणि और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मौजूद हैं. यह चित्र इतने पुराने हैं कि अधिकांश चित्रों की सही तस्वीर नहीं आ पाती है लेकिन, यह चित्र स्थल पर आकर सही तरीके से देखे जा सकते हैं.

यह भी पढ़ेंः बारिश से कई घंटे बाधित रहा यमुनोत्री हाईवे, पालिगाड़ नदी में फंसी जेसीबी

वहीं, मानव विकास की प्राचीनता को दिखाने के लिए इन गुफाओं का खासा महत्व है हजारों साल पुरानी इन गुफाओं की लिपियों और ऐतिहासिक कृतियों को अभी इतिहासविदों द्वारा समझना बाकी है. यह माना जा रहा है कि इसके पीछे इतिहास की कोई गुत्थी छिपी हो.

80 के दशक के बाद इस गुफा को संज्ञान में आने के बाद 1986 में पुरातत्व विभाग ने इस को संरक्षित किया गया लेकिन इसकी सही देखरेख न होने के कारण धीरे धीरे कई चित्र नष्ट हो गए हैं.

इतिहासकारों के अनुसार यहां पर अलग-अलग कालों में तीन रंगों का इस्तेमाल किया गया है इससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में यहां मानव लगातार विचरण करता रहा. माना जाता है कि यह कलाकृतियां मेसोलिथिक चालकोलिथिक काल के हैं .

अल्मोड़ाः अल्मोड़ा जिला अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए देश दुनिया में अपनी पहचान रखता है. चाहे कत्यूरी और चन्द शासकों के मंदिर हो या फिर ब्रिटिश काल की धरोहरें यहां पर सैकड़ों ऐसी पुरात्विक चीजें मौजूद हैं. जो अल्मोड़ा को एक ऐतिहासिक नगरी बनाती है. देखिए खास रिपोर्ट...

पुरातात्विक गाथा का जीता जागता दस्तावेज है लखुउडियार

बता दें कि अल्मोड़ा में पांच हजार साल पुराने प्रमाण आज भी मौजूद हैं. आदिकाल में अल्मोड़ा की गुफाओं में आदि मानवों के रहने के प्रमाण हैं. अल्मोड़ा जागेश्वर मोटर मार्ग पर जनपद मुख्यालय से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाड़ेछीना के पास लखुउडियार पुरातात्विक गाथा का जीता जागता दस्तावेज है.

5000 साल पुरानी प्रागैतिहासिक काल की इन गुफाओं में मानव का निवास होता था. जिसकी पुष्टि यहां पर आदि मानवों द्वारा निर्मित भित्ति चित्र करते हैं. सुयाल नदी के ऊपर स्थित इस गुफा में आदिकाल के मानवों द्वारा कई प्रकार के शैलचित्र उकेरे हैं जिनमे से कुछ मानव श्रृंखला, नृत्य करते हुए मानव और पशुओं की आकृति देखने को मिलती है.

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इतिहासकारों के अनुसार लखुउडियार उत्तराखंड की सबसे प्राचीनतम गुफा में है. जिसमें आदि काल में मानव रहा करते थे उस दौरान मानवों ने इन गुफाओं में काले सफेद और गेरवे रंग से आकृतियां बनाई है. जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से शोध के छात्र , सैलानी और जिज्ञासु लोग यहां आकर इस अनुपम कला के साक्षी बनते हैं,

लेकिन समय चक्र बीतने के साथ ही इस गुफा में ऐतिहासिक कलाकृतियां धुंधली होने लगी है. जिन्हें संरक्षण की जरूरत है. हालांकि, पुरातत्व विभाग द्वारा इन्हें अपने संरक्षण में लिया गया है .

लखु उडियार का मतलब है एक लाख उडियार यानी गुफा. बताया जाता है कि यहां पर लाखों की संख्या में छोटी बड़ी प्राचीन गुफा हैं जो पुरातात्विक दस्तकारी का प्रतिबिंब है . लखुउडियार में अंकित चित्र लोगों को अचंभित करने वाले हैं.

हजारों साल पुराने इन चित्रों का रंग अभी भी खराब नहीं हुआ है. जानकारों की मानें तो उस युग के मानवों के पास कुछ ऐसी जड़ी का ज्ञान होगा, जिसका रंग हजारों साल बाद भी नहीं मिटा है.

एसएसजे परिसर में इतिहास के प्रोफेसर बीडीएस नेगी का कहना है कि इस शैली के शैलचित्र मध्यप्रदेश के भीमवेटका, पंचमणि और उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में मौजूद हैं. यह चित्र इतने पुराने हैं कि अधिकांश चित्रों की सही तस्वीर नहीं आ पाती है लेकिन, यह चित्र स्थल पर आकर सही तरीके से देखे जा सकते हैं.

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वहीं, मानव विकास की प्राचीनता को दिखाने के लिए इन गुफाओं का खासा महत्व है हजारों साल पुरानी इन गुफाओं की लिपियों और ऐतिहासिक कृतियों को अभी इतिहासविदों द्वारा समझना बाकी है. यह माना जा रहा है कि इसके पीछे इतिहास की कोई गुत्थी छिपी हो.

80 के दशक के बाद इस गुफा को संज्ञान में आने के बाद 1986 में पुरातत्व विभाग ने इस को संरक्षित किया गया लेकिन इसकी सही देखरेख न होने के कारण धीरे धीरे कई चित्र नष्ट हो गए हैं.

इतिहासकारों के अनुसार यहां पर अलग-अलग कालों में तीन रंगों का इस्तेमाल किया गया है इससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में यहां मानव लगातार विचरण करता रहा. माना जाता है कि यह कलाकृतियां मेसोलिथिक चालकोलिथिक काल के हैं .

Intro:स्पेशल स्टोरी


अल्मोड़ा जिला अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए देश दुनिया मे अपनी पहचान रखता है। चाहे कत्यूरी और चन्द शासकों के मंदिर, किले , नौले हो या फिर ब्रिटिश काल की धरोहरें यहाँ पर सैकड़ो ऐसी ऐतिहासिक धरोहरें है जो अल्मोड़ा को ऐतिहासिक बनाते हैं। यही नही अल्मोड़ा में आज से पांच हज़ार साल पुराने युग के प्रमाण आज भी मौजूद है। आदिकाल में अल्मोड़ा की गुफाओं में आदिमानवो के रहने के प्रमाण हैं । अल्मोड़ा जागेश्वर मोटर मार्ग पर जनपद मुख्यालय से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाड़ेछीना के पास लखुउडियार पुरातात्विक गाथा का जीता जागता दस्तावेज है। 5000 साल पुरानी प्रागैतिहासिक काल की इन गुफाओं में मानव का निवास होता था। जिसकी पुष्टि यहाँ पर आदि मानवो द्वारा निर्मित भित्ति चित्र करते हैं। सुयाल नदी के ऊपर स्थित इस गुफा में आदि काल के मानवों द्वारा कई प्रकार के शैलचित्र उकेरे हैं। जिनमे से कुछ मानव श्रृंखला , नृत्य करते हुए मानव और पशुओं की आकृति देखने को मिलती हैं। इतिहासकारों के अनुसार लखुउडियार उत्तराखंड की सबसे प्राचीनतम गुफा में है। जिसमें आदि काल में मानव रहा करते थे उस दौरान मानवों ने इन गुफाओं में काले सफेद और गेरवे रंग से आकृतियां बनाई है। जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से शोध के छात्र , शैलानी और जिज्ञासु लोग यहां आकर इस अनुपम कला के साक्षी बनते हैं ,लेकिन समय चक्र बीतने के साथ ही इस गुफा में ऐतिहासिक कलाकृतियां धुंधली होने लगी है। जिन्हें संरक्षण की जरूरत है। हालांकि पुरातत्व विभाग द्वारा इन्हें अपने संरक्षण में लिया गया है ।




Body:लखु उडियार का मतलब है एक लाख उडियार यानी गुफा। बताया जाता है कि यहाँ पर लाखों की संख्या में छोटी बड़ी प्राचीन गुफा है, जो पुरातात्विक दस्तकारी का प्रतिबिंब है । लखुउडियार में अंकित चित्र लोगो को अचंभित करने वाले हैं। हज़ारो साल पुराने इन चित्रों का रंग अभी भी खराब नही हुआ है। इस पर जानकारों का मत है कि उस युग के मानवो के पास कुछ ऐसी जड़ी का ज्ञान हो जिसका कलर हज़ारों साल बाद भी नही मिटता हो।
एसएसजे परिसर में इतिहास के प्रोफेसर बीडीएस नेगी का कहना है कि इस शैली के शैलचित्र मध्यप्रदेश के भीमवेटका, पंचमणी और उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर में मौजूद हैं। यह चित्र इतने पुराने हैं कि अधिकांश चित्रों की सही तस्वीर नही आ पाती है लेकिन यह चित्र स्थल पर आकर सही तरीके से देखे जा सकते हैं।
मानव विकास की प्राचीनता को दिखाने के लिए इन गुफाओं का खासा महत्व है हजारों साल पुरानी इन गुफाओं की लिपियों और ऐतिहासिक कृतियों को अभी इतिहास विदों द्वारा समझना बाकी है ।यह माना जा रहा है कि इसके पीछे इतिहास की कोई गुत्थी छिपी हो। 80 के दशक के बाद इस गुफा को संज्ञान में आने के बाद 1986 में पुरातत्व विभाग ने इस को संरक्षित किया गया लेकिन इसकी सही देख रेख नही होने के कारण धीरे धीरे कई चित्र नष्ट हो गए हैं।
इतिहासकारों के अनुसार यहां पर अलग-अलग कालों में तीन रंगों का इस्तेमाल किया गया है इससे पता चलता है कि प्रागैतिहासिक काल में यहाँ मानव लगातार विचरण करता रहा। माना जाता है कि यह कलाकृतियां मेसोलिथिक चालकोलिथिक काल के हैं ।

बाइट- राकेश , स्थानीय गाइड

बाइट- डॉ ललित जोशी प्रोफेसर एसएसजे विश्वविद्यालय


Conclusion:
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