अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान (जीबीपीएनआईएचईएसडी) कोसी कटारमल एक फरवरी से अपना एक रीजनल केंद्र लेह में खोलने जा रहा है. इस अध्ययन केंद्र में वैज्ञानिक भारत-चीन के बीच स्थित लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के आसपास के ट्राॅस हिमालयी क्षेत्र , शीत मरुस्थल, काराकोरम, लद्दाख एवं जास्कर की पर्वत चोटियों के बीच पाये जाने वाले दुर्लभ वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं पर अध्ययन कर सकेंगे. लेह के नये अध्ययन केंद्र से वैज्ञानिक इकोलाॅजी को प्रभावित किये बगैर संस्कृति संरक्षण कर टूरिज्म क्षेत्र में आजीविका प्रबंधन के अवसर भी खोजेंगे.
पिछले साल सिक्किम में ग्यारह हिमालयी राज्यों के सतत विकास के लिए गवर्निंग बोर्ड की बैठक आयोजित की गई थी. जिसमें वैज्ञानिकों की मांग को देखते हुए उच्च हिमालयी पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र खोले जाने की संस्तुति दी गई. जिसके बाद लद्दाख गर्वमेंट ने हाल ही में हुए लद्दाख विकास समिट 2020 में देशभर के पर्यावरणीय एक्सपर्टों द्वारा एक उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र लेह में खोले जाने की मांग उठाई, ताकि, नये पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र से केंद्र शासित प्रदेश की दुर्लभ प्रजातियों, जड़ी-बूटियों, कृषि एवं जल प्रबंधन के समावेशी विकास के लिए नीति बनाई जा सके.
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लद्दाख गवर्मेंट की मांग के बाद भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लद्दाख के लेह में देश के अनछुये हिमालयी जीव-जन्तुओं, वनस्पति पारिस्थितिकीय को संरक्षित करने के लिए शोध केंद्र को मंजूरी दी. जिसका जिम्मा अल्मोड़ा के गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी संस्थान के वैज्ञानिकों को दिया गया है. पर्यावरण संस्थान जीबी पंत की ओर से लेह सेंटर के लिए भूमि का चयन कर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की नियुक्ति भी कर दी गई है. संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक फरवरी से उच्च हिमालयी लेह केंद्र में काम शुरू कर दिया जाएगा. इसके लिए संस्थान द्वारा पांच सदस्यीय शिष्टमंडल को शोध कार्य के लिए यहां भेज दिया गया है.
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जीबी पंत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का मानना है कि लेह सेंटर खुलने से भारत, चीन, नेपाल और तिब्बत के पार हिमालयी भू-क्षेत्र के शीत (ठंडे) मरुस्थलीय जलवायु एवं जैव विविधता का भारतीय वैज्ञानिक आसानी से समझ सकेंगे. इसके साथ ही वे ट्राॅस हिमालयी संस्कृति को प्रभावित किए बिना वहां के निवासियों के सस्टेनेबल डेवलपमेंट, आमदनी को बढ़ाने एवं टूरिज्म कैरिंग कैपसिटी का अध्ययन कर विकास नीति बनाने में सहयोग कर सकेंगे.
जीबी पंत संस्थान के निदेशक आरएस रावल ने बताया कि लेह में पांचवें रीजनल सेंटर खोलने का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिए आजीविका प्रबंधन के संसाधन उपलब्ध करवाना, स्वास्थ्य एवं पोषण, मृदा व जल प्रबंधन और ठोस कृषि विकास पर ध्यान देना है. उन्होंने बताया कि संस्थान ने इससे पहले सिक्किम के पांग्थांग‚ ईटानगर‚ गढ़वाल के श्रीनगर और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में रीजनल सेंटर स्थापित किये हैं.