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भारत-चीन LAC पर खुलेगा रीजनल रिसर्च सेंटर, लेह रवाना हुए वैज्ञानिक

लद्दाख गर्वमेंट ने हाल ही में हुए लद्दाख विकास समिट 2020 में देशभर के पर्यावरणीय एक्सपर्टों द्वारा एक उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र लेह में खोले जाने की मांग उठाई है. जिससे नये पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र से केंद्र शासित प्रदेश की दुर्लभ प्रजातियों, जड़ी-बूटियों, कृषि एवं जल प्रबंधन के समावेशी विकास के लिए नीति बनाई जा सके.

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जीबी पंत संस्थान भाारत-चीन LAC पर खोलगा रिजनल केंद्र
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Published : Jan 29, 2020, 8:25 PM IST

अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान (जीबीपीएनआईएचईएसडी) कोसी कटारमल एक फरवरी से अपना एक रीजनल केंद्र लेह में खोलने जा रहा है. इस अध्ययन केंद्र में वैज्ञानिक भारत-चीन के बीच स्थित लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के आसपास के ट्राॅस हिमालयी क्षेत्र , शीत मरुस्थल, काराकोरम, लद्दाख एवं जास्कर की पर्वत चोटियों के बीच पाये जाने वाले दुर्लभ वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं पर अध्ययन कर सकेंगे. लेह के नये अध्ययन केंद्र से वैज्ञानिक इकोलाॅजी को प्रभावित किये बगैर संस्कृति संरक्षण कर टूरिज्म क्षेत्र में आजीविका प्रबंधन के अवसर भी खोजेंगे.

पिछले साल सिक्किम में ग्यारह हिमालयी राज्यों के सतत विकास के लिए गवर्निंग बोर्ड की बैठक आयोजित की गई थी. जिसमें वैज्ञानिकों की मांग को देखते हुए उच्च हिमालयी पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र खोले जाने की संस्तुति दी गई. जिसके बाद लद्दाख गर्वमेंट ने हाल ही में हुए लद्दाख विकास समिट 2020 में देशभर के पर्यावरणीय एक्सपर्टों द्वारा एक उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र लेह में खोले जाने की मांग उठाई, ताकि, नये पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र से केंद्र शासित प्रदेश की दुर्लभ प्रजातियों, जड़ी-बूटियों, कृषि एवं जल प्रबंधन के समावेशी विकास के लिए नीति बनाई जा सके.

भारत-चीन LAC पर खुलेगा रीजनल रिसर्च सेंटर

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लद्दाख गवर्मेंट की मांग के बाद भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लद्दाख के लेह में देश के अनछुये हिमालयी जीव-जन्तुओं, वनस्पति पारिस्थितिकीय को संरक्षित करने के लिए शोध केंद्र को मंजूरी दी. जिसका जिम्मा अल्मोड़ा के गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी संस्थान के वैज्ञानिकों को दिया गया है. पर्यावरण संस्थान जीबी पंत की ओर से लेह सेंटर के लिए भूमि का चयन कर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की नियुक्ति भी कर दी गई है. संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक फरवरी से उच्च हिमालयी लेह केंद्र में काम शुरू कर दिया जाएगा. इसके लिए संस्थान द्वारा पांच सदस्यीय शिष्टमंडल को शोध कार्य के लिए यहां भेज दिया गया है.

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जीबी पंत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का मानना है कि लेह सेंटर खुलने से भारत, चीन, नेपाल और तिब्बत के पार हिमालयी भू-क्षेत्र के शीत (ठंडे) मरुस्थलीय जलवायु एवं जैव विविधता का भारतीय वैज्ञानिक आसानी से समझ सकेंगे. इसके साथ ही वे ट्राॅस हिमालयी संस्कृति को प्रभावित किए बिना वहां के निवासियों के सस्टेनेबल डेवलपमेंट, आमदनी को बढ़ाने एवं टूरिज्म कैरिंग कैपसिटी का अध्ययन कर विकास नीति बनाने में सहयोग कर सकेंगे.

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जीबी पंत संस्थान के निदेशक आरएस रावल ने बताया कि लेह में पांचवें रीजनल सेंटर खोलने का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिए आजीविका प्रबंधन के संसाधन उपलब्ध करवाना, स्वास्थ्य एवं पोषण, मृदा व जल प्रबंधन और ठोस कृषि विकास पर ध्यान देना है. उन्होंने बताया कि संस्थान ने इससे पहले सिक्किम के पांग्थांग‚ ईटानगर‚ गढ़वाल के श्रीनगर और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में रीजनल सेंटर स्थापित किये हैं.

अल्मोड़ा: गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान (जीबीपीएनआईएचईएसडी) कोसी कटारमल एक फरवरी से अपना एक रीजनल केंद्र लेह में खोलने जा रहा है. इस अध्ययन केंद्र में वैज्ञानिक भारत-चीन के बीच स्थित लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के आसपास के ट्राॅस हिमालयी क्षेत्र , शीत मरुस्थल, काराकोरम, लद्दाख एवं जास्कर की पर्वत चोटियों के बीच पाये जाने वाले दुर्लभ वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं पर अध्ययन कर सकेंगे. लेह के नये अध्ययन केंद्र से वैज्ञानिक इकोलाॅजी को प्रभावित किये बगैर संस्कृति संरक्षण कर टूरिज्म क्षेत्र में आजीविका प्रबंधन के अवसर भी खोजेंगे.

पिछले साल सिक्किम में ग्यारह हिमालयी राज्यों के सतत विकास के लिए गवर्निंग बोर्ड की बैठक आयोजित की गई थी. जिसमें वैज्ञानिकों की मांग को देखते हुए उच्च हिमालयी पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र खोले जाने की संस्तुति दी गई. जिसके बाद लद्दाख गर्वमेंट ने हाल ही में हुए लद्दाख विकास समिट 2020 में देशभर के पर्यावरणीय एक्सपर्टों द्वारा एक उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र लेह में खोले जाने की मांग उठाई, ताकि, नये पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र से केंद्र शासित प्रदेश की दुर्लभ प्रजातियों, जड़ी-बूटियों, कृषि एवं जल प्रबंधन के समावेशी विकास के लिए नीति बनाई जा सके.

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लद्दाख गवर्मेंट की मांग के बाद भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लद्दाख के लेह में देश के अनछुये हिमालयी जीव-जन्तुओं, वनस्पति पारिस्थितिकीय को संरक्षित करने के लिए शोध केंद्र को मंजूरी दी. जिसका जिम्मा अल्मोड़ा के गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी संस्थान के वैज्ञानिकों को दिया गया है. पर्यावरण संस्थान जीबी पंत की ओर से लेह सेंटर के लिए भूमि का चयन कर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की नियुक्ति भी कर दी गई है. संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक फरवरी से उच्च हिमालयी लेह केंद्र में काम शुरू कर दिया जाएगा. इसके लिए संस्थान द्वारा पांच सदस्यीय शिष्टमंडल को शोध कार्य के लिए यहां भेज दिया गया है.

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जीबी पंत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकों का मानना है कि लेह सेंटर खुलने से भारत, चीन, नेपाल और तिब्बत के पार हिमालयी भू-क्षेत्र के शीत (ठंडे) मरुस्थलीय जलवायु एवं जैव विविधता का भारतीय वैज्ञानिक आसानी से समझ सकेंगे. इसके साथ ही वे ट्राॅस हिमालयी संस्कृति को प्रभावित किए बिना वहां के निवासियों के सस्टेनेबल डेवलपमेंट, आमदनी को बढ़ाने एवं टूरिज्म कैरिंग कैपसिटी का अध्ययन कर विकास नीति बनाने में सहयोग कर सकेंगे.

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जीबी पंत संस्थान के निदेशक आरएस रावल ने बताया कि लेह में पांचवें रीजनल सेंटर खोलने का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों के लिए आजीविका प्रबंधन के संसाधन उपलब्ध करवाना, स्वास्थ्य एवं पोषण, मृदा व जल प्रबंधन और ठोस कृषि विकास पर ध्यान देना है. उन्होंने बताया कि संस्थान ने इससे पहले सिक्किम के पांग्थांग‚ ईटानगर‚ गढ़वाल के श्रीनगर और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में रीजनल सेंटर स्थापित किये हैं.

Intro:
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थान कोसी कटारमल एक फरवरी से अपना  एक रिजिनल केंद्र उच्च हिमालयी क्षेत्र लेह में खोलने जा रहा है। इस अध्ययन केंद्र से  वैज्ञानिक विशेष रूप से भारत-चीन के बीच स्थित लाइन आॅफ ऐक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के आसपास के ट्राॅस  हिमालयी क्षेत्र , शीत मरुस्थल, काराकोरम, लद्दाख एवं जास्कर की पर्वत चोटियों के बीच पाये जाने वाले दुर्लभ वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं पर अध्ययन कर सकेंगे। लेह के नये अध्ययन केंद्र से वैज्ञानिक  लद्दाख के निवासियों के लिए इकोलाॅजी  को प्रभावित किये बगैर और वहाँ की संस्कृति का संरक्षण कर टूरिज्म के क्षेत्र में आजीविका प्रबंधन के अवसर खोजेंगे और साथ ही तापमान परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य, मृदा, कृषि व जल प्रबंधन के विकास पर शोध कार्य कर केंद्र व नये केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लिए नीति बनाने पर सुझाव देंगे। 
Body:बतादे कि पिछले साल सिक्किम में आयोजित ग्यारह हिमालयी राज्यों के सतत विकास के लिए गवर्निंग बोर्ड की बैठक में लंबे समय से वैज्ञानिकों की मांग को देखते हुए उच्च हिमालयी पर्यावरणीय अध्ययन केंद्र खोले जाने की संस्तुति दी थी। जिसके बाद लद्दाख गर्वमेंट द्वारा हाल ही में हुए लद्दाख विकास समिट 2020 में देशभर के पर्यावरणीय एक्सपर्टों द्वारा एक उच्च हिमालयी अध्ययन केंद्र लेह में खोले जाने की मांग उठाईं। ताकि, नये पर्यावरणीय अध्ययन कंेद्र से केंद्र शासित प्रदेश की दुर्लभ प्रजातियों, जड़ी-बूटियों, कृषि एवं जल प्रबंधन के समावेशी विकास के लिए नीति बनाईं जा सकें। लद्दाख गवर्मेंट की मांग के बाद भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लद्दाख के लेह में देश के अनछुये  हिमालयी जीव-जन्तुओं, वनस्पति पारिस्थितिकीय को संरक्षित करने के लिए देश के उच्च हिमालयी शोध केंद्र को लेह में खोलने की मंजूरी दे दी गईं। इसका जिम्मा अल्मोड़ा के कोसी स्थित गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी संस्थान के वैज्ञानिकों को सौंपा।
बकायदा, पर्यावरण संस्थान जीबी पंत की ओर से लेह सेंटर के लिए भूमि का चयन कर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की नियुक्ति भी कर दी है। संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक  फरवरी से उच्च हिमालयी लेह कंेद्र काम करना शुरू कर देगा। इसके लिए जीबी संस्थान के पाॅच सदस्यीय एक शिष्टमंडल को भी शोध कार्य के लिए भेज दिया है।
जीबी पंत संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिकांे का मानना है कि लेह सेंटर खुलने से आज तक हिमालय के लघु एवं वृहद हिमालय के कुछ ही क्षेत्रों में पर्यावरणीय गतिविधि का अध्ययन मुमकिन हो पाता था, लेकिन अब भारत, चीन, नेपाल एवं तिब्बत के पार हिमालयी भू-क्षेत्र के शीत (ठंडे) मरुस्थलीय जलवायु एवं जैव विविधता का भारतीय वैज्ञानिक आसानी से अध्ययन एवं शोध कार्य कर सकेंगे। साथ ही ट्राॅस हिमालयी संस्कृति को प्रभावित किए बिना वहाॅ के निवासियों के सस्टेनेबल डेवलपमेंट, आमदनी को बढ़ाने एवं टूरिज्म कैरिंग कैपसिटी  अध्ययन कर सरकार को नये राज्य के विकास के लिये नीति बनाने में सहयोग कर सकेंगे।

संस्थान का नया रीजनल सेंटर कंेद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह में खुल जाने से  हिमालय के उस पार के क्षेत्रों तक वैज्ञानिकों की पहॅुच बढ़ेगी। साथ ही अब तक शोध अध्ययनों से छूटे शीत मरुस्थलीय जोन लाहुल-स्पीति, भरमौर, लेह लद्दाख, कारगिल, सियाचीन, उत्तराखंड के अत्यधिक ऊॅचाई वाले क्षेत्र व उत्तरी सिक्किम का विशेष अध्ययन होगा। शीत मरुस्थलीय क्षेत्रों के निवासियों के लिए  केंद्र सरकार को नीति बनाने में मदद भी मिलेगी।

जीबी पंत संस्थान के निदेशक आर एस रावल ने बताया कि लेह में पांचवें रीजनल सेंटर खोलने का मुख्य रूप उद्देश्य स्थानीय निवासियों के लिए आजीविका प्रबंधन के संसाधन उपलब्ध कराने, स्वास्थ्य एवं पोषण, मृदा व जल प्रबंधन और ठोस कृषि विकास पर ध्यान रहेगा।

उन्होंने बताया कि जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण   संस्थान का लेह में  खुलने जा रहा  यह सेंटर देश का पांचवां रीजनल सेंटर होगा । इससे पहले सिक्किम के पांग्थांग‚ अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर‚  गढ़वाल के श्रीनगर और  हिमाचल प्रदेश के कल्लू में  रिजिनल सेंटर स्थापित है। लेह ने संस्थान  का केंद्र खोलने का मुख्य फोकस शीत मरुस्थल की जैव विविधता का अध्ययन करना है। क्योंकि यह क्षेत्र शीत मरुस्थल ,उच्च हिमालयी क्षेत्र के साथ अदभुद सुंदरता होने के बावजूद भी रूखा माना जाता है। इसे चट्टानी धरती अथवा अनेक दर्रों वाली भूमि भी कहते हैं। अधिक ऊँचाई पर स्थित चोटियां भारत मे मानसून के समय जलयुक्त बादलों को लद्दाख में बरसने से रोकती हैं।  शुष्क क्षेत्र के होने बावजूद लद्दाख क्षेत्र जैव विविधता अदभुद संग्रहण केंद्र है।



बाइट आर एस रावल, निदेशक जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थानConclusion:
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