अल्मोड़ा: देश को आजादी दिलाने में अल्मोड़ा का योगदान काफी अहम रहा है. उस वक्त अल्मोड़ा की यात्रा कर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई थी. आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी साल 1929 में अल्मोड़ा पहुंचे थे. यहां पहुंचकर गांधी जी ने विभिन्न जगहों पर जनसभा कर आंदोलनकारियों में आजादी का जोश भरने का काम किया था. अल्मोड़ा यात्रा के दौरान ही महात्मा गांधी के साथ एक ऐसी दुःखद घटना भी घटी थी, जिसका उनको काफी प्रायश्चित हुआ और गांधी जी फिर दोबारा कभी अल्मोड़ा नहीं आये. आईये जानते हैं महात्मा गांधी की अल्मोड़ा यात्रा के बारे में...
देश मना रहा महात्मा गांधी: जून 1929 को जब महात्मा गांधी का स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था, तो वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर गुजरात से कुमाऊं के पहाड़ी जिलों की यात्रा पर निकले. जानकार बताते हैं कि गांधी की इस यात्रा एक मकसद जहां हिमालय क्षेत्र की शांत प्रकृति व शीतल आबोहवा में कुछ दिन विश्राम कर स्वास्थ्य लाभ करना था. वहीं, इस यात्रा का दूसरा मकसद आंदोलनकारियों से मुलाकात कर आजादी की अलख जगाना और आजादी की लड़ाई के लिए चंदा इकठ्ठा करना भी था.
कुमाऊं के प्रवास पर बापू ने कुमाऊं में जलाई थी आजादी की अलख: महात्मा गांधी 11 जून 1929 को साबरमती से कुमाऊं भ्रमण के लिए निकले. बरेली होते हुए गांधी जी 14 जून 1929 को नैनीताल पहुंचे. जहां जनसभा को संबोधित करने के बाद भवाली के रास्ते 17 जून 1929 को वह रानीखेत के ताड़ीखेत क्षेत्र में पहुंचे. जहां महात्मा गांधी का तत्कालीन आंदोलनकारी पंडित गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविंद पंत समेत तमाम आंदोलनकारियों ने उनका स्वागत किया.
आंदोलनकारियों ने बापू के लिए ढाई दिन में किया था कुटिया का निर्माण: महात्मा गांधी के आगमन की जानकारी पर उस वक्त ताड़ीखेत में प्रेम विद्यालय के पास आंदोलनकारियों ने ढाई दिन में कुटिया का निर्माण किया. माना जाता है कि गांधी जी ने इसी कुटिया में प्रवास किया था. जहां से महात्मा गांधी ने कुमाऊं में आजादी की अलख जगाई थी. महात्मा गांधी के जाने के बाद यह कुटिया आजादी के रणबाकुरों का केंद्र रही थी. आज यह कुटिया गांधी कुटीर के रूप में जानी जाती है.
18 जून को अल्मोड़ा पहुंचे थे बापू: इतिहासकारों के मुताबिक, ताड़ीखेत के बाद 18 जून को महात्मा गांधी सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा पहुंचे थे. यहां पहुंचकर उन्होंने चौघानपाटा में एक जनसभा को संबोधित किया, जिसमे तत्कालीन नगरपालिका बोर्ड के चेयरमैन रेवरेंड ओकले ने उनके सम्मान में एक मानपत्र हिंदी में पढ़ा था. गांधी ने रात्रि विश्राम नगर के रानीधारा में स्थित स्वर्गीय हरीश जोशी के आवास में किया.
19 जून 1929 को फूंका था आजादी का बिगुल: जिसके बाद महात्मा गांधी ने 19 जून को नगर के रैमजे इंटर कालेज के मैदान और मल्ली बाजार में हुई जनसभा में शिरकत कर आजादी का बिगुल फूंका था. अगले दिन यानि 20 जून 1929 को महात्मा गांधी ने नगर के लक्ष्मेश्वर मैदान में एक विशाल जनसभा को संबोधित किया, जिसमे नगर के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों से हजारों लोग इकठ्ठा हुए थे. इस जनसभा में आजादी की लड़ाई के लिए लाखों का चंदा इकट्ठा हुआ था. इस जनसभा में महात्मा गांधी ने आंदोलनकारियों में जोश भरते हुए कहा कि आप लोग डरें नहीं, क्योंकि डर स्वराज की राह में रोड़ा है.
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जानकार बताते हैं कि अल्मोड़ा यात्रा के दौरान महात्मा गांधी के साथ एक दुःखद घटना भी घटी थी. लक्ष्मेश्वर में हुई जनसभा से पहले गांधी के कार के नीचे भीड़ में एक पदम सिंह नाम का व्यक्ति कुचला गया, जिसकी अस्पताल में जाकर मौत हो गयी थी. अल्मोड़ा नगर पालिका के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी ने बताया कि इस घटना से महात्मा गांधी काफी व्यथित हुए थे. घटना के बाद मृतक के परिजनों से ज्यादा शोकाकुल गांधी थे, उन्होंने इस प्रायश्चित के लिए उस दिन एक दिन का उपवास भी रखा. घटना के उसी रात उन्होंने पंडित गोविंद बल्लभ पंत से कहा कि उनका मन पदम सिंह की मृत्यु से खिन्न हो गया है, वे यहां से कल चले जायेंगे. अगले दिन 21 जून को महात्मा गांधी अल्मोड़ा से चले आए.
अल्मोड़ा में हुए आतिथ्य से बाबू बहुत प्रभावित हुए: अल्मोड़ा नगर पालिका के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जोशी ने बताया कि अल्मोड़ा नगर का आतिथ्य महात्मा गांधी को काफी पसंद आया. उन्होंने इसका जिक्र यंग इंडिया समाचार पत्र में भी कियां उन्होंने यंग इंडिया में लिखा है कि प्रेम व चिंता को आंकना मुश्किल है लेकिन फिर भी अल्मोड़ा के आतिथ्य को भुलाया नहीं जा सकता.
21 जून 1929 को महात्मा गांधी चनौदा पहुंचे जहां उन्होंने जनसभा को संबोधित किया. बाद में महात्मा गांधी के निर्देशन में शांति लाल त्रिवेदी और सरला बहन ने 1937 में चनौदा में खादी ग्राम आश्रम की स्थापना की थी. 22 जून 1929 को गांधी कौसानी के रास्ते बागेश्वर पहुंचे. महात्मा गांधी के बागेश्वर पहुंचने पर आजादी के वीरों में अलग ही उत्साह था. बागेश्वर के नुमाइश मैदान में महात्मा गांधी ने स्वराज भवन की नींव रखी थी, जिसके बाद महात्मा गांधी कौसानी पहुंचे और 1 जुलाई 1929 तक उन्होंने कौसानी में प्रवास कर वहां श्रीमद्भागवत गीता पर अनाशक्ति योग की प्रस्तावना लिखी थी.