अल्मोड़ा: अल्मोड़ा जिले के पाली पछाऊँ क्षेत्र का प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती मेला द्वाराहाट में बट पूजा और ओढ़ा भेंटने की रस्म के साथ शुरु हो गया. पहले दिन नौज्यूला समूह के लोगों ने ओढ़ा भेंटने की रस्म अदायगी की. इस दल में हाट, बमनपुरी, कौला, ध्याड़ी, सलालखोला, छतीना, इड़ा और तल्ली बिठोली के लोग नौ जोड़ा नगाडे़ व निषाण लेकर सजधज कर पहुंचे. और ओढ़ा भेंटने की रस्म पूरी की. वहीं स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रमों सहित सांस्कृतिक दलों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए. दिन भर मेले में दूर दराज से आए ग्रामीणों ने झाेड़ा नृत्य प्रस्तुत किया. यह मेला वर्तमान में अपने पौराणिक स्वरुप में दिखाई दिया, वहीं मेले में झूले चरखे भी लगाए गए हैं.
बैसाख माह में लगता है स्याल्दे बिखौती मेला: द्वाराहाट का प्रसिद्ध स्याल्दे बिखौती मेला वैशाख माह में लगता है. द्वाराहाट से 8 किमी की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर विभाण्डेश्वर में लगने वाला मेला दो भागों में लगता है. पहला विभाण्डेश्वर मंदिर में, दूसरा द्वाराहाट बाजार में. विषुवत् संक्रान्ति को ही क्षेत्रीय भाषा में बिखौती नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि प्राचीन समय में शीतला देवी मंदिर में ग्रामीण देवी की पूजा करने को आते थे.
ऐसे शुरु हुई ओढ़ा भेंटने की रस्म: एक बार किसी कारण दो दलों में खूनी संघर्ष हो गया, हारे हुए दल के सरदार का सिर खड्ग से काट कर जिस स्थान पर दफनाया गया वहां एक पत्थर को रखकर स्मृति चिन्ह बना दिया. इसी पत्थर को ओढ़ा कहा जाता है. यह पत्थर द्वारहाट चौक में है. तब से इस ओढ़ा पर चोट मार कर ही आगे बढ़ने की परम्परा है जिसे 'ओढ़ा भेंटना' कहा जाता है. इस मेले में ओढ़ा भेजने के लिए विभिन्न दल ढोल-नगाड़े और निषाण से सज्जित होकर आते है. हर्षोल्लास से टोलियां ओढ़ा भेंटने की रस्म अदा करती है.
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तीन समूह भेंटते हैं ओढ़ा: आल, गरख और नौज्यूला समूह क्रम व निर्धारित समय में स्याल्दे बिखौती के दिन सजधज कर पहुंचते हैं. आल नामक धड़े में तल्ली-मल्ली मिरई, विजयपुर, पिनौली, तल्ली मल्लू किराली के कुल छ: गांव शामिल है. गरख नामक धड़े में सलना, बसेरा, असगौली, सिमलगाँव, बेदूली, पैठानी, कोटिला, गवाड़ तथा बूँगा आदि लगभग चालीस गांव सम्मिलित हैं, इनका मुखिया सलना गांव का होता है. नौज्यूला नामक तीसरा धड़ छतीना, बिदरपुर, बमनपुरु, सलालखोला, कौंला, इड़ा, बिठौली, कांडे, किरौलफाट आदि गांव शामिल हैं. इनका मुखिया द्वाराहाट का होता है. बाट पूजा प्रतिवर्ष नौज्यूला धडे़ की ओर से की जाती है.पाली पछाऊँ क्षेत्र के इस प्रसिद्ध मेले में क्षेत्र के लोग विशेष रुप से हिस्सा लेते हैं. मेले में ग्रामीण एक-दूसरे के हाथ थाम कर और कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक नृत्यों चांचरी, छपेली, झोडे आदि का परंपरागत वस्त्रों व अंदाज में लोग आनंद लेते हैं.