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एसएसजे कैंपस के संस्कृत विभाग की HOD हैं डॉ. शालिमा तबस्सुम, फिर BHU में इतना हंगामा क्यों?

डॉ. शालिमा तबस्सुम ढाई साल से एसएसजे कैंपस में संस्कृत विभाग की HOD हैं. लेकिन आज तक किसी ने भी उनके संस्कृत पढ़ाने का विरोध नहीं किया है. शालिमा तबस्सुम का मानना है कि संस्कृत को जितना लोग पढ़ेंगे-लिखेंगे उसका उतना ही ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा.

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Published : Nov 25, 2019, 5:35 PM IST

Updated : Nov 25, 2019, 6:03 PM IST

डॉ. शालिमा तबस्सुम

अल्मोड़ा: एक तरफ जहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने का छात्र विरोध कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं विश्वविद्यालय के एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में एक मुस्लिम महिला प्रोफेसर डॉ. शालिमा तबस्सुम करीब दो दशकों से यहां छात्रों को संस्कृत पढ़ा रही हैं. जिनके पढ़ाये छात्र-छात्राएं आज कई जगहों परअहम पदों पर हैं.

तबस्सुम ढाई साल से एसएसजे कैंपस में संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष (एचओडी) हैं और बड़ी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों निभा रही हैं. उनकी इसी काबिलियत की वजह न केवल उन से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं बल्कि समाज के अन्य लोग भी उनका आदर करते हैं. एक मुस्लिम होने के बावजूद वे संस्कृत विषय की विशेषज्ञ हैं, इस पर सभी को उन पर नाज है.

संस्कृत विभाग की HOD हैं डॉ. शालिमा तबस्सुम

पढ़ें- 500 वर्ष पुरानी परंपरा को निभा रहे बूढ़ाकेदारवासी, यहां आज से मनाई जाएगी दिवाली

ईटीवी भारत ने जब बीएचयू के घटनाक्रम पर तबस्सुम से बात कि तो उन्होंने कहा कि भाषा पर किसी का भी कोई एकाधिकार नहीं होता है. संस्कृत भाषा पर किसी का भी अधिकार नहीं है. संस्कृत पर सबका समान अधिकार है.

बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने का जो विरोध किया जा रहा है उसको उन्होंने गलत बताया है. तबस्सुम का मानना है कि संस्कृत को जितना लोग पढ़ेंगे और लिखेंगे उसका उतना ही ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा. इससे भारतीय संस्कृति को दुनिया भर में पहचान मिलेगी.

कौन है डॉ. शालिमा तबस्सुम
डॉ. शालिमा तबस्सुम का जन्म यूपी के सहारनपुर जिले के देवबंद में हुआ था. उन्होंने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से संस्कृत में पीजी किया था. इसके बाद पीएचडी व एमफिल किया. 1999 में डॉ. तबस्सुम की नियुक्ति कुमाऊं विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में हुई थी. ढाई साल वे विवि के एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष हैं.

पढ़ें- उत्तराखंड पर मंडरा रहा है बड़े भूकंप का खतरा, भूगर्भ शास्त्रियों ने बताया ये कारण

तबस्सुम ने बताया कि उन्हें 11वीं-12वीं में पढ़ाई के दौरान ही संस्कृत विषय को लेकर रुचि जगी थी. उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विवि में संस्कृत विभाग के एचओडी प्रो. नाहिद आबिदी, एएमयू में प्रो. सलमा, प्रो. खालिद यूसुफ संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं. यह तो भाषा की ताकत है कि उसे कितने लोग पढ़ते या समझते हैं. इसमें विवाद की कोई वजह नहीं है.

अल्मोड़ा: एक तरफ जहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने का छात्र विरोध कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ कुमाऊं विश्वविद्यालय के एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में एक मुस्लिम महिला प्रोफेसर डॉ. शालिमा तबस्सुम करीब दो दशकों से यहां छात्रों को संस्कृत पढ़ा रही हैं. जिनके पढ़ाये छात्र-छात्राएं आज कई जगहों परअहम पदों पर हैं.

तबस्सुम ढाई साल से एसएसजे कैंपस में संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष (एचओडी) हैं और बड़ी ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों निभा रही हैं. उनकी इसी काबिलियत की वजह न केवल उन से पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं बल्कि समाज के अन्य लोग भी उनका आदर करते हैं. एक मुस्लिम होने के बावजूद वे संस्कृत विषय की विशेषज्ञ हैं, इस पर सभी को उन पर नाज है.

संस्कृत विभाग की HOD हैं डॉ. शालिमा तबस्सुम

पढ़ें- 500 वर्ष पुरानी परंपरा को निभा रहे बूढ़ाकेदारवासी, यहां आज से मनाई जाएगी दिवाली

ईटीवी भारत ने जब बीएचयू के घटनाक्रम पर तबस्सुम से बात कि तो उन्होंने कहा कि भाषा पर किसी का भी कोई एकाधिकार नहीं होता है. संस्कृत भाषा पर किसी का भी अधिकार नहीं है. संस्कृत पर सबका समान अधिकार है.

बीएचयू में मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने का जो विरोध किया जा रहा है उसको उन्होंने गलत बताया है. तबस्सुम का मानना है कि संस्कृत को जितना लोग पढ़ेंगे और लिखेंगे उसका उतना ही ज्यादा प्रचार-प्रसार होगा. इससे भारतीय संस्कृति को दुनिया भर में पहचान मिलेगी.

कौन है डॉ. शालिमा तबस्सुम
डॉ. शालिमा तबस्सुम का जन्म यूपी के सहारनपुर जिले के देवबंद में हुआ था. उन्होंने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से संस्कृत में पीजी किया था. इसके बाद पीएचडी व एमफिल किया. 1999 में डॉ. तबस्सुम की नियुक्ति कुमाऊं विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में हुई थी. ढाई साल वे विवि के एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष हैं.

पढ़ें- उत्तराखंड पर मंडरा रहा है बड़े भूकंप का खतरा, भूगर्भ शास्त्रियों ने बताया ये कारण

तबस्सुम ने बताया कि उन्हें 11वीं-12वीं में पढ़ाई के दौरान ही संस्कृत विषय को लेकर रुचि जगी थी. उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विवि में संस्कृत विभाग के एचओडी प्रो. नाहिद आबिदी, एएमयू में प्रो. सलमा, प्रो. खालिद यूसुफ संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं. यह तो भाषा की ताकत है कि उसे कितने लोग पढ़ते या समझते हैं. इसमें विवाद की कोई वजह नहीं है.

Intro:बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू के संस्कृत विभाग में मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति प्रकरण इन दिनों पूरे देश मे बहस का मुद्दा बना हुआ है। बीएचयू के कुछ छात्रों का कहना है कि एक मुस्लिम शिक्षक कैसे संस्कृत और कर्मकांड पढ़ा सकता है। लेकिन वही कुमाऊं विश्वविद्यालय के एसएसजे कैम्पस अल्मोड़ा में एक मुस्लिम महिला प्रोफेसर डॉ. शालिमा तबस्सुम लगभग दो दशकों से यहाँ छात्रों को संस्कृत पढ़ा रही है ,जिनके पढ़ाये छात्र छात्राये आज कई जगहों पर अहम पदों पर पहुच चुके हैं।अब वह बिगत ढाई सालो से संस्कृत विभाग की विभागाध्यक्ष (एचओडी) के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभा रही है । उनकी इसी काबिलियत के कारण उन्हें न केवल छात्र छात्राओं ने बल्कि समाज ने सहर्ष स्वीकार किया है, वही संस्कृत में विषय विशेषज्ञ होने के कारण हर किसी को उनपर नाज भी है।

बीएचयू में हुए इस घटनाक्रम को लेकर जब ईटीवी भारत ने डॉ. शालिमा तबस्सुम से बातचीत की तो उन्होंने इस प्रकरण पर अफसोस जताते हुए कहा कि भाषा कोई भी हो उसमें किसी का एकाधिकार नही होता , संस्कृत भाषा पर भी किसी खास का अधिकार नही है उसपर सबका समान अधिकार है। मस्लिम शिक्षक की नियुक्ति को लेकर उठाया जा रहा विवाद सरासर गलत है। क्योंकि संस्कृत को जितना लोग पढ़ेंगे लिखेंगे उसका उतना ही ज्यादा प्रचार होगा। वह कहती है कि तभी हमारी भारतीय संस्कृति को लोग दुनिया भर में पहचान मिलेगी जब उसका ज्यादा प्रचार होगा हर कोई उसे अपनाएगा।



Body:कौन है डॉ. शालिमा तबस्सुम

उत्तर प्रदेश के देवबंद निवासी में जन्मी डॉ. शालिमा तबस्सुम ने मेरठ विवि से स्नातक, फिर अलीगढ़ मुस्लिम विवि से संस्कृत में पीजी की डिग्री हासिल की। इसके बाद पीएचडी व एमफिल किया। 1999 में डॉ.शालिमा की नियुक्ति कुमाऊं विवि संस्कृत विभाग में हुई। इस समय वे विवि के एसएसजे कैम्पस अल्मोड़ा में संस्कृत विभाग की पिछले ढाई वर्षों से विभागाध्यक्ष हैं। उन्होंने बताया कि 11वीं व 12वीं में पढ़ाई के दौरान संस्कृत विषय को लेकर रुचि जगी। कहा कि इलाहाबाद विवि में एचओडी में प्रो. नाहिद आबिदी, एएमयू में प्रो. सलमा, प्रो. खालिद यूसुफ संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे हैं। यह तो भाषा की ताकत है कि उसे कितने लोग पढ़ते या समझते हैं। इसमें विवाद की कोई वजह नहीं है। उन्होंने कहा कि संस्कृत में हर भाषा की जननी बनने की क्षमता है।Conclusion:
Last Updated : Nov 25, 2019, 6:03 PM IST
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