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अल्मोड़ा की ऐतिहासिक रामलीला पर कोरोना का साया - अल्मोड़ा रामलीला न्यूज

सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की इन दिनों कई जगहों पर तैयारियां चल रही है. लेकिन इन दिनों कोरोना का असर रामलीला पर भी देखने को मिला है. कोरोना को देखते हुए इस बार सीमित संख्या में लोगों के साथ रामलीला का आयोजन किया जाएगा.

almora
अल्मोड़ा
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Published : Sep 20, 2020, 2:53 PM IST

अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की इन दिनों कई जगहों पर तैयारियां चल रही है. सदियों से चल रही अल्मोड़ा की रामलीला की एक अलग ही पहचान है. अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है. जिसमें जेजेवंती और राधेश्याम प्रमुख संवाद गाए जाते है. रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन होता है. जिसके लिए यहां अभिनय करने वाले कलाकारों को 2 महीने से इस रामलीला की तालिम दी जाती है. जो इन दिनों कई जगहों में चल रही है. हालांकि, इस बार कोरोना का असर रामलीला के आयोजन पर भी पड़ा है. वहीं, आयोजकर्ताओं का कहना है कि सभी गाइडलाइन का पालन करते हुए रामलीला का आयोजन किया जाएगा.

ऐतिहासिक रामलीला पर कोरोना का साया.


कुमाऊं की रामलीला है ऐतिहासिक

कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत अठारहवीं सदी के मध्यकाल के बाद हो चुकी थी. कई जानकार बताते हैं कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी को जाता है. बाद में नैनीताल-1880, बागेश्वर-1890 और पिथौरागढ़-1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारंभ हुआ. अल्मोड़ा नगर में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पंडित उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने का प्रयास किया. हांलाकि, पंडित उदय शंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला यहां की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में भिन्न थी, लेकिन उनके छायाभिनय, उत्कृष्ट संगीत और नृत्य की छाप यहां की रामलीला पर अवश्य पड़ी. अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पिछले डेढ़ सौ वर्षो से भी अधिक से चला आ रहा है. अल्मोडा में 1860 में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ. जो लगातार अभी तक रामलीला का आयोजन किया जा रहा है.

पढ़ें: मसूरी शिफन कोर्ट मामला: BJP नेता ने अपनी सरकार पर बोला हमला, कहा- मजदूरों को किया बेघर

कुमाऊं में रामलीला मंचन की तैयारियां दो माह पूर्व से होनी शुरु हो जाती हैं. तालीम मास्टर द्वारा संवाद, अभिनय, गायन और नृत्य का अभ्यास कराया जाता है. लकड़ी के खंभों और तख्तों से रामलीला का मंच तैयार किया जाता है. कुछ स्थानों पर तो अब रामलीला के स्थायी मंच भी बन गये हैं. शारदीय नवरात्र के पहले दिन से रामलीला का मंचन प्रारंभ हो जाता है. जो दशहरे अथवा उसके एक दो दिन बाद तक चलता है. इस दौरान राम जन्म से लेकर रामजी के राजतिलक तक उनकी विविध लीलाओं का मंचन किया जाता है. यहां की रामलीला में सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, दशरथ-कैकयी संवाद, सुमंत का राम से आग्रह, सीताहरण, लक्ष्मण शक्ति, अंगद-रावण संवाद, मंदोदरी-रावण संवाद और राम-रावण युद्ध के प्रसंग मुख्य आर्कषण होते हैं.

पढ़ें: हरिद्वार: दीपिका चिखलिया ने गंगा में विसर्जित की मां की अस्थियां

इस संपूर्ण रामलीला नाटक में तकरीबन साठ से अधिक पात्रों द्वारा अभिनय किया जाता है. कुमाऊं की रामलीला में राम, रावण, हनुमान और दशरथ के अलावा अन्य पात्रों में परशुराम, सुमंत, सूपर्णखा, जटायु, निशादराज, अंगद, शबरी, मंथरा और मेघनाथ के अभिनय देखने लायक होते हैं. यहां की रामलीला में प्रयुक्त परदे, वस्त्र, श्रृंगार सामग्री और आभषूण प्रायः मथुरा शैली के होते हैं. नगरीय क्षेत्रों की रामलीला को आकर्षक बनाने में नवीनतम तकनीक, साजसज्जा, रोशनी और ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग होने लगा है.

अल्मोड़ा: सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में नवरात्र में होने वाली रामलीला की इन दिनों कई जगहों पर तैयारियां चल रही है. सदियों से चल रही अल्मोड़ा की रामलीला की एक अलग ही पहचान है. अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, सहित अनेक रागों के साथ की जाती है. जिसमें जेजेवंती और राधेश्याम प्रमुख संवाद गाए जाते है. रागों में रामलीला गाना बहुत कठिन होता है. जिसके लिए यहां अभिनय करने वाले कलाकारों को 2 महीने से इस रामलीला की तालिम दी जाती है. जो इन दिनों कई जगहों में चल रही है. हालांकि, इस बार कोरोना का असर रामलीला के आयोजन पर भी पड़ा है. वहीं, आयोजकर्ताओं का कहना है कि सभी गाइडलाइन का पालन करते हुए रामलीला का आयोजन किया जाएगा.

ऐतिहासिक रामलीला पर कोरोना का साया.


कुमाऊं की रामलीला है ऐतिहासिक

कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन की शुरुआत अठारहवीं सदी के मध्यकाल के बाद हो चुकी थी. कई जानकार बताते हैं कि कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी. जिसका श्रेय तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर स्व. देवीदत्त जोशी को जाता है. बाद में नैनीताल-1880, बागेश्वर-1890 और पिथौरागढ़-1902 में रामलीला नाटक का मंचन प्रारंभ हुआ. अल्मोड़ा नगर में 1940-41 में विख्यात नृत्य सम्राट पंडित उदय शंकर ने छाया चित्रों के माध्यम से रामलीला में नवीनता लाने का प्रयास किया. हांलाकि, पंडित उदय शंकर द्वारा प्रस्तुत रामलीला यहां की परंपरागत रामलीला से कई मायनों में भिन्न थी, लेकिन उनके छायाभिनय, उत्कृष्ट संगीत और नृत्य की छाप यहां की रामलीला पर अवश्य पड़ी. अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पिछले डेढ़ सौ वर्षो से भी अधिक से चला आ रहा है. अल्मोडा में 1860 में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ. जो लगातार अभी तक रामलीला का आयोजन किया जा रहा है.

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कुमाऊं में रामलीला मंचन की तैयारियां दो माह पूर्व से होनी शुरु हो जाती हैं. तालीम मास्टर द्वारा संवाद, अभिनय, गायन और नृत्य का अभ्यास कराया जाता है. लकड़ी के खंभों और तख्तों से रामलीला का मंच तैयार किया जाता है. कुछ स्थानों पर तो अब रामलीला के स्थायी मंच भी बन गये हैं. शारदीय नवरात्र के पहले दिन से रामलीला का मंचन प्रारंभ हो जाता है. जो दशहरे अथवा उसके एक दो दिन बाद तक चलता है. इस दौरान राम जन्म से लेकर रामजी के राजतिलक तक उनकी विविध लीलाओं का मंचन किया जाता है. यहां की रामलीला में सीता स्वयंवर, परशुराम-लक्ष्मण संवाद, दशरथ-कैकयी संवाद, सुमंत का राम से आग्रह, सीताहरण, लक्ष्मण शक्ति, अंगद-रावण संवाद, मंदोदरी-रावण संवाद और राम-रावण युद्ध के प्रसंग मुख्य आर्कषण होते हैं.

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इस संपूर्ण रामलीला नाटक में तकरीबन साठ से अधिक पात्रों द्वारा अभिनय किया जाता है. कुमाऊं की रामलीला में राम, रावण, हनुमान और दशरथ के अलावा अन्य पात्रों में परशुराम, सुमंत, सूपर्णखा, जटायु, निशादराज, अंगद, शबरी, मंथरा और मेघनाथ के अभिनय देखने लायक होते हैं. यहां की रामलीला में प्रयुक्त परदे, वस्त्र, श्रृंगार सामग्री और आभषूण प्रायः मथुरा शैली के होते हैं. नगरीय क्षेत्रों की रामलीला को आकर्षक बनाने में नवीनतम तकनीक, साजसज्जा, रोशनी और ध्वनि विस्तारक यंत्रों का उपयोग होने लगा है.

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