अल्मोड़ा: अतीत में जब कुमाऊं के पहाड़ी क्षेत्र मोटर मार्ग से नहीं जुड़े था, तब पिथौरागढ़, बागेश्वर और अल्मोड़ा के निवासी हल्द्वानी तक का सफर पैदल ही तय किया करते थे. इन मार्गों से लोग पैदल ही तीर्थाटन यानी कैलाश मानसरोवर समेत अन्य धार्मिक स्थल के लिए जाया करते थे. तब 19वीं सदी में जसुली 'अम्मा' ने धारचूला से लेकर टनकपुर और काठगोदाम तक अपने खर्च से पैदल रास्ते में करीब 200 धर्मशालाएं बनवाई थीं, ताकि राहगीरों को आवास की सुविधा मिल सके. आज ये धरोहर खत्म होने की कगार पर हैं.
अल्मोड़ा समेत कई जगहों पर जसुली द्वारा बनाई गईं ये धर्मशालाएं आज भी मौजूद हैं, लेकिन उपेक्षा के चलते यह धर्मशालाएं आज जीर्ण-शीर्ण हालात में हैं. जानकार बताते हैं कि धारचूला की दारमा घाटी के दातू गांव की जसुली 'अम्मा' बड़े व्यापारी घराने से ताल्लुक रखती थी. व्यांस-चौदांस की घाटियों में रहने वाले रं समाज के लोग शताब्दियों से तिब्बत के साथ व्यापार करते रहे थे, जिसके चलते वे पूरे कुमाऊं-गढ़वाल इलाके में काफी धनी लोग माने जाते थे.
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काफी धनसंपदा की इकलौती मालकिन उस दौर में जसुली 'अम्मा' थी, जो अल्पायु में विधवा हो गयी थी और अपने इकलौते पुत्र की भी असमय मृत्यु हो जाने के कारण निःसंतान रह गयी थी. काफी धन होने के कारण उन्होंने समाजसेवा के कार्य करने की सोची. उस दौर में लोगों की पैदल यात्रा को देखते हुए जसुली ने उनके विश्राम के लिए रास्तों के किनारे सैकड़ों धर्मशालाओं के निर्माण करवाये. उन्होंने ब्रिटिश दौर में तत्कालीन अंग्रेज कुमाऊं कमिश्नर हैनरी रैमजे को अपना सारा धन दान कर दिया था.
पैदल यात्रा मार्ग पर बनवाई थी 150 धर्मशालाएं
उन्होंने काठगोदाम से लेकर अल्मोड़ा, धारचूला और टनकपुर तक पैदल रास्ते पर सैकड़ों धर्मशालाएं बनाई. इन जगहों में जसुली की बनवाई 150 धर्मशालाएं अब तक प्रकाश में आ चुकी हैं. इसके अलावा जसुली द्वारा नेपाल में भी सैकड़ों धर्मशालाए बनाई गई थी, ताकि सफर में निकले यात्रियों को थकान मिटाने व रात को ठहरने की सुविधा मिल सके.
सांस्कृतिक परिपेक्ष में काफी महत्वपूर्ण हैं ये धर्मशालाएं
समय के साथ सड़कें आईं, आवागमन के साधन विकसित हो गए तो इन धर्मशालाओं की जरूरत खत्म होती गई. लेकिन सैकड़ों साल पुरानी ये धर्मशालाएं सड़क किनारे आज भी मौजूद हैं. उपेक्षा के चलते यह धर्मशालाएं जर्जर हो चुकी हैं, उनमें घास व काई जम चुकी है. विशेष शिल्पकारी से बनी यह धर्मशालाएं आज भी ऐतिहासिक व पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं.
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मुगलों की सराय शैली में बनाई गई थी धर्मशालाएं
जानकार बताते हैं कि यह धर्मशालाएं मुगलों की सराय शैली में बनाई गयी हैं. अल्मोड़ा जिले के अंदर 2 दर्जन से अधिक संख्या में यह धर्मशालाएं जीर्ण-शीर्ण हालात में आज भी मौजूद हैं. संस्कृति व इतिहास के जानकार दयाकृष्ण कांडपाल का कहना है कि यह कुमाऊं की एक ऐतिहासिक धरोहर हैं. जिसे भविष्य के लिए संजोकर रखने की जरूरत है, ताकि आने वाली पीढ़ी भी जसुली 'अम्मा' के इस योगदान से रूबरू हो सके.
क्या कहते हैं पर्यटन अधिकारी
जिला पर्यटन अधिकारी राहुल चौबे का कहना है जसुली का पर्यटन के क्षेत्र में प्राचीनकाल से काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसलिए उनकी बनाई धर्मशालाओं को अब पर्यटन विभाग पर्यटन केंद्र के रूप में उसी स्वरूप में विकसित करने के काम मे जुट गया है. फिलहाल एक धर्मशाला के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू भी हो गया है. आगे जनपद की सभी धर्मशालाओं की मरम्मत कर उनको एक मॉडल के रूप में विकसित किया जाएगा.