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Birth Anniversary : मोहम्मद रफी का ये गाना सुन जवाहरलाल नेहरू ने बुला लिया था घर

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Published : Dec 24, 2021, 6:01 AM IST

Updated : Dec 24, 2021, 9:38 AM IST

मोहम्मद रफी साहब ने हिंदी सिनेमा पर अपनी पार्श्व गायकी से अमिट छाप छोड़ी है. हिंदी सिनेमा के दिवंगत पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की 24 दिसंबर को 97वीं जयंती (Mohammad Rafi Birth Anniversary) है. इस मौके पर जानेंगे देश के इस अनमोल गायक से जुड़ीं कुछ खास बातों के बारे में..

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

हैदराबाद : 'ओ दूर के मुसाफिर...हमको भी साथ ले ले...हम रह गए अकेले' 'ट्रेजडी किंग' दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म 'उड़न खटोला' (1955) का यह दर्दभरा गाना मोहम्मद रफी की रह-रहकर उनके फैंस को याद दिलाता रहता है. रफी साहब ने हिंदी सिनेमा पर अपनी पार्श्व गायकी से अमिट छाप छोड़ी है. हिंदी सिनेमा के दिवंगत पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की 24 दिसंबर को 97वीं जयंती (Mohammad Rafi Birth Anniversary) है. इस मौके पर जानेंगे देश के इस अनमोल गायक से जुड़ीं कुछ खास बातों के बारे में..

मोहम्मद रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924, को कोटला सुल्तान सिंह, (अमृतसर में एक गांव) पंजाब में हुआ था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

पंजाब में पैदा होने के बाद वह परिवार संग लाहौर (पाकिस्तान) में शिफ्ट हो गए थे. मोहम्मद रफी का निक नेक फीको था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

13 साल की उम्र में रफी साहब ने लाहौर में पहली बार अपनी गायकी का हुनर दिखाया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

1944 में मोहम्मद रफी ने लाहौर में जीनत बेगम के साथ ड्यूट सॉन्ग 'सोनिये नी, हीरिये नी' से अपने गायन की शुरुआत की थी. इसके बाद रफी साहब को ऑल इंडिया रेडियो (लाहौर) ने गाने के लिए आमंत्रित किया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

मोहम्मद रफी ने 1945 में फिल्म 'गांव की गोरी' से हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया था.

1948 में महात्मा गांधी की राजनीतिक हत्या पर मोहम्मद रफी ने हुस्नलाल भगतराम और राजेंद्र कृष्णा संग मिलकर रातों-रात गीत 'सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों, बापूजी की अमर कहानी' तैयार किया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

रफी साहब का यह गाना सुन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने रफी को यह गाना गाने के लिए अपने घर बुला लिया था.

Mohammed Rafi
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी

1948 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रफी ​​को रजत पदक से सम्मानित किया था.

1967 में भारत सरकार ने मोहम्मद रफी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था.

मोहम्मद रफी ने अपने गायकी के करियर में चार हजार से ज्यादा हिंदी, क्षेत्रीय भाषाओं में 100 से ज्यादा और पर्सनल 300 से ज्यादा गाने गाए थे.

मोहम्मद रफी ने कई भाषाओं में गाने गाए, जिसमें असमिया, कोंकणी, भोजपुरी, अंग्रेजी, फारसी, डच, स्पेनिश, तेलुगु, मैथिली, उर्दू, गुजराती, पंजाबी, मराठी, बंगाली आदि शामिल हैं.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

बीबीसी एशिया नेटवर्क पोल में मोहम्मद रफी के सॉन्ग 'बहारों फूल बरसाओ' को सबसे लोकप्रिय हिंदी गीत के रूप में वोट दिया गया था.

मोहम्मद रफी साहब को लगभग छह फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

रफी साहब 31 जुलाई 1980 को महज 56 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए थे.

ऑल इंडिया रेडियो पर जब उनके निधन की खबर दी गई तो, देश को बड़ा धक्का लगा था. रफी साहब के जनाजे में दस हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

जुलाई 2011 में उनकी पुण्यतिथि मनाने के लिए नौ हजार से अधिक संगीतमय श्रद्धांजलि का आयोजन किया गया था.

रफी साहब के सदाबहार गीत

ओ दुनिया के रखवाले, ये है बाम्बे मेरी जान, सर जो तेरा चकराए, हम किसी से कम नहीं, चाहे मुझे कोई जंगली कहे, मै जट यमला पगला, चढ़ती जवानी मेरी, हम काले हुए तो क्या हुआ दिलवाले हैं, ये हैं इश्क-इश्क, परदा है परदा, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों (देशभक्ति गीत), नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, चक्के पे चक्का (बच्चों का गीत), ये देश हैं वीर जवानो का, मन तड़पत हरी दर्शन को आज (शास्त्रीय संगीत), सावन आए या ना आए.

ये भी पढे़ं : सुरों के सम्राट रफी साहब के गीतों को आज भी गुनगुनाते हैं लोग

हैदराबाद : 'ओ दूर के मुसाफिर...हमको भी साथ ले ले...हम रह गए अकेले' 'ट्रेजडी किंग' दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म 'उड़न खटोला' (1955) का यह दर्दभरा गाना मोहम्मद रफी की रह-रहकर उनके फैंस को याद दिलाता रहता है. रफी साहब ने हिंदी सिनेमा पर अपनी पार्श्व गायकी से अमिट छाप छोड़ी है. हिंदी सिनेमा के दिवंगत पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की 24 दिसंबर को 97वीं जयंती (Mohammad Rafi Birth Anniversary) है. इस मौके पर जानेंगे देश के इस अनमोल गायक से जुड़ीं कुछ खास बातों के बारे में..

मोहम्मद रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924, को कोटला सुल्तान सिंह, (अमृतसर में एक गांव) पंजाब में हुआ था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

पंजाब में पैदा होने के बाद वह परिवार संग लाहौर (पाकिस्तान) में शिफ्ट हो गए थे. मोहम्मद रफी का निक नेक फीको था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

13 साल की उम्र में रफी साहब ने लाहौर में पहली बार अपनी गायकी का हुनर दिखाया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

1944 में मोहम्मद रफी ने लाहौर में जीनत बेगम के साथ ड्यूट सॉन्ग 'सोनिये नी, हीरिये नी' से अपने गायन की शुरुआत की थी. इसके बाद रफी साहब को ऑल इंडिया रेडियो (लाहौर) ने गाने के लिए आमंत्रित किया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

मोहम्मद रफी ने 1945 में फिल्म 'गांव की गोरी' से हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया था.

1948 में महात्मा गांधी की राजनीतिक हत्या पर मोहम्मद रफी ने हुस्नलाल भगतराम और राजेंद्र कृष्णा संग मिलकर रातों-रात गीत 'सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों, बापूजी की अमर कहानी' तैयार किया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

रफी साहब का यह गाना सुन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने रफी को यह गाना गाने के लिए अपने घर बुला लिया था.

Mohammed Rafi
लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी

1948 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रफी ​​को रजत पदक से सम्मानित किया था.

1967 में भारत सरकार ने मोहम्मद रफी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था.

मोहम्मद रफी ने अपने गायकी के करियर में चार हजार से ज्यादा हिंदी, क्षेत्रीय भाषाओं में 100 से ज्यादा और पर्सनल 300 से ज्यादा गाने गाए थे.

मोहम्मद रफी ने कई भाषाओं में गाने गाए, जिसमें असमिया, कोंकणी, भोजपुरी, अंग्रेजी, फारसी, डच, स्पेनिश, तेलुगु, मैथिली, उर्दू, गुजराती, पंजाबी, मराठी, बंगाली आदि शामिल हैं.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

बीबीसी एशिया नेटवर्क पोल में मोहम्मद रफी के सॉन्ग 'बहारों फूल बरसाओ' को सबसे लोकप्रिय हिंदी गीत के रूप में वोट दिया गया था.

मोहम्मद रफी साहब को लगभग छह फिल्मफेयर पुरस्कार और एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया था.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

रफी साहब 31 जुलाई 1980 को महज 56 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए थे.

ऑल इंडिया रेडियो पर जब उनके निधन की खबर दी गई तो, देश को बड़ा धक्का लगा था. रफी साहब के जनाजे में दस हजार से अधिक लोग शामिल हुए थे.

Mohammed Rafi
मोहम्मद रफी

जुलाई 2011 में उनकी पुण्यतिथि मनाने के लिए नौ हजार से अधिक संगीतमय श्रद्धांजलि का आयोजन किया गया था.

रफी साहब के सदाबहार गीत

ओ दुनिया के रखवाले, ये है बाम्बे मेरी जान, सर जो तेरा चकराए, हम किसी से कम नहीं, चाहे मुझे कोई जंगली कहे, मै जट यमला पगला, चढ़ती जवानी मेरी, हम काले हुए तो क्या हुआ दिलवाले हैं, ये हैं इश्क-इश्क, परदा है परदा, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों (देशभक्ति गीत), नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है, चक्के पे चक्का (बच्चों का गीत), ये देश हैं वीर जवानो का, मन तड़पत हरी दर्शन को आज (शास्त्रीय संगीत), सावन आए या ना आए.

ये भी पढे़ं : सुरों के सम्राट रफी साहब के गीतों को आज भी गुनगुनाते हैं लोग

Last Updated : Dec 24, 2021, 9:38 AM IST
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