रुड़की: माह-ए-रमजान का तीसरा अशरा शुरू हो चुका है. इबादत के मद्देनजर बेहद अहम तीसरे अशरे में मस्जिदों में एतिकाफ भी शुरू हो गया है. एतिकाफ में एक या एक से ज्यादा लोग 10 दिन के लिए मस्जिद में बैठकर खुदा इबादत करते हैं. रोजेदार 20 रमजान को ही एतिकाफ की नीयत से मस्जिद में गुरूब-ए-आफताब (सूर्यास्त) से पहले दाखिल हो जाते हैं. एतिकाफ में बैठे रोजेदार ईद का चांद नजर आने या फिर 30 रमजान को गुरूब-ए-आफताब के बाद मस्जिद के बाहर निकलते हैं.
बता दें कि रमजान के महीने में तीन अशरे होते हैं. हर 10 दिन में एक अशरा पूरा होता है. पहला अशरा रहमत का होता और दूसरा मगफिरत का होता है. वहीं, तीसरा अशरा इबादत के लिहाज से बेहद अहम होता है. इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार तीसरे अशरा में जो भी रोजेदार आखिरी दस दिन एतिकाफ करता है तो फजीलत और सवाब के एतबार से उसका यह अमल दो हज और दो उमरा के बराबर माना जाता है.
पढ़ें: अज्ञात कारणों से दुकान में लगी आग, लाखों का माल खाक
इस्लामिक धर्मगुरुओं की माने तो हदीस में कहा गया है कि रमजान में पैगम्बर मोहम्मद साहब भी एतिकाफ में बैठा करते थे. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक एतिकाफ में बैठकर इबादत करने वालों पर अल्लाह की खास रहमत होती है और खुदा उसे सभी गुनाहों से मुक्त कर देता है.
मौजूदा वक्त में मोबाइल सबकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. ऐसे में मुस्लिम धर्मगुरु कहते हैं कि एतिकाफ में बैठने वाले शख्स को मोबाइल से भी खुद को दूर रखना होता है. पूरा वक्त इबादत में ही गुजारना होता है.
वहीं, आखिरी अशरे में ही 21, 23, 25, 27 और 29वीं रात को शबे कद्र होती है. शबे कद्र में रोजदार पूरी रात इबादत करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस रात इबादत करने का बदला हजार रात की इबादत करने से भी ज्यादा है.