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कॉर्बेट पार्क से पुरानी जिप्सियां हटाने की मांग, प्रदूषण से वन्यजीवों को खतरा

जिम कॉर्बेट पार्क में 10 साल से पुरानी जिप्सियां भी चलाई जा रही हैं. इन अवैध जिप्सियों से निकलने वाले प्रदूषण से वन्यजीवों की जान को खतरा बना हुआ है. वन्यजीव प्रेमी इन जिप्सियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर एक्शन नहीं हुआ तो मामले को हाईकोर्ट ले जाया जाएगा.

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जिम कॉर्बेट
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Published : Aug 30, 2021, 12:49 PM IST

रामनगर: विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क बाघों के घनत्व के लिए व जैव विविधता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है. लाखों पर्यटक इनके दीदार के लिए देश-विदेश से हर साल यहां पहुंचते हैं. कॉर्बेट के अलग-अलग जोन में पर्यटकों को सफारी कराने के लिए यहां पर 350 से ज्यादा जिप्सियां हैं. इनके जरिए पर्यटक सफारी का लुफ्त उठाते हैं. इन जिप्सियों के कॉर्बेट में चलने से यहां सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है.

प्रदूषण से वन्यजीवों को खतरा: वहीं रामनगर आये सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. रविन्द्र शुक्ला ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि जिम कॉर्बेट में वन्यजीवों की जान को अवैध व 12, 15 सालों से ज्यादा समय से चलाई जा रही जिप्सियों से निकलने वाले प्रदूषण से खतरा बना हुआ है. अधिवक्ता डॉ. रविंद्र शुक्ला ने आरोप लगाया कि डायरेक्टर, अधिकारी एवं वरिष्ठ अधिकारी अवैध जिप्सियों पर कोई भी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.

प्रदूषण से वन्यजीवों को खतरा

डॉ. रविंद्र शुक्ला ने कहा कि यह एक बहुत गंभीर मामला है. उन्होंने कहा कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में जहां केंद्र और राज्य सरकार जैव विविधता को बढ़ाने के लिए एक ओर काम कर रहे हैं. बेहतर काम कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर राज्य और केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि यहां पर 350 से ज्यादा जिप्सियां कॉर्बेट के अलग-अलग जोन में चलाई जा रही हैं.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नहीं है चिंता: डॉ. रविंद्र शुक्ला ने कहा कि राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उत्तराखंड ने शायद इस बात पर जरा भी गौर नहीं किया कि जो जिप्सियां पंजाब, दिल्ली और चंडीगढ़ से लाई जा रही हैं उनकी लाइफ कितनी है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रवींद्र शुक्ला ने कहा कि मेरी जानकारी में है कि इनमें से अनेक जिप्सियों का समय पूरा हो चुका है. उन्होंने कहा कि यह कंडम जिप्सियां जिम कॉर्बेट के संरक्षित जोन के अंदर चलाई जा रही हैं. इनको चलाने से इनसे निकलने वाला प्रदूषण वन्यजीवों की जिंदगी को खतरा पैदा कर रहा है.

उन्होंने कहा कि कई सैकड़ों वन्यजीवों के प्रजनन की क्षमता में भी इन जिप्सियों के प्रदूषण से असर पड़ा रहा है. उन्होंने उत्तराखंड सरकार से निवेदन किया कि इन कंडम हो चुकी जिप्सियों को तुरंत जिम कॉर्बेट पार्क के अंदर प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाया जाए. इन कंडम जिप्सियों को पार्क के अंदर चलाने की अनुमति देने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए.

बात नहीं सुनी तो एनजीटी और हाईकोर्ट ले जाएंगे मामला: डॉ. रविंद्र शुक्ला ने कहा कि उत्तराखंड सरकार अगर इस मामले पर तुरंत संज्ञान नहीं लेती तो मैं इस मामले को एनजीटी और हाईकोर्ट में उठाऊंगा. अधिवक्ता ने कहा कि इन कंडम गाड़ियों को जिम कॉर्बेट पार्क में नहीं चलने दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि जिम कॉर्बेट को बचाना सरकार, शासन और हम सब का कर्तव्य है. अगर जिम कॉर्बेट पार्क नहीं बचेगा तो उत्तराखंड की परिकल्पना करना भी निरर्थक होगा.

ये भी पढ़ें: हल्द्वानी में रेलवे ट्रैक पर आया विशालकाय अजगर, पढ़िए ट्रेन आई तो क्या हुआ

अधिवक्ता डॉ. रविंद्र शुक्ला द्वारा मामला उठाने पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने कहा कि कॉर्बेट पार्क में जो जिप्सियां चलाई जाती हैं वो आरटीओ द्वारा अप्रूव जिप्सियां हैं. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा मामला प्रकाश में आता है कि जिनका पंजीकरण निरस्त हो चुका है और अवैध तरीके से चल रही हैं, तो उन पर वन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी.

रामनगर: विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क बाघों के घनत्व के लिए व जैव विविधता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है. लाखों पर्यटक इनके दीदार के लिए देश-विदेश से हर साल यहां पहुंचते हैं. कॉर्बेट के अलग-अलग जोन में पर्यटकों को सफारी कराने के लिए यहां पर 350 से ज्यादा जिप्सियां हैं. इनके जरिए पर्यटक सफारी का लुफ्त उठाते हैं. इन जिप्सियों के कॉर्बेट में चलने से यहां सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है.

प्रदूषण से वन्यजीवों को खतरा: वहीं रामनगर आये सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता डॉ. रविन्द्र शुक्ला ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि जिम कॉर्बेट में वन्यजीवों की जान को अवैध व 12, 15 सालों से ज्यादा समय से चलाई जा रही जिप्सियों से निकलने वाले प्रदूषण से खतरा बना हुआ है. अधिवक्ता डॉ. रविंद्र शुक्ला ने आरोप लगाया कि डायरेक्टर, अधिकारी एवं वरिष्ठ अधिकारी अवैध जिप्सियों पर कोई भी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.

प्रदूषण से वन्यजीवों को खतरा

डॉ. रविंद्र शुक्ला ने कहा कि यह एक बहुत गंभीर मामला है. उन्होंने कहा कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में जहां केंद्र और राज्य सरकार जैव विविधता को बढ़ाने के लिए एक ओर काम कर रहे हैं. बेहतर काम कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर राज्य और केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं. उन्होंने कहा कि यहां पर 350 से ज्यादा जिप्सियां कॉर्बेट के अलग-अलग जोन में चलाई जा रही हैं.

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नहीं है चिंता: डॉ. रविंद्र शुक्ला ने कहा कि राज्य सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उत्तराखंड ने शायद इस बात पर जरा भी गौर नहीं किया कि जो जिप्सियां पंजाब, दिल्ली और चंडीगढ़ से लाई जा रही हैं उनकी लाइफ कितनी है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रवींद्र शुक्ला ने कहा कि मेरी जानकारी में है कि इनमें से अनेक जिप्सियों का समय पूरा हो चुका है. उन्होंने कहा कि यह कंडम जिप्सियां जिम कॉर्बेट के संरक्षित जोन के अंदर चलाई जा रही हैं. इनको चलाने से इनसे निकलने वाला प्रदूषण वन्यजीवों की जिंदगी को खतरा पैदा कर रहा है.

उन्होंने कहा कि कई सैकड़ों वन्यजीवों के प्रजनन की क्षमता में भी इन जिप्सियों के प्रदूषण से असर पड़ा रहा है. उन्होंने उत्तराखंड सरकार से निवेदन किया कि इन कंडम हो चुकी जिप्सियों को तुरंत जिम कॉर्बेट पार्क के अंदर प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाया जाए. इन कंडम जिप्सियों को पार्क के अंदर चलाने की अनुमति देने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए.

बात नहीं सुनी तो एनजीटी और हाईकोर्ट ले जाएंगे मामला: डॉ. रविंद्र शुक्ला ने कहा कि उत्तराखंड सरकार अगर इस मामले पर तुरंत संज्ञान नहीं लेती तो मैं इस मामले को एनजीटी और हाईकोर्ट में उठाऊंगा. अधिवक्ता ने कहा कि इन कंडम गाड़ियों को जिम कॉर्बेट पार्क में नहीं चलने दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि जिम कॉर्बेट को बचाना सरकार, शासन और हम सब का कर्तव्य है. अगर जिम कॉर्बेट पार्क नहीं बचेगा तो उत्तराखंड की परिकल्पना करना भी निरर्थक होगा.

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अधिवक्ता डॉ. रविंद्र शुक्ला द्वारा मामला उठाने पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल कुमार ने कहा कि कॉर्बेट पार्क में जो जिप्सियां चलाई जाती हैं वो आरटीओ द्वारा अप्रूव जिप्सियां हैं. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा मामला प्रकाश में आता है कि जिनका पंजीकरण निरस्त हो चुका है और अवैध तरीके से चल रही हैं, तो उन पर वन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी.

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