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गर्मी शुरू होते ही गांवों में लौटी रौनक, वीरान पड़े 31 गांवों में लौटी खुशहाली, जानें क्या है वजह

गर्मियां शुरू होते ही बाशिंदों ने उच्च हिमालयी इलाकों की ओर जाना शुरू कर दिया है. जिले की दारमा, व्यास और जौहार घाटी के 31 गावों के लोग अपने मूल आवासों की ओर लौटने लगे हैं.

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Published : Apr 20, 2019, 5:51 PM IST

पिथौरागढ़ से अपने मूल निवास की ओर जा रहे लोग.

पिथौरागढ़: गर्मियां शुरू होते ही बाशिंदों ने उच्च हिमालयी इलाकों की ओर जाना शुरू कर दिया है. जिले की दारमा, व्यास और जौहार घाटी के 31 गावों के लोग अपने मूल आवासों की ओर लौटने लगे हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते इस बार माइग्रेशन आसान नहीं होगा. माइग्रेशन को देखते हुए जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे ने कहा कि रास्तों को दुरुस्त कराया जा रहा है.

पिथौरागढ़ से अपने मूल निवास की ओर जा रहे लोग.

बता दें कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बाशिंदे शीतकालीन समय घाटियों में गुजारने के बाद अपने मूल गांवों की ओर लौटने लगे हैं. आम तौर पर अप्रैल महीने से माइग्रेशन शुरू हो जाता है. अपने मूल गांवों में खेती, जड़ीबूटी उत्पादन और पशुपालन करने के बाद सितम्बर महीने में बर्फबारी से पहले शीतकालीन आवासों की ओर लौट आते हैं.

इस बार रिकॉर्ड हिमपात की वजह से बाशिंदों के लिए अपने परिवार, जानवर और सामान के साथ माइग्रेशन करना आसान नहीं होगा. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई बर्फबारी के चलते लोगों को इस बार अपने गांवों तक पहुंचने के लिए सरकारी आसरों पर निर्भर होना पड़ेगा. भारी हिमपात के कारण दारमा घाटी में सेला से आगे का मार्ग बर्फ से पूरी तरह बंद है. जबकि नागलिंग से आगे विशाल हिमखंड जमे हुए हैं.

वहीं जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि मार्गों को खोलने के लिए कार्यदायी संस्थाओं को निर्देश दे दिये गए हैं. साथ ही माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों की सुरक्षा के भी इंतजाम किए जा रहे है.

माइग्रेशन वाले गांवों की सूची

  • व्यास घाटी (धारचूला): बूंदी, गर्ब्यांग, गुंजी, रौंगकोंग, नाबी, नप्लच्यू, कुटी
  • दारमा घाटी (धारचूला): दर, सेला, चल, नागलिंग, बालिंग, बौन, बोगलिंग, दांतू, दुग्तु, ढाकर, गो, तिदांग, सीपू, मार्छा
  • जोहार घाटी (मुनस्यारी): मापांग, मिलम, ल्वां, खिलांच, पांछू, गनघर, टोला, बुर्फू, मर्तोली, रिलकोट, बुगड़ियार

पिथौरागढ़: गर्मियां शुरू होते ही बाशिंदों ने उच्च हिमालयी इलाकों की ओर जाना शुरू कर दिया है. जिले की दारमा, व्यास और जौहार घाटी के 31 गावों के लोग अपने मूल आवासों की ओर लौटने लगे हैं. उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते इस बार माइग्रेशन आसान नहीं होगा. माइग्रेशन को देखते हुए जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे ने कहा कि रास्तों को दुरुस्त कराया जा रहा है.

पिथौरागढ़ से अपने मूल निवास की ओर जा रहे लोग.

बता दें कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों के बाशिंदे शीतकालीन समय घाटियों में गुजारने के बाद अपने मूल गांवों की ओर लौटने लगे हैं. आम तौर पर अप्रैल महीने से माइग्रेशन शुरू हो जाता है. अपने मूल गांवों में खेती, जड़ीबूटी उत्पादन और पशुपालन करने के बाद सितम्बर महीने में बर्फबारी से पहले शीतकालीन आवासों की ओर लौट आते हैं.

इस बार रिकॉर्ड हिमपात की वजह से बाशिंदों के लिए अपने परिवार, जानवर और सामान के साथ माइग्रेशन करना आसान नहीं होगा. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई बर्फबारी के चलते लोगों को इस बार अपने गांवों तक पहुंचने के लिए सरकारी आसरों पर निर्भर होना पड़ेगा. भारी हिमपात के कारण दारमा घाटी में सेला से आगे का मार्ग बर्फ से पूरी तरह बंद है. जबकि नागलिंग से आगे विशाल हिमखंड जमे हुए हैं.

वहीं जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि मार्गों को खोलने के लिए कार्यदायी संस्थाओं को निर्देश दे दिये गए हैं. साथ ही माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों की सुरक्षा के भी इंतजाम किए जा रहे है.

माइग्रेशन वाले गांवों की सूची

  • व्यास घाटी (धारचूला): बूंदी, गर्ब्यांग, गुंजी, रौंगकोंग, नाबी, नप्लच्यू, कुटी
  • दारमा घाटी (धारचूला): दर, सेला, चल, नागलिंग, बालिंग, बौन, बोगलिंग, दांतू, दुग्तु, ढाकर, गो, तिदांग, सीपू, मार्छा
  • जोहार घाटी (मुनस्यारी): मापांग, मिलम, ल्वां, खिलांच, पांछू, गनघर, टोला, बुर्फू, मर्तोली, रिलकोट, बुगड़ियार
Intro:नोट: सर इसके विसुअल्स मेल से भेजे है।

पिथौरागढ़: गर्मियां शुरू होते ही उच्च हिमालयी इलाकों की ओर माइग्रेशन भी शुरू हो गया है। जिले की दारमा, व्यास और जौहार घाटी के 31 गावों के लोग अपने मूल आवासो की ओर लौटने लगे हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते इस बार माइग्रेशन की डगर आसान नही होगी। माइग्रेशन को देखते हुए प्रशासन रास्तों को दुरुस्त करने का दावा कर रहा है।

सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्रों के वाशिंदे शीतकालीन घाटियों में समय गुजारने के बाद अपने मूल गांवों की ओर लौटने लगे है। आम तौर पर अप्रैल माह से माइग्रेशन शुरू हो जाता है। अपने मूल गांवों में खेती, जड़ीबूटी उत्पादन और पशुपालन करने के बाद सितम्बर माह में बर्फबारी से पहले शीतकालीन आवासों की ओर लौट आते हैं। इस बार रिकॉर्ड हिमपात की वजह से स्थितियां अधिक भयानक होने के आसार हैं। अपने जानवर, परिवार और समान के साथ माइग्रेशन करना इस बार सीमांत के वाशिंदों के लिए आसान नही होगा। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते लोगों को इस बार अपने गांवों पहुँचने के लिए सरकारी आसरे पर निर्भर होना पड़ेगा। भारी हिमपात के कारण दारमा घाटी में सेला से आगे का मार्ग बर्फ से पूरी तरह पटा हुआ है। जबकि नागलिंग से आगे विशाल हिमखंड जमे हुए है। वहीं व्यास मार्ग में सड़क निर्माण का काम चल रहा है। नजंग-मालपा से लेकर छियालेख तक का मार्ग भी मुसीबत का सबब बना हुआ है। वही जौहार घाटी में बर्फबारी के कारण लीलम से आगे का मार्ग पूरी तरह बंद है। वहीं जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि मार्गों को खोलने के लिए कार्यदायी संस्थाओं को निर्देश दे दिये गए है। साथ ही माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों की सुरक्षा के भी इंतजाम किए जा रहे है।

माइग्रेशन वाले गांवों की सूची

व्यास घाटी (धारचूला): बूंदी, गर्ब्यांग, गुंजी, रौंगकोंग,नाबी, नप्लच्यू, कुटी।

दारमा घाटी (धारचूला): दर, सेला, चल, नागलिंग, बालिंग, बौन, बोगलिंग, दांतू, दुग्तु, ढाकर, गो, तिदांग, सीपू, मार्छा।

जोहार घाटी (मुनस्यारी): मापांग, मिलम, ल्वां, खिलांच, पांछू, गनघर, टोला, बुर्फू, मर्तोली, रिलकोट, बुगड़ियार।



Body:पिथौरागढ़: गर्मियां शुरू होते ही उच्च हिमालयी इलाकों की ओर माइग्रेशन भी शुरू हो गया है। जिले की दारमा, व्यास और जौहार घाटी के 31 गावों के लोग अपने मूल आवासो की ओर लौटने लगे हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते इस बार माइग्रेशन की डगर आसान नही होगी। माइग्रेशन को देखते हुए प्रशासन रास्तों को दुरुस्त करने का दावा कर रहा है।

सदियों से चली आ रही परंपरा के तहत उच्च हिमालयी क्षेत्रों के वाशिंदे शीतकालीन घाटियों में समय गुजारने के बाद अपने मूल गांवों की ओर लौटने लगे है। आम तौर पर अप्रैल माह से माइग्रेशन शुरू हो जाता है। अपने मूल गांवों में खेती, जड़ीबूटी उत्पादन और पशुपालन करने के बाद सितम्बर माह में बर्फबारी से पहले शीतकालीन आवासों की ओर लौट आते हैं। इस बार रिकॉर्ड हिमपात की वजह से स्थितियां अधिक भयानक होने के आसार हैं। अपने जानवर, परिवार और समान के साथ माइग्रेशन करना इस बार सीमांत के वाशिंदों के लिए आसान नही होगा। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई भारी बर्फबारी के चलते लोगों को इस बार अपने गांवों पहुँचने के लिए सरकारी आसरे पर निर्भर होना पड़ेगा। भारी हिमपात के कारण दारमा घाटी में सेला से आगे का मार्ग बर्फ से पूरी तरह पटा हुआ है। जबकि नागलिंग से आगे विशाल हिमखंड जमे हुए है। वहीं व्यास मार्ग में सड़क निर्माण का काम चल रहा है। नजंग-मालपा से लेकर छियालेख तक का मार्ग भी मुसीबत का सबब बना हुआ है। वही जौहार घाटी में बर्फबारी के कारण लीलम से आगे का मार्ग पूरी तरह बंद है। वहीं जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि मार्गों को खोलने के लिए कार्यदायी संस्थाओं को निर्देश दे दिये गए है। साथ ही माइग्रेशन पर जाने वाले लोगों की सुरक्षा के भी इंतजाम किए जा रहे है।

माइग्रेशन वाले गांवों की सूची

व्यास घाटी (धारचूला): बूंदी, गर्ब्यांग, गुंजी, रौंगकोंग,नाबी, नप्लच्यू, कुटी।

दारमा घाटी (धारचूला): दर, सेला, चल, नागलिंग, बालिंग, बौन, बोगलिंग, दांतू, दुग्तु, ढाकर, गो, तिदांग, सीपू, मार्छा।

जोहार घाटी (मुनस्यारी): मापांग, मिलम, ल्वां, खिलांच, पांछू, गनघर, टोला, बुर्फू, मर्तोली, रिलकोट, बुगड़ियार।



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