पिथौरागढ़: जिले के धारचूला और मुनस्यारी के ऊन कारीगरों का कारोबार दम तोड़ता नजर आ रहा है. आधुनिकता की चकाचौंध और तिब्बती ऊन की कमी ने हथकरघा उद्योग की कमर तोड़ दी है. हाथ से बने ऊनी कपड़ों की जगह अब मशीन के बने चमकदार कपड़ों ने ले ली है. अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हथकरघा उद्योग सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह जाएगा.
बता दें कि जिले के सीमांत तहसील धारचूला और मुनस्यारी में रहने वाले भोटिया, शौका और अनवाल जनजाति के लोग सदियों से ऊन का कारोबार करते आ रहे है. हिमालयी इलाकों में रहने वाले हजारों जनजातीय परिवार हिमांचली और तिब्बती ऊन के साथ ही पश्मीना और अंगूर के ऊन से कपड़े बनाकर अपनी रोजी रोटी का चलाते है. लेकिन पिछले कुछ सालों में तिब्बती ऊन की कमी और भारत-चीन स्थलीय व्यापार में कड़े नियमों के चलते ऊन कारीगरों पर रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा है.
ऊन कारोबारी जगदीश देवली बताते हैं कि ऊन लेने के लिए दो दिन का सफर तय कर वे हिमाचल जाते हैं. जिस कारण उनका काफी खर्चा हो जाता है. हाथ से बने दन, कालीन, शॉल, स्वेटर को बनाने में काफी मेहनत और वक्त लगता है. जिससे मशीनी कपड़ों के मुकाबले इन कपड़ों का दाम थोड़ा ज्यादा होता है. बाकी कपड़ों के मुकाबले दाम ज्यादा होने के चलते ग्राहक हाथ से बने कपड़ों को नहीं खरीदते. साथ ही जगदीश ने हथकरघा उद्योग को बचाने के लिए सरकार से इस ओर ध्यान देने की अपील की.
वहीं, जिलाधिकारी विजय कुमार जोगदंडे का कहना है कि जिला उद्योग केंद्र के अधिकारी के माध्यम से छोटे इंडस्ट्री के लिए कई योजनाएं चलाई हैं. जिसके तहत काफी लोगों को इसका फायदा भी पहुंचा है. जोगदंडे ने कहा कि किसी भी कारोबारी को लोन की आवश्यकता होगी या किसी अन्य प्रकार की सहायता की जरूरत होगी तो वे जिला उद्योग केंद्र में संपर्क कर सकते हैं.
हथकरघा उद्योग के कारोबारी आधुनिकता के साथ ही सरकार की बेरुखी भी झेल रहे हैं. भले ही सरकार समितियां बनाकर इस कारोबार को बचाने की रस्म अदायगी कर रहा हो. लेकिन दोहरी मार झेल रहे ऊनी कारोबारियों की रोजी रोटी खतरे में है.