नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चंपावत जिले के जीआईसी सूखीढांग में भोजन माता सुनीता देवी द्वारा अभिभावक संघ के अध्यक्ष सहित छह अन्य लोगों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमे को निरस्त करने के मामले पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ में हुई.
मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने अभिभावक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार सहित छह अन्य लोगों की गिरफ्तारी पर रोक लगाकर सरकार से चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है. अभिभावक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार व अन्य लोगों ने हाईकोर्ट में अपनी गिरफ्तारी पर रोक व मुकदमा निरस्त के लिए याचिका पेश की थी. याचिका में ये भी कहा गया है कि एससी-एसटी एक्ट की धारा 15 में यह प्रावधान है कि जब तक पीड़ित व शिकायतकर्ता को सुनवाई का मौका नहीं दिया जाता, तब तक उनकी गिरफ्तारी नहीं को सकती.
पढ़ें- भोजनमाता विवाद: BDC मेंबर सहित 6 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज, सुनीता देवी को मिली नियुक्ति
ये था पूरा मामला: जीआईसी सूखीढांग विद्यालय में भोजन माता सुनीता देवी की नियुक्ति से जुड़ा है. इस पद के लिए छह सवर्ण और चार एससी जाति के लोगों ने आवेदन किया था. प्रिंसिपल ने एससी जाति की महिला को भोजन माता के पद पर नियुक्त कर दिया था. अनुसूचित जाति की महिला को भोजनमाता नियुक्त (GIC Sukhidhang Bhojanmata appointment case) किए जाने के बाद सवर्ण छात्र-छात्राओं ने खाना खाने से इनकार कर दिया था और घर से खाना लेकर आने लगे थे. इसके बाद इस नियुक्ति को अभिभावक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार व अन्य लोगों द्वारा जिला अधिकारी के समक्ष चुनौती दी गई थी. जिला अधिकारी के निर्देश पर एक कमेटी गठित की गई. जांच के बाद कमेटी ने सुनीता देवी की नियुक्ति नियम विरुद्ध पाते हुए रद्द कर दी थी.
ये भी पढ़ें: भोजनमाता विवाद: अब SC छात्रों ने सवर्ण के हाथों बना खाना खाने से किया इंकार, DIG की दखल, मामला सुलझा
फिर मामले में आया था मोड़: उधर, इस प्रकरण के बाद स्कूल के दलित छात्रों ने सवर्ण के हाथों बना खाने से मना कर दिया था. इस घटना के बाद इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल प्रेम सिंह ने मामले में शिक्षा अधिकारियों को चिट्ठी लिखी है, जिसमें इस संबंध में जानकारी दी गई. लेटर लिखे जाने के बाद मामले ने एक बार फिर से तूल पकड़ लिया. इस पर प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कुमाऊं डीआईजी नीलेश आनंद भरणे को मामले की जांच के आदेश दिए थे. डीआईजी कुमाऊं नीलेश आनंद भरणे ने पूरे प्रकरण की जांच के बाद दोनों पक्षों के बीच सुलह करवाने की बात कही थी. उधर, दिल्ली सरकार में समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने सुनीता देवी को दिल्ली सरकार में नौकरी देने का ऑफर भी दिया था.
पढ़ें- दलित भोजनमाता विवाद: दिल्ली सरकार ने अनुसूचित जाति की महिला को दिया नौकरी का प्रस्ताव
इसी बीच स्कूल प्रबंधन समिति ने बैठक के बाद एक बार फिर से भोजनमाता के पद पर सुनीता देवी को ही नियुक्ति दे दी गई थी. लेकिन इससे पहले ही अपनी नियुक्ति रद्द होने के कारण महिला ने अभिभावक संघ के अध्यक्ष सहित छह अन्य लोगों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज करवाया था. इन लोगों पर जाति सूचक शब्द और अभद्रता करने का आरोप लगाया गया था, जिसके बाद पुलिस ने स्कूल प्रबंध समिति के अध्यक्ष नरेंद्र जोशी, क्षेत्र पंचायत सदस्य दीपा जोशी, महेश चौड़ाकोटी, बबलू गहतोड़ी, शंकर दत्त और सतीश चंद के खिलाफ एससी-एसटी अधिनियम और आईपीसी की धारा 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया था. इस मुकदमे को निरस्त करने और अपनी गिरफ्तारी पर रोक के लिए याचिकाकर्ताओं के द्वारा कोर्ट में याचिका पेश की गई थी.