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जेलों की बदहाल स्थिति पर HC ने सरकार को फटकारा, DG जेल को पेश होने का आदेश

जेलों की बदहाल स्थिति पर HC ने आज सरकार को फटकार लगाई. उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई पर डीजी जेल और गृह सचिव को व्यक्तिगत रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश होने को कहा है.

जेलों की बदहाल स्थिति पर HC ने सरकार को लगाई फटकार
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Published : Oct 20, 2021, 5:10 PM IST

नैनीताल: उत्तराखंड हाइकोर्ट में प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे एवं अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूर्व के आदेश का पालन नहीं करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए अगली सुनवाई पर डीजी जेल और गृह सचिव को व्यक्तिगत रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश होने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 10 नववंबर को होगी.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से पूछा कि पूर्व में दिए गए आदेश का पालन हुआ या नहीं. इस पर सरकार की तरफ से कोर्ट को कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया गया. कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड को बने 21 साल हो गए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में राज्य सरकारों को आदेश देते हुए जेलों के सुधारीकरण हेतु जारी गाइडलाइन का पालन करने का निर्देश दिया था. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने चंपावत की जिला जेल का उदाहरण देते हुए कहा कि जिला जेल में 6 महिला कैदी अभी अंडर ट्रायल में बंद हैं और 10×10 कमरे में बंद हैं.

कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या यह कमरा 6 लोगों के रहने के लिए पर्याप्त है. क्या यह मानवाधिकार के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है. जबकि पूर्व में जेल महानिदेशक ने अपने शपथ पत्र में कहा था कि सरकार इस पर कार्य कर रही रही है. कोर्ट ने जेलों की बदहाल व्यवस्था को लेकर नाराजगी व्यक्त करते हुए जेल महानिदेशक एवं गृह सचिव को 10 नवंबर को कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने को कहा है.

ये भी पढ़ें: सैलानियों में नैनीताल से निकलने की मची होड़, ट्रैक्सी ड्राइवरों पर अधिक पैसे लेने का आरोप

मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई. पूर्व में कोर्ट ने जेल महानिदेशक से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन किया गया है. राज्य के जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और कैदियों के लिए जेल में रहने की क्या व्यवस्था है. जेल में उनको क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है. जेल मैनुअल में संसोधन किया गया है या नहीं और जेलों की क्षमता कितनी है. इस पर स्पष्ट शपथ पत्र पेश करने को कहा था.

इसपर जेल निदेशक ने शपथ पत्र पेश कर कहा कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. दूसरे चरण में राज्य की सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का संयोग लिया जा रहा है.

कैदियों के जीवन सुधार हेतु आर्ट ऑफ लिविंग का सहारा लिया जा रहा है. जेलों में कैदियों के रहने के लिए आवासों के निर्माण हेतु टेंडर निकाला गया है और तीन नई जेल पिथौरागढ़, चंपावत व उधम सिंह नगर में बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है. इन जेलों के निर्माण के बाद कैदियों को वहां शिफ्ट किया जाएगा. क्योंकि वर्तमान समय में इन जेलों में इनकी क्षमता से अधिक कैदी हैं.

मामले में संतोष कुमार और अन्य ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा है कि प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के 2015 के आदेश की अवहेलना की जा रही है. राज्य में खाली पड़े राज्यों मानवाधिकार आयोग के पदों को भरने के आदेश जारी किए थे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है.

नैनीताल: उत्तराखंड हाइकोर्ट में प्रदेश की जेलों में सीसीटीवी कैमरे एवं अन्य सुविधाओं को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूर्व के आदेश का पालन नहीं करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए अगली सुनवाई पर डीजी जेल और गृह सचिव को व्यक्तिगत रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट में पेश होने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 10 नववंबर को होगी.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार से पूछा कि पूर्व में दिए गए आदेश का पालन हुआ या नहीं. इस पर सरकार की तरफ से कोर्ट को कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया गया. कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड को बने 21 साल हो गए हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में राज्य सरकारों को आदेश देते हुए जेलों के सुधारीकरण हेतु जारी गाइडलाइन का पालन करने का निर्देश दिया था. सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने चंपावत की जिला जेल का उदाहरण देते हुए कहा कि जिला जेल में 6 महिला कैदी अभी अंडर ट्रायल में बंद हैं और 10×10 कमरे में बंद हैं.

कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या यह कमरा 6 लोगों के रहने के लिए पर्याप्त है. क्या यह मानवाधिकार के अधिकारों का उल्लंघन नहीं है. जबकि पूर्व में जेल महानिदेशक ने अपने शपथ पत्र में कहा था कि सरकार इस पर कार्य कर रही रही है. कोर्ट ने जेलों की बदहाल व्यवस्था को लेकर नाराजगी व्यक्त करते हुए जेल महानिदेशक एवं गृह सचिव को 10 नवंबर को कोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने को कहा है.

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मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में हुई. पूर्व में कोर्ट ने जेल महानिदेशक से पूछा था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कितना पालन किया गया है. राज्य के जेलों में कितने सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और कैदियों के लिए जेल में रहने की क्या व्यवस्था है. जेल में उनको क्या शिक्षा एवं रोजगार दिया जा रहा है. जेल मैनुअल में संसोधन किया गया है या नहीं और जेलों की क्षमता कितनी है. इस पर स्पष्ट शपथ पत्र पेश करने को कहा था.

इसपर जेल निदेशक ने शपथ पत्र पेश कर कहा कि प्रथम चरण में देहरादून, हरिद्वार और हल्द्वानी की जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. दूसरे चरण में राज्य की सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्णय लिया गया है. कैदियों के रोजगार के लिए कौशल विकास योजना का संयोग लिया जा रहा है.

कैदियों के जीवन सुधार हेतु आर्ट ऑफ लिविंग का सहारा लिया जा रहा है. जेलों में कैदियों के रहने के लिए आवासों के निर्माण हेतु टेंडर निकाला गया है और तीन नई जेल पिथौरागढ़, चंपावत व उधम सिंह नगर में बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है. इन जेलों के निर्माण के बाद कैदियों को वहां शिफ्ट किया जाएगा. क्योंकि वर्तमान समय में इन जेलों में इनकी क्षमता से अधिक कैदी हैं.

मामले में संतोष कुमार और अन्य ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर कर कहा है कि प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के 2015 के आदेश की अवहेलना की जा रही है. राज्य में खाली पड़े राज्यों मानवाधिकार आयोग के पदों को भरने के आदेश जारी किए थे. लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है.

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