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हिंदी की परंपरा को संजोए हुए है काशीपुर की 'हिंदी प्रेम सभा', सरकार की बेरुखी से बहा रहा बदहाली के आंसू

हर साल 14 सितंबर के दिन देशभर में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. काशीपुर में पिछले 105 सालों से हिंदी की परंपरा को संजोए हिंदी प्रेम सभा सरकारी उपेक्षा के चलते बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर है.

बदहाली के आंसू रो रहा हिंदी प्रेम सभा.
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Published : Sep 14, 2019, 10:31 PM IST

Updated : Sep 14, 2019, 11:29 PM IST

काशीपुर: हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर साल हिंदी दिवस के मौके पर सरकार द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही जाती है, लेकिन सरकार के सभी दावों को खोखला साबित कर रही है काशीपुर की श्री हिंदी प्रेम सभा.

बदहाली के आंसू रो रहा हिंदी प्रेम सभा.

हिंदी दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको 105 साल पुरानी श्री हिंदी प्रेम सभा के बारे में बताने जा रहा है. जोकि पिछले 105 सालों से हिंदी की परंपरा को संजोए हुए है.

देवभूमि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में स्थित श्री हिंदी प्रेम सभा वाचनालय भवन सरकार की उपेक्षा के कारण बदहाली के आंसू रोने को मजबूर है. श्री हिंदी प्रेम सभा के वर्तमान में पदभार संभाल रहे पुस्तकालय अध्यक्ष पंडित सुरेश चंद्र शर्मा के मुताबिक यह शहर का सबसे पुराना पुस्तकालय भवन है. जोकि पिछले 105 सालों से हिंदी की परंपरा और संस्कृति को संजोए हुए है. यहां लगभग 250 वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी मौजूद है.

पढ़ें: हिंदी दिवस विशेष: हिंदी साहित्य के लिए अलंकरण से कम नहीं 'अलंकृता'

सुरेश चंद्र शर्मा के मुताबिक श्री हिंदी प्रेम सभा की स्थापना देश के पूर्व गृहमंत्री और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने 1914 में की थी. श्री हिंदी प्रेम सभा तब से लेकर आज तक हिंदी की सेवा करती आ रही है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में श्री हिंदी प्रेम सभा के लिए अनुदान राशि आया करती थी. लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद से अनुदान राशि पर एक तरह से ब्रेक लग गया है. जिस वजह से पिछले 18 सालों से यहां रंग रोगन का कार्य भी नहीं हो पाया है.

सुरेश चंद्र शर्मा ने बताया कि यहां रोजाना दर्जनों पाठक आकर विभिन्न धरा के उपन्यास और ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़कर ज्ञान अर्जन करते हैं. यहां आने वाले पाठकों के मुताबिक यहां किसी भी तरह की सुविधा नहीं है. सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. जिससे की पिछले 105 सालों से संचालित श्री हिंदी प्रेम सभा वाचनालय भवन का उद्धार हो सके.

काशीपुर: हर साल 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर साल हिंदी दिवस के मौके पर सरकार द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही जाती है, लेकिन सरकार के सभी दावों को खोखला साबित कर रही है काशीपुर की श्री हिंदी प्रेम सभा.

बदहाली के आंसू रो रहा हिंदी प्रेम सभा.

हिंदी दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको 105 साल पुरानी श्री हिंदी प्रेम सभा के बारे में बताने जा रहा है. जोकि पिछले 105 सालों से हिंदी की परंपरा को संजोए हुए है.

देवभूमि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में स्थित श्री हिंदी प्रेम सभा वाचनालय भवन सरकार की उपेक्षा के कारण बदहाली के आंसू रोने को मजबूर है. श्री हिंदी प्रेम सभा के वर्तमान में पदभार संभाल रहे पुस्तकालय अध्यक्ष पंडित सुरेश चंद्र शर्मा के मुताबिक यह शहर का सबसे पुराना पुस्तकालय भवन है. जोकि पिछले 105 सालों से हिंदी की परंपरा और संस्कृति को संजोए हुए है. यहां लगभग 250 वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी मौजूद है.

पढ़ें: हिंदी दिवस विशेष: हिंदी साहित्य के लिए अलंकरण से कम नहीं 'अलंकृता'

सुरेश चंद्र शर्मा के मुताबिक श्री हिंदी प्रेम सभा की स्थापना देश के पूर्व गृहमंत्री और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने 1914 में की थी. श्री हिंदी प्रेम सभा तब से लेकर आज तक हिंदी की सेवा करती आ रही है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में श्री हिंदी प्रेम सभा के लिए अनुदान राशि आया करती थी. लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद से अनुदान राशि पर एक तरह से ब्रेक लग गया है. जिस वजह से पिछले 18 सालों से यहां रंग रोगन का कार्य भी नहीं हो पाया है.

सुरेश चंद्र शर्मा ने बताया कि यहां रोजाना दर्जनों पाठक आकर विभिन्न धरा के उपन्यास और ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़कर ज्ञान अर्जन करते हैं. यहां आने वाले पाठकों के मुताबिक यहां किसी भी तरह की सुविधा नहीं है. सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. जिससे की पिछले 105 सालों से संचालित श्री हिंदी प्रेम सभा वाचनालय भवन का उद्धार हो सके.

Intro:काशीपुर
Summary- पिछले 105 वर्षों से हिंदी की परंपरा को संजोए काशीपुर हिंदी प्रेम सभा सरकारी उपेक्षा के चलते हैं आंसू बहाने को मजबूर हैं। जहां देश में प्रतिवर्ष हिंदी दिवस पर सरकारों के द्वारा कार्यक्रम आयोजित कर हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही जाती है तो वहीं सरकार के सभी दावों को खोखला साबित कर रही है काशीपुर की श्री हिंदी प्रेम सभा।

एंकर- 14 सितंबर के दिन को संपूर्ण देश हिंदी दिवस के रूप में मना रहा है। इस मौके पर देशभर में साथ साथ देवभूमि उत्तराखंड में भी हिंदी दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस मौके पर आज हम आपको आज से 105 वर्ष पुरानी श्री हिंदी प्रेम सभा के बारे में बता रहे हैं, जोकि पिछले 105 वर्षों से हिंदी की परंपरा को संजोए हुए है। सरकार की उपेक्षा के चलते काशीपुर की यह हिंदी प्रेम सभा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है श्री हिंदी प्रेम सभा की बदहाली पर पेश है काशीपुर से हमारे संवाददाता भागीरथ शर्मा की विशेष रिपोर्ट:-
Body:वीओ- यह है देवभूमि उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर में स्थित श्री हिंदी प्रेम सभा वाचनालय भवन जोकि सरकारी परीक्षा के चलते अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के लिए मजबूर है लेकिन प्रदेश सरकार है कि अब तक इसकी कोई सुध नहीं ले रही है। श्री हिंदी प्रेम सभा के वर्तमान में पदभार संभाल रहे पुस्तकालय अध्यक्ष पंडित सुरेश चंद्र शर्मा के मुताबिक यह शहर का सबसे पुराना पुस्तकालय भवन है जोकि पिछले 105 वर्षों से हिंदी की परंपरा और संस्कृति को संजोए हुए है। इसी के साथ साथ उन्होंने बताया कि बीते कुछ वर्षों पूर्व श्री हिंदी प्रेम सभा के द्वारा शहर में लावारिस शवों का दाह संस्कार भी अपने खर्चे से कराया जाता था। शहर की सबसे पुराने इस वाचनालय भवन में लगभग 250 वर्ष पुरानी पांडुलिपि भी मौजूद हैं।
वीओ- उनके मुताबिक श्री हिंदी प्रेम सभा की स्थापना देश के पूर्व गृहमंत्री और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत ने सन 1914 में की थी। जिसके बाद श्री हिंदी प्रेम सभा तब से लेकर आज तक 105 वर्षों तक लगातार हिंदी की सेवा करती आ रही है। उनके मुताबिक सन 1966 से वह पिछले 54 वर्षों से लगातार अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं तो वहीं उनके साथ पिछले 22 वर्षों से दीपक कुमार नामक युवक भी उनके सहयोगी के रूप में श्री हिंदी प्रेम सभा की सेवा कर रहे हैं। पंडित सुरेश चंद्र शर्मा के मुताबिक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के समय में मुख्यमंत्रित्व काल में श्री हिंदी प्रेम सभा के लिए अनुदान राशि आया करती थी लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद से अनुदान राशि पर एक तरह से ब्रेक लग गया है। उनके बता भी पिछले 18 वर्षों से यहां रंग रोगन का कार्य भी नहीं हो पाया है।
वीओ- यहां रोजाना दर्जनों पाठक आकर विभिन्न धरा के उपन्यास और ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़कर ज्ञान अर्जन करते हैं। यहां आने वाले पाठकों के मुताबिक यहां किसी भी तरह की सुविधा नहीं है। उनके मुताबिक सरकार को इस ओर ध्यान दिए जाने की काफी जरूरत है जिससे की पिछले 105 वर्षों से संचालित श्री हिंदी फिल्म सभा वाचनालय भवन का उद्धार हो सके।
बाइट- पं. सुरेश चंद्र शर्मा, वाचनालय अध्यक्ष
बाइट- रमेश चंद, पाठक
बाइट- अनुराग,पाठकConclusion:
Last Updated : Sep 14, 2019, 11:29 PM IST
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