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Reality Check: हरिद्वार में प्लास्टिक बैन अभियान फेल, निगम के रिश्वतखोर बने रोड़ा ! - plastic ban in haridwar ineffective

एक कहावत है कि 'जब बिल्ली ही दूध की रखवाली करेगी तो फिर दूध का बचना मुश्किल है'. ऐसा ही हरिद्वार में देखने को मिल रहा है. यहां 1 जुलाई से पॉलीथिन बैन हो चुका है. इसके बावजूद धर्म नगरी में प्लास्टिक के उत्पाद धड़ल्ले से बिक रहे हैं. इसके दोषी नगर निगम कर्मचारी हैं जो सरकार के प्लास्टिक बैन अभियान को सफल नहीं होने दे रहे हैं. देखिए ईटीवी भारत का रियलिटी चेक.

Haridwar reality check
हरिद्वार प्लास्टिक बैन समाचार
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Published : Jul 2, 2022, 9:37 AM IST

हरिद्वार: 1 जुलाई से हरिद्वार में निर्धारित सीमा से ऊपर की प्लास्टिक की पन्नी, केन आदि की बिक्री पर प्रशासन ने पूरी तरह से रोक लगा दी थी. इसको लेकर शुक्रवार को अधिकारियों द्वारा विशेष रूप से गंगा घाटों पर छापेमारी कर चालान काटने की कार्रवाई भी की गई. लेकिन यह सब दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं था. प्रशासन के दावों को टटोलने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने देर रात हर की पैड़ी क्षेत्र में रियलिटी चेक किया तो दावे पूरी तरह से फेल नजर आए. क्योंकि न केवल क्षेत्र में प्लास्टिक की केन धड़ल्ले से बिक रहे थे, बल्कि हर की पैड़ी क्षेत्र में प्रतिबंधित प्लास्टिक शीट्स भी बेची व प्रयोग की जा रही थीं. और यह सब चोरी-छिपे नहीं बल्कि खुल्लम खुल्ला हो रहा था.

1 जुलाई से बैन हुआ प्लास्टिक: आपको बता दें कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए हरिद्वार में विशेष रूप से गंगा घाटों के आसपास किसी भी तरह के प्लास्टिक निर्मित उत्पादों की बिक्री पर शुक्रवार से पूरी तरह से बैन लगाने की घोषणा नगर निगम द्वारा की गई थी. जिसकी कवायद बीते एक सप्ताह से चल रही थी. नगर निगम का दावा है कि उनकी कई टीमें क्षेत्रों में घूम घूम कर इन उत्पादों को बेचने वालों को आगाह कर रही थी कि 1 तारीख से वे न तो प्रतिबंधित उत्पादों को रख सकेंगे और ना ही बेच सकेंगे.
ये भी पढ़ें: Single Use Plastic Ban: हरिद्वार नगर निगम टीम ने चलाया सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान

नगर निगम की कार्रवाई महज दिखावा: शुक्रवार दोपहर हर की पैड़ी क्षेत्र में नगर निगम के अधिकारियों ने प्लास्टिक केन व पन्नियां बेचने वाले कुछ लोगों के चालान किए और दावा किया कि अब क्षेत्र में कहीं भी इस तरह के प्लास्टिक उत्पाद नहीं दिख रहे हैं. नगर निगम के इन दावों की हकीकत जानने के लिए शुक्रवार देर रात ईटीवी भारत की टीम ने हर की पैड़ी क्षेत्र का जायजा लिया तो पाया कि उसके तमाम दावे हवा-हवाई हैं. अभी भी हर की पैड़ी क्षेत्र में धड़ल्ले से प्लास्टिक केन और पन्नियां बेची जा रही हैं. यह सब चोरी छुपे नहीं बल्कि घाटों पर गंगा किनारे खुल्लम खुल्ला किया जा रहा है.

निगम कर्मियों पर आरोप: ईटीवी भारत की टीम जब हर की पैड़ी क्षेत्र में प्रतिबंध के बावजूद खुलेआम प्लास्टिक केन बेचने वालों के बीच पहुंची तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई. इन दुकानदारों ने कुछ निगम कर्मियों पर कैमरे के सामने गंभीर आरोप लगाए. इन लोगों का साफ कहना था कि यह निगम कर्मी सिर्फ क्षेत्र में वसूली करने आते हैं. इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि कोई प्लास्टिक केन बेचे या ना बेचे.

छोटों पर सितम बड़ों पर करम: अक्सर नगर निगम गंगा घाटों पर चंद प्लास्टिक के केन और जमीन पर बिछाने वाली प्लास्टिक की सीट बेचने वालों के खिलाफ तो चालान की कार्रवाई कर देता है. लेकिन इन लोगों को सप्लाई करने वाले बड़े कारोबारियों पर आखिर कार्रवाई क्यों नहीं होती और बाजार में ही स्थित उनके गोदामों पर कार्रवाई ना होने का क्या कारण है यह एक बड़ा सवाल है.

उत्पादन इकाइयों पर आखिर कब होगी कारवाई: बाजारों तक पहुंचने वाली प्लास्टिक केन और पन्नियों पर यदि नगर निगम और प्रशासन वास्तव में रोक लगाना चाहते हैं तो उसे इनके आने के स्रोत का पता लगाना चाहिए. जहां पर यह सामान तैयार हो रहा है, यदि वहां पर प्रशासन कार्रवाई करता है तो निश्चित तौर पर यह सामान बाजारों तक नहीं पहुंचेगा. लेकिन इन बड़े उत्पादकों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आती.
ये भी पढ़ें: ऋषिकेश में 1 जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन, नियम तोड़ने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई

क्या कहते हैं दुकानदार: हर की पैड़ी के समीप नाइस होता घाट पर प्रसाद के साथ प्रतिबंधित प्लास्टिक की केन बेचने वाले अनिल शर्मा का कहना है कि यहां पर निगम के कर्मचारी चालान काटने आते तो हैं, लेकिन प्लास्टिक केन जब्त तब की जाती है जब किसी दुकानदार के पास चालान की रकम भुगतान करने का पैसा न हो. इनका आरोप है की चालान का पैसा पांच सौ रुपया लिया जाता है. जबकि रसीद सौ या दो सौ रुपए की दी जाती है. उन्होंने कहा कि इन आरोपों का उनके पास सुबूत है. कूड़ा गंदगी की चालान बुक पर केन का चालान किया जाता है.

गौरव शुक्ला का कहना है कि सिंगल यूज प्लास्टिक बैन है. लेकिन केन का इसमें कोई जिक्र ही नहीं है. यदि प्लास्टिक केन बैन है तो फिर प्रशासन छापेमारी के बाद सिर्फ चालान की कार्रवाई क्यों करता है. उस प्लास्टिक को जब्त कर अपने साथ क्यों नहीं ले जाते. उन्होंने आरोप लगाया कि कई बार निगम की टीम बिना चालान काटे सिर्फ पैसा लेकर ही पकड़े गए माल को छोड़ देती है. उन्होंने कहा कि यहां पर सब काम हो रहे हैं. अब इस बात की जांच होनी चाहिए कि किसके इशारे पर यहां पर यह सब काम चल रहा है.

प्लास्टिक के ये उत्पादन हैं बैन: जिन उत्पादों को बैन किया गया है, उनमें प्लास्टिक की डंडियों वाले ईयर बड, बलून स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, लॉलीपॉप की डंडी, आइसक्रीम की डंडी, थर्माकोल के सजावटी सामान, प्लेट्स, कप, गिलास कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे, मिठाई के डिब्बे पर लगने वाली पन्नी, निमंत्रण पत्र, सिगरेट पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक और पीवीसी बैनर आदि शामिल हैं.
ये भी पढ़ें: सिंगल यूज ऑफ प्लास्टिक पर बैन, पेय पदार्थ कंपनियां तलाश रहीं प्लास्टिक स्ट्रॉ का विकल्प

दोबारा इस्तेमाल करना नहीं है व्यवहारिक: सर्वे में पाया गया कि रीसाइकलिंग प्लांट दवाइयों और बिस्किट की पैकिंग के पाउच और ट्रे लेने के लिए भी तैयार नहीं होते. इनका महज 20 फीसदी हिस्सा ही रीसाइकलिंग प्लांट तक पहुंचता है. इस प्लास्टिक कचरे का दोबारा इस्तेमाल करना व्यवहारिक नहीं है. इसलिए यह लैंडफिल साइटों पर ही जाता है. स्टडी के अनुसार, सिंगल यूज प्लास्टिक वेस्ट में शैंपू, बॉडी वॉश, पेन, पेट बॉटल, ट्यूब्स आदि की मात्रा काफी अधिक है. यह प्लास्टिक लैंडफिल साइट में पड़े-पड़े मिट्टी, पानी आदि को प्रदूषित कर रहा है.

हरिद्वार: 1 जुलाई से हरिद्वार में निर्धारित सीमा से ऊपर की प्लास्टिक की पन्नी, केन आदि की बिक्री पर प्रशासन ने पूरी तरह से रोक लगा दी थी. इसको लेकर शुक्रवार को अधिकारियों द्वारा विशेष रूप से गंगा घाटों पर छापेमारी कर चालान काटने की कार्रवाई भी की गई. लेकिन यह सब दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं था. प्रशासन के दावों को टटोलने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने देर रात हर की पैड़ी क्षेत्र में रियलिटी चेक किया तो दावे पूरी तरह से फेल नजर आए. क्योंकि न केवल क्षेत्र में प्लास्टिक की केन धड़ल्ले से बिक रहे थे, बल्कि हर की पैड़ी क्षेत्र में प्रतिबंधित प्लास्टिक शीट्स भी बेची व प्रयोग की जा रही थीं. और यह सब चोरी-छिपे नहीं बल्कि खुल्लम खुल्ला हो रहा था.

1 जुलाई से बैन हुआ प्लास्टिक: आपको बता दें कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए हरिद्वार में विशेष रूप से गंगा घाटों के आसपास किसी भी तरह के प्लास्टिक निर्मित उत्पादों की बिक्री पर शुक्रवार से पूरी तरह से बैन लगाने की घोषणा नगर निगम द्वारा की गई थी. जिसकी कवायद बीते एक सप्ताह से चल रही थी. नगर निगम का दावा है कि उनकी कई टीमें क्षेत्रों में घूम घूम कर इन उत्पादों को बेचने वालों को आगाह कर रही थी कि 1 तारीख से वे न तो प्रतिबंधित उत्पादों को रख सकेंगे और ना ही बेच सकेंगे.
ये भी पढ़ें: Single Use Plastic Ban: हरिद्वार नगर निगम टीम ने चलाया सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अभियान

नगर निगम की कार्रवाई महज दिखावा: शुक्रवार दोपहर हर की पैड़ी क्षेत्र में नगर निगम के अधिकारियों ने प्लास्टिक केन व पन्नियां बेचने वाले कुछ लोगों के चालान किए और दावा किया कि अब क्षेत्र में कहीं भी इस तरह के प्लास्टिक उत्पाद नहीं दिख रहे हैं. नगर निगम के इन दावों की हकीकत जानने के लिए शुक्रवार देर रात ईटीवी भारत की टीम ने हर की पैड़ी क्षेत्र का जायजा लिया तो पाया कि उसके तमाम दावे हवा-हवाई हैं. अभी भी हर की पैड़ी क्षेत्र में धड़ल्ले से प्लास्टिक केन और पन्नियां बेची जा रही हैं. यह सब चोरी छुपे नहीं बल्कि घाटों पर गंगा किनारे खुल्लम खुल्ला किया जा रहा है.

निगम कर्मियों पर आरोप: ईटीवी भारत की टीम जब हर की पैड़ी क्षेत्र में प्रतिबंध के बावजूद खुलेआम प्लास्टिक केन बेचने वालों के बीच पहुंची तो एक चौंकाने वाली बात सामने आई. इन दुकानदारों ने कुछ निगम कर्मियों पर कैमरे के सामने गंभीर आरोप लगाए. इन लोगों का साफ कहना था कि यह निगम कर्मी सिर्फ क्षेत्र में वसूली करने आते हैं. इन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि कोई प्लास्टिक केन बेचे या ना बेचे.

छोटों पर सितम बड़ों पर करम: अक्सर नगर निगम गंगा घाटों पर चंद प्लास्टिक के केन और जमीन पर बिछाने वाली प्लास्टिक की सीट बेचने वालों के खिलाफ तो चालान की कार्रवाई कर देता है. लेकिन इन लोगों को सप्लाई करने वाले बड़े कारोबारियों पर आखिर कार्रवाई क्यों नहीं होती और बाजार में ही स्थित उनके गोदामों पर कार्रवाई ना होने का क्या कारण है यह एक बड़ा सवाल है.

उत्पादन इकाइयों पर आखिर कब होगी कारवाई: बाजारों तक पहुंचने वाली प्लास्टिक केन और पन्नियों पर यदि नगर निगम और प्रशासन वास्तव में रोक लगाना चाहते हैं तो उसे इनके आने के स्रोत का पता लगाना चाहिए. जहां पर यह सामान तैयार हो रहा है, यदि वहां पर प्रशासन कार्रवाई करता है तो निश्चित तौर पर यह सामान बाजारों तक नहीं पहुंचेगा. लेकिन इन बड़े उत्पादकों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आती.
ये भी पढ़ें: ऋषिकेश में 1 जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक बैन, नियम तोड़ने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई

क्या कहते हैं दुकानदार: हर की पैड़ी के समीप नाइस होता घाट पर प्रसाद के साथ प्रतिबंधित प्लास्टिक की केन बेचने वाले अनिल शर्मा का कहना है कि यहां पर निगम के कर्मचारी चालान काटने आते तो हैं, लेकिन प्लास्टिक केन जब्त तब की जाती है जब किसी दुकानदार के पास चालान की रकम भुगतान करने का पैसा न हो. इनका आरोप है की चालान का पैसा पांच सौ रुपया लिया जाता है. जबकि रसीद सौ या दो सौ रुपए की दी जाती है. उन्होंने कहा कि इन आरोपों का उनके पास सुबूत है. कूड़ा गंदगी की चालान बुक पर केन का चालान किया जाता है.

गौरव शुक्ला का कहना है कि सिंगल यूज प्लास्टिक बैन है. लेकिन केन का इसमें कोई जिक्र ही नहीं है. यदि प्लास्टिक केन बैन है तो फिर प्रशासन छापेमारी के बाद सिर्फ चालान की कार्रवाई क्यों करता है. उस प्लास्टिक को जब्त कर अपने साथ क्यों नहीं ले जाते. उन्होंने आरोप लगाया कि कई बार निगम की टीम बिना चालान काटे सिर्फ पैसा लेकर ही पकड़े गए माल को छोड़ देती है. उन्होंने कहा कि यहां पर सब काम हो रहे हैं. अब इस बात की जांच होनी चाहिए कि किसके इशारे पर यहां पर यह सब काम चल रहा है.

प्लास्टिक के ये उत्पादन हैं बैन: जिन उत्पादों को बैन किया गया है, उनमें प्लास्टिक की डंडियों वाले ईयर बड, बलून स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, लॉलीपॉप की डंडी, आइसक्रीम की डंडी, थर्माकोल के सजावटी सामान, प्लेट्स, कप, गिलास कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे, मिठाई के डिब्बे पर लगने वाली पन्नी, निमंत्रण पत्र, सिगरेट पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक और पीवीसी बैनर आदि शामिल हैं.
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दोबारा इस्तेमाल करना नहीं है व्यवहारिक: सर्वे में पाया गया कि रीसाइकलिंग प्लांट दवाइयों और बिस्किट की पैकिंग के पाउच और ट्रे लेने के लिए भी तैयार नहीं होते. इनका महज 20 फीसदी हिस्सा ही रीसाइकलिंग प्लांट तक पहुंचता है. इस प्लास्टिक कचरे का दोबारा इस्तेमाल करना व्यवहारिक नहीं है. इसलिए यह लैंडफिल साइटों पर ही जाता है. स्टडी के अनुसार, सिंगल यूज प्लास्टिक वेस्ट में शैंपू, बॉडी वॉश, पेन, पेट बॉटल, ट्यूब्स आदि की मात्रा काफी अधिक है. यह प्लास्टिक लैंडफिल साइट में पड़े-पड़े मिट्टी, पानी आदि को प्रदूषित कर रहा है.

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