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समुद्र तक दिख रहा है हिमालय से छेड़छाड़ का असर, पर्यावरण पर बछेंद्री पाल ने जताई चिंता - Mother had sold mangalsutra for Bachendris studies

बछेंद्री पाल 37 साल पहले माउंट एवरेस्ट पर चढ़ी थीं. तब वो एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बनी थीं. उनको बचपन से ही हिमालय से प्यार और लगाव था. आज भी हिमालय को लेकर उनकी चिंता जारी है. हिमालय से जुड़े एक कार्यक्रम में हरिद्वार आईं बछेंद्री ने कहा कि असंतुलित विकास से सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि दूसरे पहाड़ी राज्यों का पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ा है. बछेंद्री का कहना है कि हिमालय से छेड़छाड़ का असर समुद्री इलाकों में भी दिखाई दे रहा है.

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Published : Sep 7, 2021, 7:19 PM IST

हरिद्वार: देश की पहली एवरेस्ट महिला विजेता बछेंद्री पाल आज हरिद्वार में थीं. उन्होंने हिमालय पर्वत श्रृंखला के पहाड़ों को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि असंतुलित विकास के कारण आज उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के अन्य पहाड़ी राज्यों में भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है. बछेंद्री पाल को हरिद्वार की हरित धरा संस्था ने अपना हिमालयन एम्बेसडर बनाया है.
हरिद्वार में हरित धरा संस्था द्वारा पर्यावरण पर आधारित एक गोष्ठी में बछेंद्री पाल आई थीं. बछेंद्री पाल ने कहा कि तथाकथित विकास के नाम पर हिमालय पर्वत में जो बदलाव हो रहे हैं, उसका बुरा असर पहाड़ों में ही नहीं मैदानी क्षेत्रों में भी पड़ रहा है. इसलिए देश में संतुलित विकास होना चाहिए.

बदलते पर्यावरण से बछेंद्री पाल चिंतित

देश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता ने कहा कि अपने हिमालय को बचाने के लिए सरकार के साथ-साथ आम जनसहयोग भी बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि विकास भी बहुत जरूरी है. लेकिन विकास के नाम पर पर्यावरण से छेड़छाड़ हर बार इंसानों को ही झेलना पड़ा है. इसके कई उदाहरण हैं.

ये भी पढ़ें: तीन घटनाओं ने बदल दी बछेंद्री पाल की जिंदगी, संघर्षों से लड़ते हुए फतह की थी एवरेस्ट की चोटी

बछेंद्री पाल ने कहा कि ऐसे में सभी लोग जागरूक हो कर पर्यावरण की ओर ध्यान दें. उन्होंने कहा कि हिमालय में हो रहे बदलाव की आहट समुद्री इलाकों में भी सुनवाई दे रही है. बछेंद्री ने कहा कि हिमालय के पर्यावरण से छेड़छाड़ का असर कोलकाता तक दिख रहा है. उन्होंने कहा कि हिमालय पर जो पेड़ काटे जा रहे हैं उसके बाद जो मिट्टी का बहाव हो रहा है, उसकी बदौलत कोलकाता के पास न्यू मास ऑफ लैंड बन गया है.

कौन हैं बछेंद्री पाल: देश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता पद्मश्री बछेंद्री पाल के जीवन की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. फिल्मों में हीरो एक छोटे से परिवार से उठकर, समाज से लड़कर एक मुकाम को हासिल करते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है एवरेस्ट चोटी को फतह करने वाली विश्व की पहली महिला बछेंद्री पाल की.

बछेंद्री की पढ़ाई के लिए मां ने बेचा था मंगलसूत्र: राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली में एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल को बीए करने के बाद देहरादून से ही एमए करना था. लेकिन उनके परिवार के पास पैसे नहीं थे, जिस बात से वो काफी निराश थीं. फिर एक दिन उनके पिता ने कहा, जाओ देहरादून से एमए करो. लेकिन, पिता ने यह नहीं बताया कि पैसे कहां से आयेंगे. बछेंद्री पाल की मां ने 'तेमन्या' (पहाड़ी महिलाओं का मंगलसूत्र) को बेच दिया था. बिछेंद्री पाल ने बताया कि उनकी मां के इस त्याग ने ही उनका पूरा जीवन बदल दिया था.

बछेंद्री पाल को जब पर्वतारोहण का शौक चढ़ा तब वो नाकुरी से रेणुका मन्दिर तक रोज चढ़ती थीं. वो चढ़ाई के दौरान एक पत्थर मंदिर के पास रखकर आती थीं और वापसी में वहां से घास लाती थीं. जिससे मां को न लगे कि उनकी बेटी अपना समय बर्बाद कर रही है. पाल ने बताया कि जब वो पर्वतरोहण करने लगीं तो मां ने कहा, बेटी लोग क्या कहेंगे? एमए करवाने के बाद भी बेटी ऐसा काम कर रही है. बछेंद्री पाल ने बताया कि उस दौरान उसने मां से कहा था लोगों को क्या है, एक दिन वो खुद आएंगे और बधाई देंगे.

हरिद्वार: देश की पहली एवरेस्ट महिला विजेता बछेंद्री पाल आज हरिद्वार में थीं. उन्होंने हिमालय पर्वत श्रृंखला के पहाड़ों को लेकर चिंता जाहिर की है. उन्होंने कहा कि असंतुलित विकास के कारण आज उत्तराखंड ही नहीं बल्कि देश के अन्य पहाड़ी राज्यों में भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ता जा रहा है. बछेंद्री पाल को हरिद्वार की हरित धरा संस्था ने अपना हिमालयन एम्बेसडर बनाया है.
हरिद्वार में हरित धरा संस्था द्वारा पर्यावरण पर आधारित एक गोष्ठी में बछेंद्री पाल आई थीं. बछेंद्री पाल ने कहा कि तथाकथित विकास के नाम पर हिमालय पर्वत में जो बदलाव हो रहे हैं, उसका बुरा असर पहाड़ों में ही नहीं मैदानी क्षेत्रों में भी पड़ रहा है. इसलिए देश में संतुलित विकास होना चाहिए.

बदलते पर्यावरण से बछेंद्री पाल चिंतित

देश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता ने कहा कि अपने हिमालय को बचाने के लिए सरकार के साथ-साथ आम जनसहयोग भी बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा कि विकास भी बहुत जरूरी है. लेकिन विकास के नाम पर पर्यावरण से छेड़छाड़ हर बार इंसानों को ही झेलना पड़ा है. इसके कई उदाहरण हैं.

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बछेंद्री पाल ने कहा कि ऐसे में सभी लोग जागरूक हो कर पर्यावरण की ओर ध्यान दें. उन्होंने कहा कि हिमालय में हो रहे बदलाव की आहट समुद्री इलाकों में भी सुनवाई दे रही है. बछेंद्री ने कहा कि हिमालय के पर्यावरण से छेड़छाड़ का असर कोलकाता तक दिख रहा है. उन्होंने कहा कि हिमालय पर जो पेड़ काटे जा रहे हैं उसके बाद जो मिट्टी का बहाव हो रहा है, उसकी बदौलत कोलकाता के पास न्यू मास ऑफ लैंड बन गया है.

कौन हैं बछेंद्री पाल: देश की पहली महिला एवरेस्ट विजेता पद्मश्री बछेंद्री पाल के जीवन की कहानी किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है. फिल्मों में हीरो एक छोटे से परिवार से उठकर, समाज से लड़कर एक मुकाम को हासिल करते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है एवरेस्ट चोटी को फतह करने वाली विश्व की पहली महिला बछेंद्री पाल की.

बछेंद्री की पढ़ाई के लिए मां ने बेचा था मंगलसूत्र: राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली में एवरेस्ट फतह करने वाली बछेंद्री पाल को बीए करने के बाद देहरादून से ही एमए करना था. लेकिन उनके परिवार के पास पैसे नहीं थे, जिस बात से वो काफी निराश थीं. फिर एक दिन उनके पिता ने कहा, जाओ देहरादून से एमए करो. लेकिन, पिता ने यह नहीं बताया कि पैसे कहां से आयेंगे. बछेंद्री पाल की मां ने 'तेमन्या' (पहाड़ी महिलाओं का मंगलसूत्र) को बेच दिया था. बिछेंद्री पाल ने बताया कि उनकी मां के इस त्याग ने ही उनका पूरा जीवन बदल दिया था.

बछेंद्री पाल को जब पर्वतारोहण का शौक चढ़ा तब वो नाकुरी से रेणुका मन्दिर तक रोज चढ़ती थीं. वो चढ़ाई के दौरान एक पत्थर मंदिर के पास रखकर आती थीं और वापसी में वहां से घास लाती थीं. जिससे मां को न लगे कि उनकी बेटी अपना समय बर्बाद कर रही है. पाल ने बताया कि जब वो पर्वतरोहण करने लगीं तो मां ने कहा, बेटी लोग क्या कहेंगे? एमए करवाने के बाद भी बेटी ऐसा काम कर रही है. बछेंद्री पाल ने बताया कि उस दौरान उसने मां से कहा था लोगों को क्या है, एक दिन वो खुद आएंगे और बधाई देंगे.

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