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आगामी सीजन में भी अच्छी बर्फबारी की उम्मीद, सुधार सकती है ग्लेशियरों की स्थिति - snowfall breaks record

वर्तमान समय में ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर वाडिया के वैज्ञानिक चिंतित नजर आ रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियरों पर फर्क पड़ रहा है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शुरू हुई मौसम में गिरावट.
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Published : Oct 1, 2019, 2:41 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में मॉनसून सीजन खत्म होने में कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रों के मौसम में भारी गिरावट शुरू हो गयी है. यही नहीं इन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अभी से बर्फबारी भी शुरू हो गयी है. इस साल जनवरी-फरवरी में करीब 41 फीट बर्फ गिरी थी, जिसने बीते 10-15 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. जिसके कारण इस बार भी वैज्ञानिकों को अच्छी बर्फबारी की उम्मीद है. वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह क्लाइमेट चेंज हो रहा है उस वजह से बारिश और बर्फबारी अधिक हो रही है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शुरू हुई मौसम में गिरावट.

वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस साल 41 फीट बर्फ गिरी है. यही वजह है कि मई-जून में भी उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर भारी बर्फ देखने को मिली थी. हालांकि भारी बर्फबारी की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बने ग्लेशियरों की स्तिथि और रिसर्च के लिए बना वाडिया का स्टेशन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. यही नहीं वहां लगा 10 मीटर का टॉवर भी गिर गया था. बात अगर पिछले साल की करें तो यहां करीब 15-20 फीट बर्फबारी हुई थी.

पढ़ें- उफनती नदी के बीच टॉपू पर फंसे महिला समेत तीन बच्चे, चार घंटे तक अटकी रही सांसें

वर्तमान समय में ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर वाडिया के वैज्ञानिक चिंतित नजर आ रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियरों पर फर्क पड़ रहा है. जिससे वे तेजी से पिघल रहे हैं. डीपी डोभाल ने बताया कि जिस तरह इस साल बर्फबारी हुई है, उसी तरह अगर अगले कुछ सालों तक बर्फबारी होती रही तो ये ग्लेशियरों के लिए काफी अच्छा साबित होगा.

देहरादून: उत्तराखंड में मॉनसून सीजन खत्म होने में कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रों के मौसम में भारी गिरावट शुरू हो गयी है. यही नहीं इन उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अभी से बर्फबारी भी शुरू हो गयी है. इस साल जनवरी-फरवरी में करीब 41 फीट बर्फ गिरी थी, जिसने बीते 10-15 सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. जिसके कारण इस बार भी वैज्ञानिकों को अच्छी बर्फबारी की उम्मीद है. वैज्ञानिकों का मानना है कि जिस तरह क्लाइमेट चेंज हो रहा है उस वजह से बारिश और बर्फबारी अधिक हो रही है.

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शुरू हुई मौसम में गिरावट.

वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस साल 41 फीट बर्फ गिरी है. यही वजह है कि मई-जून में भी उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर भारी बर्फ देखने को मिली थी. हालांकि भारी बर्फबारी की वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बने ग्लेशियरों की स्तिथि और रिसर्च के लिए बना वाडिया का स्टेशन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था. यही नहीं वहां लगा 10 मीटर का टॉवर भी गिर गया था. बात अगर पिछले साल की करें तो यहां करीब 15-20 फीट बर्फबारी हुई थी.

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वर्तमान समय में ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर वाडिया के वैज्ञानिक चिंतित नजर आ रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियरों पर फर्क पड़ रहा है. जिससे वे तेजी से पिघल रहे हैं. डीपी डोभाल ने बताया कि जिस तरह इस साल बर्फबारी हुई है, उसी तरह अगर अगले कुछ सालों तक बर्फबारी होती रही तो ये ग्लेशियरों के लिए काफी अच्छा साबित होगा.

Intro:उत्तराखंड राज्य मानसून सीजन खत्म होने में कुछ ही दिन बचे है। ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रो के मौसम में भारी गिरावट शुरू हो गयी है। यही नही इन उच्च हिमालयी क्षेत्रो में बर्फबारी भी शुरू हो गयी है। हालांकि इस सीजन में करीब 41 फ़ीट बर्फ गिरा था। जो पिछले 10-15 सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिया है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस बार भी अच्छी बर्फबारी की उम्मीद है। और जिस तरह क्लाइमेट चेंज हो रहा है उसी वजह से बारिश और बर्फबारी अधिक हो रही है। 


Body:वही वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रो में इस साल 41 फिट बर्फ गिरी है। कुल 41 फिट बर्फ जमा नही है लेकिन बर्फ गिरा है। यही वजह रहा कि मई-जून में भी उच्च हिमालयी क्षेत्रो पर भारी बर्फ देखने को मिली। हालांकि भारी बर्फबारी की वजह से, उच्च हिमालयी क्षेत्रो में बने ग्लेशियरों की स्तिथि और रिसर्च के लिए वाडिया का स्टेशन पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। यही नही वहा लगा 10 मीटर का टावर भी गिर गया। हालांकि इस साल भारी मात्रा में बर्फबारी हुई है। पिछले साल की बात करे तो पिछले साल करीब 15-20 फिट बर्फबारी हुई थीं।


वर्तमान समय मे ग्लेशियर के पिघलने को लेकर वैज्ञानिक चिंतित नज़र आ रहे है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियरों पर काफी फर्क पड़ रहा है और वो उच्च हिमालयी क्षेत्रो के ग्लेशियर पिघल रहे है। डीपी डोभाल ने बताया कि जिस तरह इस साल बर्फबारी हुई है उसी तरह अगर आगे कुछ साल बर्फबारी होती रही तो यह ग्लेशियर की हेल्थ के लिए बहुत अच्छा रहेगा। 




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