देहरादून: उत्तराखंड में 70 विधानसभा सीटों पर चुनावी नतीजों से पहले भले ही भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों पर सभी की नजर रही हो, लेकिन राज्य में कई ऐसी विधानसभा सीटें रहीं जहां भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला ना होकर बाकी दल या निर्दलीयों से रहा. स्थिति ये रही कि तीसरे दल और निर्दलीयों के मुकाबले में आगे से मुख्य पार्टी भाजपा या कांग्रेस कई सीटों पर तीसरे नंबर पर जा खिसकी. कौन सी हैं यह सीटें और क्या है इन उत्तराखंड की विधानसभा सीटों के समीकरण आइए जानते हैं.
चार सीटों पर बसपा और निर्दलीय जीते: उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में 4 सीटों पर न तो भाजपा जीत दर्ज कर पाई और ना ही कांग्रेस का यहां दबदबा रहा. हरिद्वार की 2 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी ने जीत दर्ज की तो हरिद्वार की खानपुर विधानसभा और उत्तरकाशी की यमुनोत्री विधानसभा सीट पर निर्दलीयों ने कड़े मुकाबले में अपनी जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की. लेकिन प्रदेश में महज यह 4 सीटें ही नहीं थी जहां पर कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला नहीं हुआ हो, इसके अलावा चार दूसरी सीटें भी हैं जहां पर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच न होकर इनमें से किसी एक पार्टी का मुकाबला अन्य दलों से रहा.
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क्यों हारे धामी? : उत्तराखंड में कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सीट पर इस बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी रमेश राणा के वोटों में कमी ने उन्हें हरा दिया. दरअसल खटीमा विधानसभा सीट पर थारू जनजाति के वोटर की अच्छी खासी संख्या है. इन्हें किसी प्रत्याशी की जीत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. विधानसभा सीट में 20,000 से ज्यादा थारू जनजाति के वोटर हैं. इनके वोट यूं तो कांग्रेस के माने जाते हैं. लेकिन थारू जनजाति के ही रमेश राणा बीएसपी से चुनाव लड़ कर इन वोटों पर सेंधमारी कर देते हैं. इसका नतीजा ये होता था कि पुष्कर सिंह धामी आसानी से इस सीट को जीत लेते थे.
2017 में रमेश राणा इस सीट पर 17,804 वोट ले गए थे. जबकि इस बार वह केवल 937 वोट ही ले जा पाए. रमेश राणा को इतने कम वोट मिलने की वजह से इसका सीधा फायदा कांग्रेस के भुवन कापड़ी को हुआ. कापड़ी ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को करीब 7,000 वोटों से हरा दिया.
भगवानपुर में बसपा ने बीजेपी को मुकाबले से बाहर किया: हरिद्वार की भगवानपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की विधायक ममता राकेश का सीधा मुकाबला बहुजन समाज पार्टी के सुबोध राकेश से हुआ. कांग्रेस की ममता राकेश ने सुबोध राकेश को करीब 5000 वोटों से हरा दिया. वैसे आपको बता दें कि 2017 में सुबोध राकेश भाजपा से चुनाव लड़े थे. लेकिन इस बार उन्होंने भाजपा का दामन छोड़कर बहुजन समाज पार्टी से चुनाव लड़ा. इस सीट पर भाजपा के सत्यपाल सिंह बुरी तरह हारकर तीसरे स्थान पर रहे.
लक्सर में बसपा ने कांग्रेस को लड़ने से पहले पटका: हरिद्वार की लक्सर विधानसभा सीट पर मुकाबला बहुजन समाज पार्टी के शहजाद और भाजपा के विधायक संजय गुप्ता के बीच हुआ. जबकि कांग्रेस के अध्यक्ष शायरी तीसरे नंबर पर बेहद कम वोट ले सके. इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के शहजाद ने भाजपा के संजय गुप्ता को करीब 10,000 वोटों से हराया.
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मंगलौर सीट पर बीजेपी मुकाबले नहीं कर पाई: हरिद्वार की मंगलौर विधानसभा सीट पर भी मुकाबला बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के बीच था. यहां भी बहुजन समाज पार्टी के सरवत करीम अंसारी ने कांग्रेस के विधायक काजी निजामुद्दीन को साढ़े 500 वोटों से हरा दिया. इस सीट पर भाजपा तीसरे नंबर पर रही और पार्टी के दिनेश सिंह भारी मतों से पिछड़ गए.
देवप्रयाग में बीजेपी और निर्दलीय में मुकाबला: टिहरी जिले की देवप्रयाग विधानसभा सीट पर भी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच नहीं रहा. यहां मुकाबला भाजपा के विनोद कंडारी और उत्तराखंड क्रांति दल के दिवाकर भट्ट के बीच हुआ. कांग्रेस के दिवाकर भट्ट कड़े मुकाबले में तीसरे नंबर पर रहे. खास बात यह है कि इस सीट पर तीनों ही प्रत्याशी विधायक रह चुके हैं. यही नहीं भाजपा और उत्तराखंड क्रांति दल के प्रत्याशी तो सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.
पिथौरागढ़ में कांग्रेस तीसरे नंबर पर: पिथौरागढ़ जिले की डीडीहाट विधानसभा सीट पर भी मुकाबला भाजपा सरकार में मंत्री बिशन सिंह चुफाल और भाजपा के बागी निर्दलीय किशन भंडारी के बीच रहा. कांग्रेस के प्रदीप सिंह इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे. भारतीय जनता पार्टी के बिशन सिंह चुफाल को कुल 17,392 वोट मिले, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार किशन भंडारी को 15,024 वोट मिले. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार प्रदीप सिंह पाल 14,470 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
केदारनाथ में निर्दलीय और बीजेपी की टक्कर: रुद्रप्रयाग जिले की केदारनाथ विधानसभा सीट पर भी मुकाबला बीजेपी की शैला रानी रावत और निर्दलीय कुलदीप सिंह रावत के बीच रहा. कांग्रेस विधायक मनोज रावत इस चुनाव में तीसरे नंबर पर खिसक गए. मनोज रावत 2017 में केदारनाथ से कांग्रेस के विधायक रहे थे. 2022 में केदारनाथ सीट में कुल 36.04 प्रतिशत वोट पड़े. 2022 में भारतीय जनता पार्टी से शैला रानी रावत ने निर्दलीय कुलदीप सिंह रावत को 8,463 वोटों के मार्जिन से हराया.
टिहरी में कांग्रेस की जमानत जब्त: टिहरी विधानसभा सीट पर भी इस बार काफी दिलचस्प मुकाबला रहा इस सीट पर तो कांग्रेस के प्रत्याशी की जमानत भी जब्त हो गई. इस सीट पर चुनाव से कुछ दिन पहले ही कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए किशोर उपाध्याय को भाजपा ने टिकट दिया. उन्होंने इस चुनाव को जीत लिया. भाजपा के किशोर उपाध्याय का मुकाबला निर्दलीय प्रत्याशी और पूर्व मंत्री दिनेश धनै से था. भाजपा के प्रत्याशी ने महज 1000 वोट से चुनाव जीता.
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यमुनोत्री में बीजेपी की चुनौती तीसरे नंबर पर: यमुनोत्री विधानसभा सीट में मुकाबला कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशी के बीच रहा. कांग्रेस के बागी संजय डोभाल ने निर्दलीय रूप में चुनाव लड़ा और कांग्रेस के प्रत्याशी दीपक बिजल्वाण को ही चुनाव में करारी शिकस्त दी. उधर 2017 में भाजपा के विधायक रहे केदार सिंह रावत को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा.
रामनगर में कैसे जीती बीजेपी? : रामनगर विधानसभा सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबले ने कांग्रेस के प्रत्याशी को चुनाव हरवा दिया. रामनगर में कांग्रेस के बागी संजय नेगी 16,000 से ज्यादा वोट ले गए. जबकि इस सीट पर कांग्रेस के महेंद्र सिंह पाल करीब 4,500 वोटों से चुनाव हारे. संजय नेगी को यदि पार्टी मैनेज कर लेती तो इस सीट पर चुनाव परिणाम बदल सकते थे.
नरेंद्र नगर सीट पर भी जातीय समीकरण ने बदला परिणाम: नरेंद्र नगर विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण ने चुनाव परिणामों को बदल दिया. इस सीट पर कैबिनेट मंत्री रहे सुबोध उनियाल चुनाव मैदान में थे और उनके सामने कांग्रेस से ओम गोपाल रावत चुनाव लड़ रहे थे. इस सीट पर कांग्रेस के ठाकुर और भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशी का सीधा मुकाबला था. भाजपा के सुबोध उनियाल ने मुकाबला करीब 18 सौ वोटों से जीत लिया. यदि इस सीट पर जातीय समीकरण चुनावी मैदान में अलग होते तो परिणाम बदल भी सकते थे.
दरअसल इस सीट पर चार ठाकुर प्रत्याशी चुनाव लड़े. जबकि दो ब्राह्मण प्रत्याशियों ने मैदान संभाला. खास बात यह है कि सुबोध उनियाल के अलावा दूसरे ब्राह्मण प्रत्याशी जगदीश कुड़ियाल केवल 450 वोट ही ले जा सके. ठाकुर प्रत्याशियों ने 3000 से ज्यादा वोट काटे. इस लिहाज से देखा जाए तो इस सीट पर भी जातीय समीकरण ने चुनाव परिणामों को बदलने का काम किया.
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श्रीनगर में ये रहा चुनावी गणित: उत्तराखंड की एक और वीवीआईपी सीट श्रीनगर विधानसभा रही. यहां भी जातीय समीकरणों ने भाजपा को चुनाव जीतने में मदद की. इस सीट पर भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री धनसिंह और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का सीधा मुकाबला था. लेकिन धन सिंह रावत ने करीब 550 वोटों से इस चुनाव को जीत लिया. इस सीट पर उत्तराखंड क्रांति दल के ब्राह्मण प्रत्याशी मोहन काला ने चुनाव परिणामों को बदला. मोहन काला करीब 4,100 वोट ले जाने में कामयाब रहे. इससे गणेश गोदियाल को भारी नुकसान हुआ और उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा.
गदरपुर में आप और बसपा ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल: गदरपुर विधानसभा सीट पर भाजपा सरकार के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे की जीत भी क्षेत्रीय समीकरणों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण रही. यहां पर आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों की वजह से कांग्रेस के प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा. इस सीट पर भाजपा के अरविंद पांडे ने कांग्रेस के प्रेमानंद महाजन को करीब 500 वोटों से हराया. इस सीट पर अनुसूचित जाति, पंजाबी वोटर्स और किसानों के वोट जो कांग्रेस को मिल सकते थे, ऐसे करीब 3,000 वोट बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने काट दिये.
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हरिद्वार ग्रामीण सीट पर इसलिए हारी बीजेपी: हरिद्वार ग्रामीण सीट पर बहुजन समाज पार्टी के कमजोर प्रत्याशी उतारने के चलते भाजपा को इसका नुकसान हुआ. इस सीट पर जहां 2017 में करीब 18,000 वोट बसपा के मुकर्रम ले गए थे. वहीं इस बार बसपा ने कमजोर प्रत्याशी उतारा. इस बार बसपा प्रत्याशी मोहम्मद यूनुस को मात्र चार हजार के करीब वोट पड़े. इससे भाजपा को नुकसान हुआ. इसलिए बीजेपी के स्वामी यतीश्वरानंद 3,500 वोट से चुनाव हार गए.
नोटा ने भी किया कमाल: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में नोटा का फीगर भी काफी मजबूत दिखाई दिया. प्रदेश में 5वीं विधानसभा के लिए 14 फरवरी को हुए मतदान में 45,681 लोगों ने नोटा दबाया था. जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में नोटा 50,408 पड़ा था. उत्तराखंड चुनाव आयोग से मिली जानकारी के अनुसार, इस बार के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों के सापेक्ष छह सीटों पर एक हजार से अधिक नोटा का बटन दबा. इस चुनाव में कुल 65.37 प्रतिशत वोटों में से नोटा का वोट 0.87 प्रतिशत रहा.