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पड़ताल: राज्य गठन के बाद भी प्रदेश के परंपरागत बीजों को नहीं मिल पाई प्रमाणिकता - Uttarakhand News

भारत सरकार की ओर से सिर्फ प्रमाणित बीजों की खरीद पर ही किसानों को सब्सिडी दी जाती है. अब तक प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है, जिससे किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है.

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प्रदेश के परंपरागत बीजों को नहीं मिल पाई प्रमाणिकता
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Published : Dec 5, 2019, 5:32 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन के 19 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी 19 सालों में प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है. जिसके कारण पर्वतीय इलाकों के किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में पहाड़ी फसलों की अच्छी मांग है. जिसके कारण अब राज्य सरकार केंद्र से प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणिकता दिलाने के प्रयास में जुट गई है.

प्रदेश के परंपरागत बीजों को नहीं मिल पाई प्रमाणिकता.

बता दें कि भारत सरकार की ओर से सिर्फ प्रमाणित बीजों की खरीद पर ही किसानों को सब्सिडी दी जाती है. अब तक प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है, जिससे किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि राज्य सरकार लगातार कृषि मंत्रालय से प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणित करने की गुहार लगा रही है.

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सुबोध उनियाल ने कहा अगर उनका यह प्रयास सफल होता है तो इससे आने वाले दिनों में किसानों को लाभ मिलेगा. जिसके बाद अन्य बीजों की तर्ज पर ही पहाड़ के किसान भी सब्सिडी पर परंपरागत फसलों के बीज खरीद पाएंगे.

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क्या होते हैं प्रमाणिक बीज

फसल उत्‍पादन में गुणवत्‍तायुक्‍त/प्रमाणित बीज का प्रमुख योगदान है. इससे ना केवल प्रति इकाई फसल उत्‍पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है, अपितु फसल उत्‍पादन के अन्‍य आदानों यथा उर्वरक, सिचाई आदि का भी समुचित उपयोग होता है. वहीं, बीज प्रमाणित हो पाते हैं जो उच्चतम गुणवता के होते हैं. कृषि विशेषज्ञ और प्रोफेसर एके सक्सेना ने बताया कि किसी भी बीज को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया जाता है.जिसमें कई साल लग जाते हैं.

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गौरतलब है कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में होने वाली विभिन्न परंपरागत फसलें काफी पौष्टिक मानी जाती हैं. यही कारण है कि आज प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में पैदा होने वाले मंडुवा, झंगोरा, उखड़ी चावल, रामदाना, गहत की दाल, भट्ट की दाल इत्यादि की देश के अन्य हिस्सों में काफी मांग है.

देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन के 19 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी 19 सालों में प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है. जिसके कारण पर्वतीय इलाकों के किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में पहाड़ी फसलों की अच्छी मांग है. जिसके कारण अब राज्य सरकार केंद्र से प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणिकता दिलाने के प्रयास में जुट गई है.

प्रदेश के परंपरागत बीजों को नहीं मिल पाई प्रमाणिकता.

बता दें कि भारत सरकार की ओर से सिर्फ प्रमाणित बीजों की खरीद पर ही किसानों को सब्सिडी दी जाती है. अब तक प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है, जिससे किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि राज्य सरकार लगातार कृषि मंत्रालय से प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणित करने की गुहार लगा रही है.

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सुबोध उनियाल ने कहा अगर उनका यह प्रयास सफल होता है तो इससे आने वाले दिनों में किसानों को लाभ मिलेगा. जिसके बाद अन्य बीजों की तर्ज पर ही पहाड़ के किसान भी सब्सिडी पर परंपरागत फसलों के बीज खरीद पाएंगे.

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क्या होते हैं प्रमाणिक बीज

फसल उत्‍पादन में गुणवत्‍तायुक्‍त/प्रमाणित बीज का प्रमुख योगदान है. इससे ना केवल प्रति इकाई फसल उत्‍पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है, अपितु फसल उत्‍पादन के अन्‍य आदानों यथा उर्वरक, सिचाई आदि का भी समुचित उपयोग होता है. वहीं, बीज प्रमाणित हो पाते हैं जो उच्चतम गुणवता के होते हैं. कृषि विशेषज्ञ और प्रोफेसर एके सक्सेना ने बताया कि किसी भी बीज को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया जाता है.जिसमें कई साल लग जाते हैं.

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गौरतलब है कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में होने वाली विभिन्न परंपरागत फसलें काफी पौष्टिक मानी जाती हैं. यही कारण है कि आज प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में पैदा होने वाले मंडुवा, झंगोरा, उखड़ी चावल, रामदाना, गहत की दाल, भट्ट की दाल इत्यादि की देश के अन्य हिस्सों में काफी मांग है.

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देहरादून- उत्तराखंड राज्य गठन के 19 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद इन 19 सालों में प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है...अब सरकार कोशिशों में है कि केंद्र से प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणिकता दी जाए ।

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि भारत सरकार की ओर से सिर्फ प्रमाणित बीजों की खरीद पर ही किसानों को सब्सिडी दी जाती है । लेकिन क्योंकि प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीज आज भी प्रमाणित नहीं है । ऐसे में प्रदेश के पर्वतीय इलाकों के किसानों को परंपरागत फसलों के बीजों की खरीद पर कोई सब्सिडी नही मिल पाती है ।

ईटीवी भारत से बात करते हुए सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि राज्य सरकार लगातार केंद्र कृषि मंत्रालय से प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणित करने की गुहार लगा रही है । यदि यह प्रयास सफल होते हैं तो इससे पहाड़ के किसानों को लाभ पहुंचेगा अन्य बीजों की तर्ज पर ही पहाड़ के किसान भी सब्सिडी पर परंपरागत फसलों के बीज खरीद पाएंगे।

बाइट- सुबोध उनियाल कृषि मंत्री उत्तराखंड




Body:बता दे की वही बीज प्रमाणित हो पाते हैं जो उच्चतम गुणवंता का हो । कृषि विशेषज्ञ और प्रोफेसर एके सक्सेना ने बताया कि किसी भी बीज को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया जाता है । जिसमें कई साल लग जाते हैं वही वही बीज प्रमाणित हो पाता है जो उच्चतम गुणवत्ता का हो । ऐसे नहीं आती प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणिकता मिल जाती है तो इससे किसानों के साथ ही पूरे प्रदेश को खासा लाभ होगा फिर सड़क किसानों को इन बीजों की खरीद पर सब्सिडी मिलने लगेगी । वहीं दूसरी तरफ पहाड़ी क्षेत्रों से हो रहे पलायन पर भी लगाम लग सकेगी।

बाइट- ए. के सक्सेना कृषि विशेषज्ञ

गौरतलब है कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में होने वाली विभिन्न परंपरागत फसलें काफी पौष्टिक मानी जाती हैं । यही कारण है कि आज प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में पैदा होने मंडुवा, झँगोरा, उखड़ी चावल, रामदाना, गहत की दाल, भट्ट की दाल इत्यादि की देश के अन्य हिस्सों में भी अच्छी खासी मांग है ।


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