देहरादून: उत्तराखंड राज्य गठन के 19 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी 19 सालों में प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है. जिसके कारण पर्वतीय इलाकों के किसानों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में पहाड़ी फसलों की अच्छी मांग है. जिसके कारण अब राज्य सरकार केंद्र से प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणिकता दिलाने के प्रयास में जुट गई है.
बता दें कि भारत सरकार की ओर से सिर्फ प्रमाणित बीजों की खरीद पर ही किसानों को सब्सिडी दी जाती है. अब तक प्रदेश की परंपरागत फसलों के बीजों की प्रमाणिकता नहीं हो पाई है, जिससे किसानों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है. ईटीवी भारत से बात करते हुए सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने बताया कि राज्य सरकार लगातार कृषि मंत्रालय से प्रदेश के परंपरागत फसलों के बीजों को प्रमाणित करने की गुहार लगा रही है.
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सुबोध उनियाल ने कहा अगर उनका यह प्रयास सफल होता है तो इससे आने वाले दिनों में किसानों को लाभ मिलेगा. जिसके बाद अन्य बीजों की तर्ज पर ही पहाड़ के किसान भी सब्सिडी पर परंपरागत फसलों के बीज खरीद पाएंगे.
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क्या होते हैं प्रमाणिक बीज
फसल उत्पादन में गुणवत्तायुक्त/प्रमाणित बीज का प्रमुख योगदान है. इससे ना केवल प्रति इकाई फसल उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है, अपितु फसल उत्पादन के अन्य आदानों यथा उर्वरक, सिचाई आदि का भी समुचित उपयोग होता है. वहीं, बीज प्रमाणित हो पाते हैं जो उच्चतम गुणवता के होते हैं. कृषि विशेषज्ञ और प्रोफेसर एके सक्सेना ने बताया कि किसी भी बीज को प्रमाणित करने के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया जाता है.जिसमें कई साल लग जाते हैं.
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गौरतलब है कि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में होने वाली विभिन्न परंपरागत फसलें काफी पौष्टिक मानी जाती हैं. यही कारण है कि आज प्रदेश के पर्वतीय जनपदों में पैदा होने वाले मंडुवा, झंगोरा, उखड़ी चावल, रामदाना, गहत की दाल, भट्ट की दाल इत्यादि की देश के अन्य हिस्सों में काफी मांग है.