ETV Bharat / city

आज के मार्डन कला को मात देती टिहरी की सदियों पुरानी ये कला, 15 साल से पानी के अंदर है ज्यों का त्यों

टिहरी के घंटाघर को साल 1897 में तत्कालीन महाराज कीर्ति शाह ने ने बनवाया था. लंदन के घंटाघर की तर्ज पर बने 110 फीट ऊंचे इस घंटाघर को बनने में 3 साल लगे थे. लगभग शताब्दी से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी ये घंटाघर बिना किसी रख रखाव के खड़ा है.

यादों में टिहरी.
author img

By

Published : Jul 30, 2019, 6:24 AM IST

देहरादून: बदलते वक्त के साथ हर चीज का स्वरूप बदल रहा है. सड़कें, चौबारें सब बदल रहे हैं. लेकिन टिहरी शहर में आज भी एक ऐसी चीज है जो अभी तक नहीं बदली है. वो है यहां का घंटाघर, जो कि 2004 में टिहरी डैम में जलमग्न हो गया. पुरानी टिहरी के जलमग्न होने के 15 साल बाद भी आज घंटाघर ज्यों का त्यों खड़ा है. आज के दौर में बनी इमारतों के अस्तित्व पर जहां 10-15 सालों में ही खतरा मंडराने लगता है, वहीं टिहरी का ये घंटाघर 1897 से खड़ा है. जो कि अपने आप में एक इतिहास है.

Tehri  Clock Tower
टिहरी डैम में डूबा घंटाघर.
आधुनिक दौर में तमाम तरह के सीमेंट, बालू और पत्थरों से इमारतों का निर्माण किया जाता है. उन्हें भूकंपरोधी, पानी से बचाव की सुविधा के साथ बनाया जाता है. इनकी सुरक्षा मानकों की जांच थोड़े-थोड़े समय में की जाती है. साथ ही इन्हें बनाने के लिए तमाम तरह की सावधानियां बरती जाती हैं. बावजूद इसके ये इमारतें 10-15 सालों में ही ढह जाती हैं. कुछ इमारतें तो ऐसी भी होती हैं जो कि बनने से पहले ही जमींदोज हो जाती हैं. वहीं ठीक इसके उलट टिहरी के घंटाघर की कहानी है.
Tehri  Clock Tower
पुरानी टिहरी के शहर के बीच में खड़ा घंटाघर.
टिहरी के घंटाघर को साल 1897 में तत्कालीन महाराज कीर्ति शाह ने ने बनवाया था. लंदन के घंटाघर की तर्ज पर बने 110 फीट ऊंचे इस घंटाघर को बनने में 3 साल लगे थे. लगभग शताब्दी से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी ये घंटाघर बिना किसी रख रखाव के खड़ा है. इस घंटाघर को जो बात सबसे अलग बनाती है वो ये है कि 2004 के बाद ये पानी में डूबा हुआ है. बावजूद इसका बाल भी बांका नहीं हुआ. जब भी टिहरी डैम का जलस्तर कम होता है तो आसानी से राजशाही वैभव के प्रतीक घंटाघर को देखा जा सकता है.
Tehri  Clock Tower
पुरानी टिहरी.
आइये अब आपको बताते हैं कि ऐसी क्या चीज है जो इस घंटाघर को मजबूती से खड़े रखे हुए. दरअसल पुरानी टिहरी में बने इस घंटाघर का निर्माण किसी सीमेंट या प्लास्टर से नहीं किया गया है. इस घंटाघर के निर्माण में उड़द की दाल के लेप का इस्तेमाल किया गया है. जो कि इसकी दीवारों को मजबूती देती है. इसके साथ ही उड़द की दाल के लेप से बनी दीवारों में पानी आसानी से नहीं घुस पाता है. यहीं कारण है कि इतने सालों से पानी में डूबे होने के बाद भी घंटाघर मजबूती से खड़ा है. पुराने समय में घरों को बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था. जिससे घर मजबूत और भूकंपरोधी होते थे.

देहरादून: बदलते वक्त के साथ हर चीज का स्वरूप बदल रहा है. सड़कें, चौबारें सब बदल रहे हैं. लेकिन टिहरी शहर में आज भी एक ऐसी चीज है जो अभी तक नहीं बदली है. वो है यहां का घंटाघर, जो कि 2004 में टिहरी डैम में जलमग्न हो गया. पुरानी टिहरी के जलमग्न होने के 15 साल बाद भी आज घंटाघर ज्यों का त्यों खड़ा है. आज के दौर में बनी इमारतों के अस्तित्व पर जहां 10-15 सालों में ही खतरा मंडराने लगता है, वहीं टिहरी का ये घंटाघर 1897 से खड़ा है. जो कि अपने आप में एक इतिहास है.

Tehri  Clock Tower
टिहरी डैम में डूबा घंटाघर.
आधुनिक दौर में तमाम तरह के सीमेंट, बालू और पत्थरों से इमारतों का निर्माण किया जाता है. उन्हें भूकंपरोधी, पानी से बचाव की सुविधा के साथ बनाया जाता है. इनकी सुरक्षा मानकों की जांच थोड़े-थोड़े समय में की जाती है. साथ ही इन्हें बनाने के लिए तमाम तरह की सावधानियां बरती जाती हैं. बावजूद इसके ये इमारतें 10-15 सालों में ही ढह जाती हैं. कुछ इमारतें तो ऐसी भी होती हैं जो कि बनने से पहले ही जमींदोज हो जाती हैं. वहीं ठीक इसके उलट टिहरी के घंटाघर की कहानी है.
Tehri  Clock Tower
पुरानी टिहरी के शहर के बीच में खड़ा घंटाघर.
टिहरी के घंटाघर को साल 1897 में तत्कालीन महाराज कीर्ति शाह ने ने बनवाया था. लंदन के घंटाघर की तर्ज पर बने 110 फीट ऊंचे इस घंटाघर को बनने में 3 साल लगे थे. लगभग शताब्दी से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी ये घंटाघर बिना किसी रख रखाव के खड़ा है. इस घंटाघर को जो बात सबसे अलग बनाती है वो ये है कि 2004 के बाद ये पानी में डूबा हुआ है. बावजूद इसका बाल भी बांका नहीं हुआ. जब भी टिहरी डैम का जलस्तर कम होता है तो आसानी से राजशाही वैभव के प्रतीक घंटाघर को देखा जा सकता है.
Tehri  Clock Tower
पुरानी टिहरी.
आइये अब आपको बताते हैं कि ऐसी क्या चीज है जो इस घंटाघर को मजबूती से खड़े रखे हुए. दरअसल पुरानी टिहरी में बने इस घंटाघर का निर्माण किसी सीमेंट या प्लास्टर से नहीं किया गया है. इस घंटाघर के निर्माण में उड़द की दाल के लेप का इस्तेमाल किया गया है. जो कि इसकी दीवारों को मजबूती देती है. इसके साथ ही उड़द की दाल के लेप से बनी दीवारों में पानी आसानी से नहीं घुस पाता है. यहीं कारण है कि इतने सालों से पानी में डूबे होने के बाद भी घंटाघर मजबूती से खड़ा है. पुराने समय में घरों को बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था. जिससे घर मजबूत और भूकंपरोधी होते थे.
Intro:Body:

आज के मार्डन कला को मात देती टिहरी की सदियों पुरानी ये कला, 15 साल से पानी के अंदर है ज्यों का त्यों

देहरादून: बदलते वक्त के साथ हर चीज का स्वरूप बदल रहा है. सड़कें, चौबारें सब बदल रहे हैं. लेकिन टिहरी शहर में आज भी एक ऐसी चीज है जो अभी तक नहीं बदली है. वो है यहां का घंटाघर, जो कि 2004 में टिहरी डैम में जलमग्न हो गया. पुरानी टिहरी के जलमग्न होने के 15 साल बाद भी आज घंटाघर ज्यों का त्यों खड़ा है. आज के दौर में बनी इमारतों के अस्तित्व पर जहां 10-15 सालों में ही खतरा मंडराने लगता है, वहीं टिहरी का ये घंटाघर 1897 से खड़ा है. जो कि अपने आप में एक इतिहास है.

आधुनिक दौर में तमाम तरह के सीमेंट, बालू और पत्थरों से इमारतों का निर्माण किया जाता है. उन्हें भूकंपरोधी, पानी से बचाव  की सुविधा के साथ बनाया जाता है. इनकी सुरक्षा मानकों की जांच थोड़े-थोड़े समय में की जाती है. साथ ही इन्हें बनाने के लिए तमाम तरह की सावधानियां बरती जाती हैं. बावजूद इसके ये इमारतें 10-15 सालों में ही ढह जाती हैं. कुछ इमारतें तो ऐसी भी होती हैं जो कि बनने से पहले ही जमींदोज हो जाती हैं. वहीं ठीक इसके उलट टिहरी के घंटाघर की कहानी है.

टिहरी के घंटाघर को साल 1897 में तत्कालीन महाराज कीर्ति शाह ने ने बनवाया था. लंदन के घंटाघर की तर्ज पर बने 110 फीट ऊंचे इस घंटाघर को बनने में 3 साल लगे थे. लगभग शताब्दी से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी ये घंटाघर बिना किसी रख रखाव के खड़ा है. इस घंटाघर को जो बात सबसे अलग बनाती है वो ये है कि 2004 के बाद ये पानी में डूबा हुआ है. बावजूद इसका बाल भी बांका नहीं हुआ. जब भी टिहरी डैम का जलस्तर कम होता है तो आसानी से राजशाही वैभव के प्रतीक घंटाघर को देखा जा सकता है.

आइये अब आपको बताते हैं कि ऐसी क्या चीज है जो इस घंटाघर को मजबूती से खड़े रखे हुए. दरअसल पुरानी टिहरी में बने इस घंटाघर का निर्माण किसी सीमेंट या प्लास्टर से नहीं किया गया है. इस घंटाघर के निर्माण में उड़द की दाल के लेप का इस्तेमाल किया गया है. जो कि इसकी दीवारों को मजबूती देती है. इसके साथ ही उड़द की दाल के लेप से बनी दीवारों में पानी आसानी से नहीं घुस पाता है. यहीं कारण है कि इतने सालों से पानी में डूबे होने के बाद भी घंटाघर मजबूती से खड़ा है. पुराने समय में घरों को बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता था. जिससे घर मजबूत और भूकंपरोधी होते थे.




Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.