देहरादून: 16 जून साल 2013 को केदारघाटी में आई भयानक त्रासदी को भला कोई कैसे भूल सकता है. ये वो त्रासदी थी, जिसे हिमालय के इतिहास की सबसे भयानक त्रासदी माना जाता है. इस त्रासदी को 6 साल का समय बीत चुका है. लेकिन जिन लोगों ने इस भयानक त्रासदी का मंजर देखा, जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, उन लोगों की आंखों में 6 साल गुजर जाने के बाद भी अपनों को खोने का दर्द साफ झलकता है. इस भयानक मंजर को अपने सामने देखने वाले हजारों लोगों में देहरादून के देवेंद्र भी हैं, जिन्होंने अपने परिवार के 7 लोगों को हमेशा के लिए खो दिया.
देहरादून के रहने वाले देवेंद्र सिंह बिष्ट ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान कैमरे के सामने उनकी आंखें भी नम हो गईं. देवेंद्र सिंह ने बताया कि 12 जून 2013 को उनके छोटे भाई, अपनी पत्नी, 2 बच्चे, सास और साला-साली के साथ अचानक ही बाबा केदार के दर्शनों के लिए निकल गए. इस दौरान हालांकि बारिश का दौर शुरू हो चुका था, लेकिन किसी को इस बात का अहसास नहीं था कि बारिश जल प्रलय का रूप ले लेगी.
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देवेंद्र आगे बताते हैं कि उनकी छोटे भाई से 15 जून 2013 को टेलीफोन पर आखिरी बार बात हुई थी. इस दौरान उनका छोटा भाई अपने साथ गए सभी लोगों के साथ बाबा केदार के दर्शन करके पैदल लौट रहे थे. लेकिन तेज बारिश के चलते वे सभी एक स्थान पर रुककर बारिश के थमने का इंतजार कर रहे थे. उसके बाद न उनसे बात हुई और न ही उनकी कोई खबर पता लगी.
देवेंद्र कहते हैं कि उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को ढूंढने की बहुत कोशिश की. कई सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाए लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें अपने प्रियजनों के शवों को देख पाना तक नसीब नहीं हुआ. यही कारण है कि उस भयानक त्रासदी को आज 6 साल का समय बीत चुका है. लेकिन अब भी उन्हें यह महसूस होता है कि शायद ऊपरवाले के किसी चमत्कार से उनके सभी प्रियजन घर वापस लौट आएं.