ETV Bharat / city

तेजी से पिघलते ग्लेशियर बने बड़ी समस्या, वैज्ञानिकों ने कही ये बात

दुनिया भर से लगातार पिघल रहे ग्लेशियर एक बड़ी समस्या है. जिसको लेकर वाडिया के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर ग्लेशियर ऐसे ही पिघते रहे तो पीने की पानी की किल्लत हो सकती है.

वैज्ञानिक डीपी डोभाल.
author img

By

Published : Sep 26, 2019, 8:58 PM IST

Updated : Sep 26, 2019, 9:42 PM IST

देहरादून: दुनिया भर में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. यही वजह है की ग्लेशियर से जुड़े वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल का कहना है कि वे हिमालयन ग्लेशियर पर रिसर्च कर रहे हैं. बाकि दुनिया भर के ग्लेशियरों पर अन्य वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं और सभी की रिपोर्ट यही कहती है कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं.

वैज्ञानिक डीपी डोभाल.

बता दें कि हिमालय रीजन में करीब 9000 ग्लेशियर हैं. जिसमें से 60 फीसदी ग्लेशियर 1-2 स्कवायर किलोमीटर से कम हैं. जिनका उनका एरिया और मास दोनों कम है. यही वजह है कि वह तेजी से पिघलते हैं और आने वाले 100 साल में ये छोटे ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे.

पढ़ें: नन्हें-मुन्नों का कर दिया रोका, गिफ्ट में दी 6 लाख की 5 बाइकें, भैंस और घोड़ा

वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा कि अभी के रिसर्च के अनुसार यह तो पक्का है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं. दुनिया भर में जो छोटे ग्लेशियर हैं वह आने वाले कुछ सालों में खत्म जाएंगे. लेकिन जो बड़े ग्लेशियर हैं वह इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकते. क्योंकि ठंडी के मौसम में ग्लेशियर पर आइसफॉल होता है. लिहाजा दुनिया के जितने भी बड़े ग्लेशियर हैं वह खत्म नही होंगे.

ग्लेशियरों को पिघलने को लेकर डीपी डोभाल ने कहा कि अगर पिछले 20-25 सालों के पूरी दुनिया में पिघल रहे ग्लेशियर का अनुपात निकाला जाए तो करीब 15 से 20 फीसदी ग्लेशियर हर साल पिघल रहे हैं.

वहीं, डीपी डोभाल ने कहा कि हर ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन का अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है. हिमालय में ग्लेशियर पिघलने का ट्रेंड अलग है. अल्पाइन ग्लेशियर के पिघलने का तरीका दूसरा है तो वहीं अटलांटिका के ग्लेशियरों के पिघलने का ट्रेंड भी अलग है.

डीपी डोभाल ने कहा कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं ऐसे में आने वाले समय में पानी की किल्लत पैदा हो सकती है. हालांकि यह भी हो सकता है कि इस दौरान कोई नया क्लाइंब सिस्टम भी आ जाए, जिससे ग्लेशियर ग्रो करने लग जाए.

देहरादून: दुनिया भर में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. यही वजह है की ग्लेशियर से जुड़े वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल का कहना है कि वे हिमालयन ग्लेशियर पर रिसर्च कर रहे हैं. बाकि दुनिया भर के ग्लेशियरों पर अन्य वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं और सभी की रिपोर्ट यही कहती है कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं.

वैज्ञानिक डीपी डोभाल.

बता दें कि हिमालय रीजन में करीब 9000 ग्लेशियर हैं. जिसमें से 60 फीसदी ग्लेशियर 1-2 स्कवायर किलोमीटर से कम हैं. जिनका उनका एरिया और मास दोनों कम है. यही वजह है कि वह तेजी से पिघलते हैं और आने वाले 100 साल में ये छोटे ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे.

पढ़ें: नन्हें-मुन्नों का कर दिया रोका, गिफ्ट में दी 6 लाख की 5 बाइकें, भैंस और घोड़ा

वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा कि अभी के रिसर्च के अनुसार यह तो पक्का है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं. दुनिया भर में जो छोटे ग्लेशियर हैं वह आने वाले कुछ सालों में खत्म जाएंगे. लेकिन जो बड़े ग्लेशियर हैं वह इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकते. क्योंकि ठंडी के मौसम में ग्लेशियर पर आइसफॉल होता है. लिहाजा दुनिया के जितने भी बड़े ग्लेशियर हैं वह खत्म नही होंगे.

ग्लेशियरों को पिघलने को लेकर डीपी डोभाल ने कहा कि अगर पिछले 20-25 सालों के पूरी दुनिया में पिघल रहे ग्लेशियर का अनुपात निकाला जाए तो करीब 15 से 20 फीसदी ग्लेशियर हर साल पिघल रहे हैं.

वहीं, डीपी डोभाल ने कहा कि हर ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन का अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है. हिमालय में ग्लेशियर पिघलने का ट्रेंड अलग है. अल्पाइन ग्लेशियर के पिघलने का तरीका दूसरा है तो वहीं अटलांटिका के ग्लेशियरों के पिघलने का ट्रेंड भी अलग है.

डीपी डोभाल ने कहा कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं ऐसे में आने वाले समय में पानी की किल्लत पैदा हो सकती है. हालांकि यह भी हो सकता है कि इस दौरान कोई नया क्लाइंब सिस्टम भी आ जाए, जिससे ग्लेशियर ग्रो करने लग जाए.

Intro:नोट - फीड ftp से भेजी गयी है...........
uk_deh_03_glacier_is_melting_vis_7205803



देश दुनिया में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर, एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। यही वजह है की ग्लेशियर से जुड़े दुनिया भर के वैज्ञानिक लगातार पिघल रहे ग्लेशियर पर रिसर्च कर रहे है। हालांकि अभी तक के दुनिया भर के वैज्ञानिको की रिपोर्ट देखे तो सभी के अनुसार लगातार ग्लेशियर पिघल रहे है। वही ज्यादा जानकारी देते हुए वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने बताया कि वो हिमालयन ग्लेशियर पर पर रिसर्च कर रहे हैं। नहीं पूरी विदेशो के भी तमाम वैज्ञानिक दुनिया के ग्लेशियरों पर रिसर्च कर रहे है, और सभी का रिपोर्ट यही है कि ग्लेशियर पिघल रहा है। 



Body:हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि आने वाले कुछ सालों में तमाम ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। लेकिन यह वह ग्लेशियर हैं जो छोटे हैं। लिहाजा यह तेजी से पिघलते हैं और जल्द ही खत्म हो जाते हैं। यही नहीं हिमालय रीजन में करीब 9000 ग्लेशियर है। जिसमें से 60 फ़ीसदी ग्लेशियर 1 या 2 स्कवायर  किलोमीटर से कम है। तो जाहिर सी बात है कि आने वाले 100 साल में ये छोटे ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। क्योंकि जो छोटे ग्लेशियर है उनका एरिया और मास दोनों कम है। यही वजह है कि वह तेजी से पिघलते हैं और आने वाले समय में छोटे ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। 


वाडिया के वैज्ञानिक डोभाल ने बताया कि अभी तक जो रिसर्च किए गए हैं उसके अनुसार यह तो कंफर्म है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं और दुनिया भर में जो छोटे ग्लेशियर हैं वह आने वाले कुछ सालों में खत्म जाएंगे। लेकिन जो बड़े ग्लेशियर हैं वह इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकते है। क्योंकि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसके तहत अगर ग्लेशियर पिघल रहे हैं तो ठंडी के मौसम में ग्लेशियर पर आइसफॉल भी होता है। लिहाजा दुनिया के जितने भी बड़े ग्लेशियर हैं। वह खत्म होने से रहे, हालांकि छोटे ग्लेशियर आने वाले सालों में खत्म हो सकते हैं। साथ ही बताया कि पिछले बीच 25 सालों के अगर पूरी दुनिया में पिघल रहे ग्लेशियर का रेशियो निकाला जाए तो करीब 15 से 20 फीसदी ग्लेशियर हर सालाना पिघलते हैं। 


वही डीपी डोभाल ने बताया कि हर ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन का अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है क्योंकि हिमालय में ग्लेशियर पिघलने का ट्रेंड अलग है, अल्पाइन ग्लेशियर के पिघलने का तरीका दूसरा है तो वहीं अटलांटिका के ग्लेशियरों के पिघलने का ट्रेंड भी भिन्न है। क्योंकि उस क्षेत्र के जलवायु परिवर्तन का असर उस क्षेत्र के ग्लेशियरों पर पड़ता है। हालांकि न सिर्फ ग्लेशियरों बल्कि हर जगह जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा हैं। 


साथ ही डीपी डोभाल ने बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं ऐसे में आने वाले समय में पानी की किल्लत पैदा हो सकती है हालांकि यह भी हो सकता है कि इस दौरान कोई नया क्लाइंब सिस्टम भी आ जाए जिससे ग्लेशियर ग्रो करने लग जाएं। लेकिन अगर वर्तमान समय की बात करें तो दुनिया भर के सभी ग्लेशियर पिघल रहे हैं और अगर ऐसे ही गले से पिघलते रहे तो आने वाले समय में ग्लेशियर कम भी हो सकते हैं। और भारत देश के ग्लेशियर हैं उससे गंगा, यमुना जैसे तमाम नदियां निकलती है। हालांकि इन नदियों में भले ही ग्लेशियरों का कॉन्ट्रिब्यूशन कम हो लेकिन फिर भी सर्दियों के मौसम में इन नदियों का फ्लोर बरकरार रहता है। 


बाइट - डीपी डोभाल, सीनियर वैज्ञानिक, वाडिया




Conclusion:
Last Updated : Sep 26, 2019, 9:42 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.