देहरादून: दुनिया भर में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. यही वजह है की ग्लेशियर से जुड़े वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं. वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल का कहना है कि वे हिमालयन ग्लेशियर पर रिसर्च कर रहे हैं. बाकि दुनिया भर के ग्लेशियरों पर अन्य वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं और सभी की रिपोर्ट यही कहती है कि ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं.
बता दें कि हिमालय रीजन में करीब 9000 ग्लेशियर हैं. जिसमें से 60 फीसदी ग्लेशियर 1-2 स्कवायर किलोमीटर से कम हैं. जिनका उनका एरिया और मास दोनों कम है. यही वजह है कि वह तेजी से पिघलते हैं और आने वाले 100 साल में ये छोटे ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे.
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वाडिया के वैज्ञानिक डीपी डोभाल ने कहा कि अभी के रिसर्च के अनुसार यह तो पक्का है कि ग्लेशियर पिघल रहे हैं. दुनिया भर में जो छोटे ग्लेशियर हैं वह आने वाले कुछ सालों में खत्म जाएंगे. लेकिन जो बड़े ग्लेशियर हैं वह इतनी जल्दी खत्म नहीं हो सकते. क्योंकि ठंडी के मौसम में ग्लेशियर पर आइसफॉल होता है. लिहाजा दुनिया के जितने भी बड़े ग्लेशियर हैं वह खत्म नही होंगे.
ग्लेशियरों को पिघलने को लेकर डीपी डोभाल ने कहा कि अगर पिछले 20-25 सालों के पूरी दुनिया में पिघल रहे ग्लेशियर का अनुपात निकाला जाए तो करीब 15 से 20 फीसदी ग्लेशियर हर साल पिघल रहे हैं.
वहीं, डीपी डोभाल ने कहा कि हर ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन का अलग-अलग तरह से प्रभाव पड़ता है. हिमालय में ग्लेशियर पिघलने का ट्रेंड अलग है. अल्पाइन ग्लेशियर के पिघलने का तरीका दूसरा है तो वहीं अटलांटिका के ग्लेशियरों के पिघलने का ट्रेंड भी अलग है.
डीपी डोभाल ने कहा कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं ऐसे में आने वाले समय में पानी की किल्लत पैदा हो सकती है. हालांकि यह भी हो सकता है कि इस दौरान कोई नया क्लाइंब सिस्टम भी आ जाए, जिससे ग्लेशियर ग्रो करने लग जाए.