देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड की शांत वादियों में ऐसी वारदातें भी हुई है, जिन्होंने तमाम जांच एजेंसियों के सामने चुनौती खड़ी कर दी है. मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में डेढ़ सौ से ज्यादा ऐसे केस हैं जो फाइल तो हुए लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. सूबे के कुछ ऐसे ही मामलों को आज ईटीवी भारत आपके सामने ला रहा है. देखिए खास रिपोर्ट...
वैसे तो सूबे में हर साल हजारों मुकदमे दर्ज होते हैं. जिन पर पुलिस अपने स्तर पर जांच के बाद दोषियों को सलाखों के पीछे पहुंचाती है. लेकिन इन हजारों मामलों में कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनको सुरागकशी में पुलिस के पसीने छूट जाते हैं. ऐसे ही कुछ हाई प्रोफाइल मामले हैं जिन्हें न केवल उत्तराखंड की जांच एजेंसियों बल्कि केंद्रीय जांच एजेंसियां भी नहीं सुलझा पाई है. तो डालते है एक नजर सूबे के ऐसे ही चर्चित मामलों पर.
केस नंबर-1
हरिद्वार जनपद में साल 2003 का वाकिया आज भी अनसुलझा है. मामला हरिद्वार के तत्कालीन एसपी सिटी धूम सिंह तोमर का है. जो 23 सितंबर 2003 को अचानक गुमशुदा हो गए. बताते हैं कि धूम सिंह तोमर मॉर्निंगवॉक के लिए घर से निकले थे और फिर कभी घर लौटकर नहीं आए. धूम सिंह तोमर की पत्नी की पुलिस रिपोर्टके बाद पूरा पुलिस का पूरा अमला धूम सिंह तोमर को खोजबीन में जुट गया. इस जांच के दौरान धूम सिंह तोमर के जूते समेत उनका चश्मा गंगनहर के किनारे मिला था. ऐसे में अनुमान लगाया गया कि शायद एसपी धूम सिंह तोमर गंगनहर में बह गए, लेकिनपरिस्थिति जन्य तथ्य और गोताखोरों की खोजबीन के बाद कई लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. जिसके चलते आज भी धूम सिंह तोमर की गुमशुदगी एक रहस्य बनी हुई है.
केस नंबर-2
उत्तराखंड में साल 2007 में संत शंकरदेव के गायब होने का मामला भी खूब चर्चा में रहा. यह मामला इसलिए भी खूब उठा क्योंकि, शंकरदेव बाबा रामदेव के गुरु हैं. उनका यूं रहस्यमयी तरीके से गायब होना पूरे प्रदेश की सुर्खियों में रहा. दरअसल, शंकरदेव 16 जून 2007 को गायब हो गए थे. जिनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट आचार्य बालकृष्ण ने थाना कनखल में दर्ज करवाई थी. हालांकि, बाद में इसमें अपहरण की धाराएं लगाई गई. इस मामले भी उत्तराखंड पुलिस ने खूब हाथ-पांव मारे लेकिन नतीजा सिफर ही रहा. शंकरदेव का कोई सुराग नहीं लग पाने के बाद सीबीआई ने इस मामले में मोर्चा संभाला लेकिन कोई सार्थक परिणाम न निकलने पर 9 दिसंबर 2014 को सीबीई ने कोर्ट में अपनी फाइनल रिपोर्ट सौंप दी.
केस नंबर-3
देहरादून के एडवोकेट राजेश सूरी की रहस्यमई मौत भी आज तक नहीं सुलझ पाई है. 30 नवंबर 2014 को राजेश सूरी का शव उनकी गाड़ी में बरामद हुआ था. बताया जा रहा है कि राजेश सूरी नैनीताल से देहरादून आ रहे थे. पुलिस ने प्राथमिक जांच में इसको हार्ट अटैक से मौत का मामला माना, लेकिन जब राजेश सूरी की विसरा रिपोर्ट सामने आई तो पूरे केस का ही रुख बदल गया. दरअसल, विसरा रिपोर्ट में राजेश सूरी की मौत की वजह जहर माना गया. मामले में एक महिला समेत तीन लोगों को आरोपी भी बनाया गया लेकिन आज तक ना तो इनके खिलाफ कोई सबूत मिल पाए हैं और ना ही इस पूरे मामले का पुलिस खुलासा कर पाई है.
केस नंबर-4
ये मामला रुड़की बम ब्लास्ट से जुड़ा है. जिसमें एक छात्र की मौत हो गई थी. घटना 6 दिसंबर 2014 की है जब डीएवी पीजी कॉलेज के पास से गुजर रहे तुषार ने पास में पड़ी कोई वस्तु उठाई. जिसमें जबरदस्त धमाका हुआ और उसकी मौत हो गई. खास बात ये है कि इस जगह के पास ही हिंदू संगठन का एक कार्यक्रम चल रहा था. ऐसे में यह सवाल उठाए गए कि आखिरकार ब्लास्ट वाली यह वस्तु किसने रखी थी. घटना के बाद फौरन बाद उत्तराखंड पुलिस ने मोर्चा संभाला और जांच शुरू कर दी. इसके बाद एसओजी और एसटीएफ ने भी इस पर जांच की. मामला धमाके से जुड़ा होने के कारण आईबी और एनआईए की टीम भी रुड़की पहुंची और ब्लास्ट से जुड़े तथ्य जुटाने शुरू किए, लेकिन आज तक इस मामले का खुलासा नहीं हो पाया है.
केस नंबर-5
देहरादून में आंचल पांधी की मौत का रहस्य भी आज तक नहीं सुलझ पाया है. 14 फरवरी 2017 को देहरादून के राजपुर स्थित एक अपार्टमेंट में आंचल का शव मिला था. जिसके बाद पुलिस ने इसे आत्महत्या के तौर पर देखा और जांच ठंडे बस्ते में डाल दी. लेकिन आंचल पांधी के परिजनों ने इसे हत्या का मामला बताकर जांच की मांग की. जिसके बाद तत्कालीन एसपी श्वेता चौबे को इसकी जांच सौंपी गई. हालांकि, कोई सफलता हाथ न लगने के बाद इस मामले में सीबीसीआईडी की जांच के आदेश दिए गए.
परिजनों का आरोप है कि आंचल की मौत नहीं बल्कि उसकी हत्या हुई है, इस मामले में आंचल के पति को पुलिस बचा रही है. जिसके बाद जांच से असंतुष्ट परिजनों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और इसके बाद मामले की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए गए हैं, बावजूद इसके अबतक आंचल की मौत की गुत्थी नहीं सुलझी है.
केस नंबर-6
संत मोहन दास का मामला भी आज तक रहस्य बना हुआ है. संत मोहन दास पंचायती बड़ा अखाड़ा उदासीन से ताल्लुक रखते थे. संत मोहनदास 14 सितंबर को कनखल हरिद्वार स्टेशन से लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस के जरिए मुंबई के लिए रवाना हुए, लेकिन ना तो वह मुंबई पहुंच पाए और ना ही उनका कोई पता लग पाया. मध्य प्रदेश में जमीन का एक अनुयायी उनके लिए ट्रेन में नाश्ता लेकर पहुंचा तो संत मोहनदास का बैग और कुर्ता ही ट्रेन की बोगी में मिला. इसके बाद पुलिस ने मामले में जांच शुरू कर दी. तमाम छानबीन और कॉल रिकॉर्ड खंगालने के बाद उनकी उनकी आखिरी लोकेशन मेरठ में मिली. लेकिन इसके बाद वह कहां चले गए यह आज तक एक रहस्य बना हुआ है.
केस नंबर-7
उत्तराखंड में रहस्ययी तरीके से लापता होने का एक मामला 6 जुलाई 2017 का भी है. जब 8 सदस्य सिख परिवार श्री हेमकुंड साहिब के दर्शन के लिए उत्तराखंड आए लेकिन उनका कोई पता नहीं लग पाया. हालांकि, जांच कमेटी ने यह माना कि यह परिवार किसी हादसे का शिकार हुआ है लेकिन जांच एजेंसी को ना तो इस बाबत परिवार का कोई सबूत मिला और ना ही सदस्य का शव बरामद हुआ.
केस नंबर-8
उत्तराखंड के हल्द्वानी का एक दर्दनाक हादसा भी खासा चर्चाओं में रहा. मामला पूनम पांडे हत्याकांड से जुड़ा है. जिससे अभीतक जांच एजेंसी पर्दा नहीं उठा पाई है. दरअसल, हल्द्वानी में ट्रांसपोर्ट लक्ष्मी दत्त की पत्नी पूनम पांडे की कुछ बदमाशों ने घर में घुसकर धारदार हथियार से हत्या की थी. साथ ही घर में मौजूद उनकी बेटी अर्शी को भी बेरहमी से पीटा गया. इस मामले पर एसटीएफ और एसआईटी ने जांच की. लेकिन मामला खुलता न देख इसे भी सीबीआई को रेफर कर दिया गया. 27 अगस्त 2018 का मामला आज भी रहस्य बना हुआ है.
बहरहाल, उत्तराखंड में ऐसे मामले जिनकी गुत्थिया आज तक नहीं सुलझ पाई है. उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. इसकी एक वजह यह भी है कि उत्तराखंड पुलिस कई बार बड़े मामलों को गंभीरता से नहीं लेती और न ही जांच को पूरा करने के लिए तेजी दिखाती है. जिसके चलते कई बार अपराधी कानून के शिकंजे से दूर निकल जाते है.
हालांकि, डीजी कानून व्यवस्था अशोक कुमार बताते हैं कि पुलिस की तरफ से हमेशा कोशिश होती है कि मामले को समय से सुलझा लिया जाए. लेकिन कई बार ऐसा होता है कि मामले नहीं सुलझ पाते और किसी दूसरे मामले को सुलझाने के दौरान ही उस मामले की कड़ी पुलिस को मिल जाती है.