देहरादून: हिमालय सुर सम्राट स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी का जन्म संयुक्त प्रांत के अल्मोड़ा जनपद के पाली पछाऊं क्षेत्र में मल्ला गेवाड़ के चौखुटिया तहसील स्थित चांदीखेत नामक गांव में 2 फरवरी 1949 को मोहन गिरी एवं चनुली देवी के घर हुआ था. गोपाल बाबू ने प्राइमरी शिक्षा चौखुटिया के सरकारी स्कूल से प्राप्त की. 5वीं पास करने के बाद मिडिल स्कूल में उन्होंने नाम तो लिखवाया, परन्तु 8वीं उत्तीर्ण करने से पूर्व ही उनके पिता का देहावसान हो गया. इसके बाद गोस्वामी जी नौकरी करने पहाड़ के बेरोजगार युवाओं की परम्परानुसार दिल्ली चले गये.
नौकरी की तलाश में दिल्ली में भटके गोपाल बाबू गोस्वामी: दिल्ली में वह कई वर्षों तक नौकरी की तलाश में रहे. पहले एक प्राइवेट नौकरी की. कुछ वर्ष डीजीआर में आकस्मिक कर्मचारी के रूप में कार्यरत भी रहे परन्तु स्थाई नहीं हो सके. इस दौरान वे दिल्ली, पंजाब तथा हिमाचल में भी रहे. पक्की नौकरी न मिल सकने के कारण बाद में उन्हें गांव वापस आना पड़ा. गांव लौटकर वह खेती के कार्यों में लग गये.
ऐसे चमकी गोपाल बाबू गोस्वामी की किस्मत: 1970 में उत्तर प्रदेश राज्य के गीत और नाटक प्रभाग का एक दल किसी कार्यक्रम के लिये चौखुटिया आया था. यहां उनका परिचय गोपाल बाबू गोस्वामी से हुआ. तत्पश्चात नाटक प्रभाग से आये हुए एक व्यक्ति ने उन्हें नैनीताल केन्द्र का पता दिया और नाटक प्रभाग में भर्ती होने का आग्रह किया. 1971 में उन्हें गीत और नाटक प्रभाग में नियुक्ति मिल गई.
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आकाशवाणी लखनऊ की स्वर परीक्षा की पास: प्रभाग के मंच पर कुमाऊंनी गीत गाने से उन्हें दिन-प्रतिदिन सफलता मिलती रही और धीरे धीरे वे चर्चित होने लगे. इसी दौरान उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ में अपनी स्वर परीक्षा करा ली. वे आकाशवाणी के गायक भी हो गये. लखनऊ में ही उन्होंने अपना पहला गीत 'कैलै बजै मुरूली ओ बैणा' गाया था. आकाशवाणी नजीबाबाद व अल्मोड़ा से प्रसारित होने पर उनके इस गीत की लोकप्रियता बढ़ने लगी. 1976 में उनका पहला कैसेट एचएमवी कंपनी ने बनाया था. उनके कुमाऊंनी गीतों के कैसेट काफी प्रचलित हुए. पौलिडोर कैसेट कंपनी के साथ उनके गीतों का एक लम्बा दौर चला.
गोपाल बाबू गोस्वामी के हिट गीत: वैसे तो उनके अनेक हिट और लोकप्रिय गीत हैं. लेकिन उनके मुख्य कुमाऊंनी गीतों के कैसेटों में थे- "हिमाला को ऊँचो डाना प्यारो मेरो गाँव", "छोड़ दे मेरो हाथा में ब्रह्मचारी छों", "भुर भुरु उज्याव हैगो", "यो पेटा खातिर", "घुगुती न बासा", "आंखी तेरी काई-काई", तथा "जा चेली जा स्वरास." उन्होंने कुछ युगल कुमाऊंनी गीतों के कैसेट भी बनवाए. गीत और नाटक प्रभाग की गायिका चंद्रा बिष्ट के साथ उन्होंने लगभग 15 कैसेट बनवाए.
पहाड़ी मेलों में गाते थे गोपाल बाबू गोस्वामी: नाटक प्रभाग में नियुक्ति से पहले गोपाल बाबू पहाड़ के मेलों, विभिन्न समाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों तथा आम जनता के बीच में अपनी उपस्थिति दर्ज कर एक निस्वार्थ लोकप्रिय कलाकार के रूप में समाज की चेतना को जागृत करने के लिये मनमोहक लोकगीत गाते थे. स्वयं के द्वारा रचे हुये लोकगीतों को अपने मधुर कंठ के माध्यम से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन कर उत्कृष्ट समाजसेवा का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले गोपाल बाबू सदी के बेहद ही दुर्लभतम कलाकार थे. गोस्वामी जी के मधुर कंठ को लोगों ने भी बहुत पसंद किया था. उनमें यह विशेषता भी थी की वे उच्च पिच के गीतों को भी बड़े सहज ढंग से गाते थे. उनके गाये अधिकांश कुमाऊंनी गाने स्वरचित थे. प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगाथाओं, जैसे मालूशाही तथा हरूहीत के भी उन्होंने कैसेट बनवाए थे.
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गोपाल बाबू गोस्वामी ने किताबें भी लिखीं: गोस्वामी जी ने कुछ कुमाऊंनी तथा हिंदी पुस्तकें भी लिखी थी. जिसमें से "गीत माला (कुमाऊंनी)" "दर्पण" "राष्ट्रज्योति (हिंदी)" तथा "उत्तराखण्ड" आदि प्रमुख थी. एक पुस्तक "उज्याव" प्रकाशित नहीं हो पाई. 55 वर्ष की आयु में उन्होंने अनेक उतार-चढ़ाव देखे. 90 के दशक की शुरुआत में उन्हें ब्रेन ट्यूमर हो गया था. उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली में आपरेशन भी करवाया. परन्तु वे स्वस्थ नहीं हो सके. 26 नवम्बर 1996 को उनका असामयिक निधन हो गया.