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कानून की खामियां ही अपराधियों के लिए साबित हो रही 'संजीवनी', तेज हुई बदलाव की मांग

हैदराबाद में हुई हैवानियत के बाद लगातार लोग सड़कों पर उतरकर आरोपियो को तुरंत फांसी देने की मांग कर रहे हैं. मगर तमाम कानूनी पेचीदगियों के चलते ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है. जिसके बाद से ही लगातार इस तरह के जघन्य आपराधों के मामलों में कानून संधोधन की मांग तेज हो गई है.

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कानून की खामियां ही आरोपियों के लिए साबित हो रही 'संजीवनी'
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Published : Dec 4, 2019, 5:07 AM IST

Updated : Dec 5, 2019, 9:08 AM IST

देहरादून: जघन्य दुष्कर्म मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते हर बार आरोपियों को उनके किये की माकूल सजा नहीं मिल पाती है. जिसके कारण आज भी समाज पर दुष्कर्म, गैंगरेप और हत्या जैसी घटनाएं लगातार हो रही हैं. आरोपी बेखौफ होकर इस दरिंदगी की दर्दनाक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. समाज में इस तरह के कुकृत्यों को रोकने और आरोपियों को सही समय पर उनके किये की सजा दिलाने के लिए फांसी के कानून का धरातल पर उतरना बहुत ही जरूरी है.

कानून की खामियां ही आरोपियों के लिए साबित हो रही 'संजीवनी'


हैदराबाद में हुई हैवानियत के बाद लगातार लोग सड़कों पर उतरकर आरोपियो को तुरंत फांसी देने की मांग कर रहे हैं. मगर तमाम कानूनी पेचीदगियों के चलते ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है. ये सड़कों पर प्रदर्शन करने वाले लोग भी समझते हैं लेकिन दिलों में भरा गुस्सा और भावनाओं के ज्वार के में ये जंग दिनों दिन तेज होती जा रही है. जिसके बाद एक बार फिर से इस तरह के अपराधों के लिए बनाये गये कानूनों में बदलाव की संभावना जोर मारने लगी है.

पढ़ें-'भाजपा के दोस्तों' को हरदा की सलाह- खाएं मुनस्यारी का अखरोट, बढ़ेगा पार्टी का हिमोग्लोबिन
देवभूमि में भी लगातार नाबालिग बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या जैसे मामलों सामने आते रहे हैं लेकिन इन मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते आरोपी फांसी की सजा से बच जाते हैं. जो कि एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है. उत्तराखंड पुलिस के आला अधिकारियों का भी ये मानना है.

पढ़ें-2022 के चुनाव के लिए अभी से जुटी कांग्रेस, हरदा बोले- निरंकुश हो गई है भाजपा सरकार
जानकारों के मुताबिक आरोपियो को तय समय से उनके किये की सजा न मिलने से अपराधियों के हौंसले बढ़ते हैं. महिलाओं के प्रति बढ़ते दुष्कर्म व हत्या जैसे मामलों में निचली अदालत से फांसी जैसी सख्त सजा होने के बावजूद उच्च अदालतों में यह सजा माफ हो जाती है. कानून के जानकारों के मुताबिक ये एक चिंता का विषय है. उत्तराखंड पुलिस आलाधिकारियों के मुताबिक भले ही इस तरह के जघन्य अपराध में हाल के वर्षों में सरकार द्वारा कानून संसोधन कर सख्त किया गया हो, लेकिन धरातल पर इस कानून समय से अमल न होना एक गंभीर विडंबना है.

पढ़ें-तमिलनाडु के इस इंजीनियर की मदद से मिला विक्रम लैंडर का मलबा
उत्तराखंड पुलिस के बड़े आलाधिकारियों व वर्षो से पुलिस महकमे में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे अफसरों को भी लगता हैं यह मामला बेहद गम्भीर होता जा रहा हैं. उनका मानना है कि जब तक संसोधन कानून के मुताबिक तत्काल दोषियों पर कठोर से कठोर फांसी जैसी सख्त कार्रवाई नहीं होती तब तक इस तरह की घटनाओं पर अंकुश पाना मुश्किल है.

पुलिस मुख्यालय की अपराध शाखा के अधिकारी के मुताबिक पिछले 3 साल के तुलनात्मक महिला अपराध सहित अन्य आंकड़ों पर गौर करें तो ये आंकड़े वाकई में चौंकाने वाले हैं.

जनवरी 2017 से 31 अक्टूबर 2019 तक विभिन्न अपराधों का विववरण

अपराध 2017 2018 2019
महिला व्यपहरण 236 263 254
बलात्कार 390 505 464
दहेज हत्या 60 62 49
लूट 179 125 114
गृह भेदन 410 270 317
हत्या 160 189 160
वाहन चोरी 1081 922 763
अपहरण 122 157 57
चोरी 1012 1049 765
चेन स्नेचिंग 36 36 37
वाहन लूट 16 24 14

पढ़ें-राजधानी में 100 से ज्यादा सिटी बसों के परमिट होंगे रद्द, ये है वजह
उत्तराखंड पुलिस विभाग में लॉ इन ऑर्डर की कमान संभाल रहे महानिदेशक अशोक कुमार का निजी तौर पर मानना है कि कानून में अभी बहुत सी खामियां हैं जिन्हें दूर किया जाना है. अशोक कुमार का मानना है कि रेप के साथ जघन्य बलात्कार जैसे मामलों में कानून के संशोधन होने के बावजूद जिस तरह से फांसी की सजा धरातल पर निचली अदालत के बाद उच्च न्यायालय तक बरकरार नहीं रह रही है यह अपने आप में कहीं ना कहीं बेहद चिंता का विषय है. अगर इस तरह के क्रूरता भरे जघन्य अपराध में फांसी की सजा संशोधित कानून के मुताबिक त्वरित हो तो इस तरह के मामलों पर रोक लगाई जा सकती है.

देहरादून: जघन्य दुष्कर्म मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते हर बार आरोपियों को उनके किये की माकूल सजा नहीं मिल पाती है. जिसके कारण आज भी समाज पर दुष्कर्म, गैंगरेप और हत्या जैसी घटनाएं लगातार हो रही हैं. आरोपी बेखौफ होकर इस दरिंदगी की दर्दनाक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. समाज में इस तरह के कुकृत्यों को रोकने और आरोपियों को सही समय पर उनके किये की सजा दिलाने के लिए फांसी के कानून का धरातल पर उतरना बहुत ही जरूरी है.

कानून की खामियां ही आरोपियों के लिए साबित हो रही 'संजीवनी'


हैदराबाद में हुई हैवानियत के बाद लगातार लोग सड़कों पर उतरकर आरोपियो को तुरंत फांसी देने की मांग कर रहे हैं. मगर तमाम कानूनी पेचीदगियों के चलते ऐसा कर पाना मुमकिन नहीं है. ये सड़कों पर प्रदर्शन करने वाले लोग भी समझते हैं लेकिन दिलों में भरा गुस्सा और भावनाओं के ज्वार के में ये जंग दिनों दिन तेज होती जा रही है. जिसके बाद एक बार फिर से इस तरह के अपराधों के लिए बनाये गये कानूनों में बदलाव की संभावना जोर मारने लगी है.

पढ़ें-'भाजपा के दोस्तों' को हरदा की सलाह- खाएं मुनस्यारी का अखरोट, बढ़ेगा पार्टी का हिमोग्लोबिन
देवभूमि में भी लगातार नाबालिग बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या जैसे मामलों सामने आते रहे हैं लेकिन इन मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते आरोपी फांसी की सजा से बच जाते हैं. जो कि एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रहा है. उत्तराखंड पुलिस के आला अधिकारियों का भी ये मानना है.

पढ़ें-2022 के चुनाव के लिए अभी से जुटी कांग्रेस, हरदा बोले- निरंकुश हो गई है भाजपा सरकार
जानकारों के मुताबिक आरोपियो को तय समय से उनके किये की सजा न मिलने से अपराधियों के हौंसले बढ़ते हैं. महिलाओं के प्रति बढ़ते दुष्कर्म व हत्या जैसे मामलों में निचली अदालत से फांसी जैसी सख्त सजा होने के बावजूद उच्च अदालतों में यह सजा माफ हो जाती है. कानून के जानकारों के मुताबिक ये एक चिंता का विषय है. उत्तराखंड पुलिस आलाधिकारियों के मुताबिक भले ही इस तरह के जघन्य अपराध में हाल के वर्षों में सरकार द्वारा कानून संसोधन कर सख्त किया गया हो, लेकिन धरातल पर इस कानून समय से अमल न होना एक गंभीर विडंबना है.

पढ़ें-तमिलनाडु के इस इंजीनियर की मदद से मिला विक्रम लैंडर का मलबा
उत्तराखंड पुलिस के बड़े आलाधिकारियों व वर्षो से पुलिस महकमे में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे अफसरों को भी लगता हैं यह मामला बेहद गम्भीर होता जा रहा हैं. उनका मानना है कि जब तक संसोधन कानून के मुताबिक तत्काल दोषियों पर कठोर से कठोर फांसी जैसी सख्त कार्रवाई नहीं होती तब तक इस तरह की घटनाओं पर अंकुश पाना मुश्किल है.

पुलिस मुख्यालय की अपराध शाखा के अधिकारी के मुताबिक पिछले 3 साल के तुलनात्मक महिला अपराध सहित अन्य आंकड़ों पर गौर करें तो ये आंकड़े वाकई में चौंकाने वाले हैं.

जनवरी 2017 से 31 अक्टूबर 2019 तक विभिन्न अपराधों का विववरण

अपराध 2017 2018 2019
महिला व्यपहरण 236 263 254
बलात्कार 390 505 464
दहेज हत्या 60 62 49
लूट 179 125 114
गृह भेदन 410 270 317
हत्या 160 189 160
वाहन चोरी 1081 922 763
अपहरण 122 157 57
चोरी 1012 1049 765
चेन स्नेचिंग 36 36 37
वाहन लूट 16 24 14

पढ़ें-राजधानी में 100 से ज्यादा सिटी बसों के परमिट होंगे रद्द, ये है वजह
उत्तराखंड पुलिस विभाग में लॉ इन ऑर्डर की कमान संभाल रहे महानिदेशक अशोक कुमार का निजी तौर पर मानना है कि कानून में अभी बहुत सी खामियां हैं जिन्हें दूर किया जाना है. अशोक कुमार का मानना है कि रेप के साथ जघन्य बलात्कार जैसे मामलों में कानून के संशोधन होने के बावजूद जिस तरह से फांसी की सजा धरातल पर निचली अदालत के बाद उच्च न्यायालय तक बरकरार नहीं रह रही है यह अपने आप में कहीं ना कहीं बेहद चिंता का विषय है. अगर इस तरह के क्रूरता भरे जघन्य अपराध में फांसी की सजा संशोधित कानून के मुताबिक त्वरित हो तो इस तरह के मामलों पर रोक लगाई जा सकती है.

Intro:summary-जघन्य दुष्कर्म मामलों में लचर क़ानून व्यवस्था के चलते आरोपियों का सज़ा बचना गम्भीर विडम्बना,फाँसी के कानून का धरातल पर उतरना जरूरी:उत्तराखंड पुलिस देश में लगातार नाबालिग बच्चियों व महिलाओं के साथ बलात्कार और जघन्य हत्या जैसे मामलों में लचर कानून व्यवस्था के चलते आरोपित का फाँसी के तख़्ते से बचना एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रही है। बल्कि यह बात हम नहीं, बल्कि उत्तराखंड पुलिस के आला अधिकारी भी बता रहे हैं. जानकारों के मुताबिक इसी कारण इंसानियत को शर्मसार करने वाले जघन्य अपराध देशभर एक के बाद बढ़ते जा रहे हैं।महिलाओं के प्रति बढ़ते दुष्कर्म व हत्या जैसे मामलों में निचली अदालत से फाँसी जैसी सख्त सज़ा होने के बावजूद उच्च अदालत से यह सज़ा माफ़ होना क़ानून के जानकारों के मुताबिक एक चिंता का विषय हैं। उत्तराखंड पुलिस आलाधिकारियों के मुताबिक भले ही इस तरह के जघन्य अपराध में हाल के वर्षों में सरकार द्वारा कानून संसोधन कर सख्त किया गया हो, लेकिन धरातल पर इस कानून समय से अमल ना होना एक गंभीर विडंबना हैं।


Body: वर्ष 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड के बाद हैदराबाद की डॉक्टर के दिशा के साथ जो हुआ उसके बाद आज पूरा देश गुस्से में है...जनता की भीड़ सड़कों पर है और सरकारों से सवाल कर रही है कि, आखिरकार कब तक मासूम बेटियां इसी तरह से हैवानियत का शिकार होती रहेंगी...कानून में जिस तरह की पेचीदगियां है उनको लेकर अभी तक कानून के जानकार तो सवाल उठा ही रहे थे, लेकि उधर उत्तराखंड पुलिस के बड़े आलाधिकारियोंधियों व वर्षो से पुलिस महकमे में अपराध व कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाल रहे अफसरों को भी लगता हैं यह मामला बेहद गम्भीर होता जा रहा हैं... जब तक संसोधन कानून के मुताबिक तत्काल दोषियों पर कठोर से कठोर फांसी जैसी सख्त कार्रवाई नहीं होती.... तब तक अंकुश पाना मुश्किल भरा है... उत्तराखंड पुलिस विभाग में लॉ इन ऑर्डर की कमान संभाल रहे महानिदेशक अशोक कुमार का निजी तौर पर मानना है कि,उन्हें भी लगता है कि कानून में अभी बहुत सी खामियां हैं जिनको जल्द पूरा करके ऐसे मामलों में सख़्त कार्रवाई कर एक नजीर पेश करने की जरूरत हैं... ताकि दुष्कर्म हत्या जैसे जघन्य अपराध को करने से पहले कोई भी आरोपी 10 बार पूर्व में कानूनी कार्रवाई से ख़ौफ़ में आ सके। एक नजर पुलिस मुख्यालय की अपराध शाखा के अधिकारी जानकारी के मुताबिक पिछले 3 साल के तुलनात्मक महिला अपराध सहित अन्य आंकड़ों पर गौर करें (वर्ष 2017 जनवरी से लेकर 31 अक्टूबर 2019 तक) अपराध शीर्षक 2017 2018 2019(31octo तक ) महिला व्यपहरण 236 263 254 बलात्कार 390 505 464 दहेज हत्या 60 62 49 लूट 179 125 114 गृह भेदन 410 270 317 हत्या 160 189 160 वाहन चोरी 1081 922 763 अपहरण 122 157 57 चोरी 1012 1049 765 चेन स्नेचिंग लूट 36 36 37 वाहन लूट 16 24 14 कानून के बावजूद निचली अदालत से उच्च अदालत तक फांसी बरकरार न रहना बेहद चिंता का विषय:DG, LO उत्तराखंड पुलिस विभाग अपराध कानून व्यवस्था की कमान संभालने वाला महानिदेशक अशोक कुमार का मानना है कि रेप के साथ जघन्य बलात्कार जैसे मामलों में कानून के संशोधन होने के बावजूद जिस तरह से फांसी की सजा धरातल पर निचली अदालत के बाद उच्च न्यायालय तक बरकरार नहीं रह रही है यह अपने आप में कहीं ना कहीं बेहद चिंता का विषय है। अगर इस तरह के क्रूरता भरे जघन्य अपराध में फांसी की सजा संशोधित कानून के मुताबिक त्वरित पर इस समय पर दोषी को हो जाए तो इससे समाज में इस तरह के गंभीर अपराध करने वाले लोगों पर प्रभावी असर होगा। डीजी अशोक कुमार के आरोपियों का किन्ही कारणों से ऊपरी अदालत से छूट जाना कहीं ना कहीं अपराध को बढ़ावा देता है। बाईट-अशोक कुमार, महानिदेशक,अपराध व कानून व्यवस्था, उत्तराखंड


Conclusion:
Last Updated : Dec 5, 2019, 9:08 AM IST
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